समाचार विश्लेषण//होली पर कृषि कानूनों की होली
-कमलेश भारतीय
किसान आंदोलन लगातार चल रहा है । पर सरकार को कोई चिंता नहीं । सरकार किसी दवाब में नहीं दिखती । मज़े में पश्चिमी बंगाल में चुनाव जीतने की जुगत में है । दीदी की बजाय किसी बेटे को मुख्यमंत्री बनाया जाने के दावे किये जा रहे हैं । कहते हैं कि अब ममता बनर्जी बेटी नहीं रही , बुआ हो गयी हैं । पर बेटी बचाओ , बेटी को मुख्यमंत्री बनाओ क्यों भूल गये ? बेटी है तो तभी बुआ बनी । जैसे म्हारे हरियाणे में सैलजा बहन जी ही हैं । पर अब नयी पीढ़ी उन्हें बुआ जी संबोधित करने लगी है ।
प्रधानमंत्री के फोन काॅल की दूरी बढ़ती जा रही है क्योंकि वे ज्यादातर दिल्ली से बाहर पश्चिमी बंगाल में समय बिता रहे हैं जबकि अमित शाह सारी नौकरियां पश्चिमी बंगाल को देने जा रहे है । बरोदा में उपचुनाव के दौरान जो वादे किये वे पूरे नहीं किये जा रहे और चुनावी वादे ही साबित हो रहे हैं । इसी प्रकार हर प्रदेश को नौकरियां देने का वादा किया जाता है पर अच्छे दिन की बात अब छोड़ दी है भाजपा ने ।
किसान आंदोलन की बात करें । पहले लोहड़ी पर तीनों कृषि कानूनों की प्रतियां जलाई गयी थीं । अब होली पर भी किसानों ने इन काले कानून कहे जाने वाले कानूनों की प्रतियां जलाईं और विरोध प्रदर्शित किया । कहीं मिट्टी का तिलक लगा कर किसानों ने अपना विरोध जताया । इससे पहले छब्बीस मार्च को भारत बंद किया । हर गांव , शहर में इसका असर दिखा । संयोग से मैं उस दिन सपरिवार चंडीगढ़ में था और लगता था कि इस पढ़े लिखों के शहर में कैसा प्रदर्शन होगा ? पर शाम को जब सेक्टर बाइस जाने लगा तब हर चौक पर किसानों का प्रदर्शन देखने को मिला । इनमें युवतियां भी शामिल थीं । इस तरह का दृश्य देखकर इस आंदोलन की गंभीरता और सजगता सामने आई । इनेलो नेता अभय चौटाला कह रहे हैं कि सरकार किसानों से अन्याय कर रही है । दीपेंद्र हुड्डा राज्यसभा में किसान आंदोलन पर दो दो बार अपनी बात रख चुके और बाहर जनसभाओं में भी लगातार किसान का पक्ष ले रहे हैं । भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने होली न मनाने की घोषणा कर दी थी । ये छोटी छोटी बातें भी किसान आंदोलन के प्रति चिंता सामने लिए के लिए काफी हैं जबकि सत्ताधारी दल के नेताओं का गांव गांव में बहिष्कार जारी है । इससे ज्यादा अविश्वास क्या होगा ? ऊपर से मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर कह रहे हैं कि ये कानून रद्द नहीं होंगे । प्रधानमंत्री के फोन काॅल की दूरी बढ़ती जा रही है क्योंकि वे ज्यादातर दिल्ली से बाहर पश्चिमी बंगाल में समय बिता रहे हैं जबकि अमित शाह सारी नौकरियां पश्चिमी बंगाल को देने जा रहे है । बरोदा में उपचुनाव के दौरान जो वादे किये वे पूरे नहीं किये जा रहे और चुनावी वादे ही साबित हो रहे हैं । इसी प्रकार हर प्रदेश को नौकरियां देने का वादा किया जाता है पर अच्छे दिन की बात अब छोड़ दी है भाजपा ने । ये अच्छे दिनों का नारा बंद कर दिया गया है । वह केवल मीडिया का भ्रामक प्रचार ही साबित हुआ । मीडिया के बाहर कुछ भी नही । महंगाई है कि आसमान से भी ऊपर छलांग लगाने को तैयार है । रसोई गैस की कीमतें उज्ज्वला योजना का मुंह चिढ़ा रही हैं और,पेट्रोल डीजल की पूछो ही मत । पर पूछा तो जायेगा और पूछा भी जा रहा है ।