समाचार विश्लेषण/हुड्डा और सैलजा- हम दोनों हैं अलग अलग, हम दोनों हैं खफा-खफा
-*कमलेश भारतीय
सन् 1997 में मैं हिसार (हरियाणा) में अपने समाचारपत्र की ओर से चंडीगढ़ से रिपोर्टिग के लिए भेजा गया । संयोगवश मुझे जो घर मिला वह कांग्रेस नेत्री सैलजा के पड़ोस में था जिसके कारण कोई मेरा घर पूछता तो मैं बताता कि मैं सैलजा का पड़ोसी हूं । जब जब वे हिसार आती हैं और जब जब इनकी कोठी के आसपास हलचल बढ़ती तो मैं पहला पत्रकार होता जो पहुंच जाता था बात करने । आज मैं सेवानिवृत्त हूं और फ्रीलांसर हूं लेकिन सीआईडी मुझे ही फोन कर पूछती है कि सैलजा आईं हैं क्या और क्या कहा क्या बात हुई ?
खैर ! उन शुरूआती दिनों में ये सैलजा ही थीं जिन्होंने मुझे पूर्व मुख्यमंत्री और अब प्रतिपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मिलवाया ब्लू ब्लर्ड रिसोर्ट में । वैसे आजकल राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत , पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री के साथ मेरी एक पत्रकार के रूप में मुलाकात फ्लेमिंगो रिजोर्ट में हुई जरूर थी , जब ये तीनों गुग्गा मैड़ी जा रहे थे और यहां सिर्फ लंच के लिए रुके थे । वह बहुत छोटी सी मुलाकात रही लेकिन जब सैलजा ने परिचय करवाया तब वह परिचय आगे बढ़ा जो आज तक कायम है लेकिन इन दोनों नेताओं के रिश्ते और राहें जुदा जुदा होते देखीं समय के साथ साथ । इन छब्बीस वर्षों में पानी अनेक पुलों के नीचे पानी बह निकला है । सैलजा केंद्र में मंत्री और भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा के मुख्यमंत्री बने ।
सैलजा के भाई जगन्नाथ को हरियाणा पब्लिक सर्विस कमीशन का सदस्य भी बनाया लेकिन धीरे धीरे इन दोनों नेताओं के बीच दूरियां बढ़ने लगीं और बढ़ती ही गयीं जिसका ताजातरीन उदाहरण सैलजा द्वारा कांग्रेस हाईकमान को एक शिकायत के रूप में सामने है । यह शिकायत है कि हुड्डा कांग्रेस से आज़ाद हो चुके गुलाम नबी आजाद को मिलने क्यों गये , यह बात नोटिस भेजकर पूछी जाये । जब गुलाम नबी आज़ाद न केवल कांग्रेस छोड़कर चले गये बल्कि कांग्रेस हाईकमान की कड़ी आलोचना कर रहे हैं , ऐसे में उनसे मिलने आनंद शर्मा व पृथ्वीराज चव्हाण के साथ क्यों गये ? इसी बात को लेकर मुद्दा बनाते हुए सैलजा ने सोनिया गांधी के नाम पत्र लिखकर हुड्डा को कारण बताओ नोटिस जारी करने का आग्रह किया है । इस प्रकरण से यह साफ जाहिर है कि हुड्डा व सैलजा में न केवल दूरियां बढ़ती जा रही हैं बल्कि अब तो खुलेआम शिकायतें भी शुरू हो गयी हैं । वैसे सैलजा का व्यवहार इन सालों में बहुत बदला बदला सा है । शुरू में वे यह जानती व समझती हुईं कि सिरसा में लोकसभा चुनाव में इनके विरूद्ध न केवल चौटाला परिवार बल्कि चौ भजनलाल भी एक हो जाते थे लेकिन ऐसे किसी सवाल का जवाब देने में सैलजा बहुत संयम बरतती थीं । अब जिस तरह खुल्लमखुल्ला शिकायत पर उतर आई हैं तो सिफ सेफ इनके व्यवहार में तब्दीली नोट की जा सकती है ।
हालाकि इसका जवाब भी आ गया है । हुड्डा का जवाब है कि हम इतने सालों तक एक पार्टी में रहे और एक ही परिवार की तरह रहे । फिर अचानक से गुलाम नबी आज़ाद ने इस्तीफा देने का फैसला क्यों किया ? एक दोस्त के नाते यही जानने की इच्छा से गये थे हम तीनों । रही बात कांग्रेस की तो जन्मजात कांग्रेसी हूं और सदैव सोनिया गांधी के साथ खड़ा रहा हूं और खड़ा रहूंगा । इन दिनों महंगाई के खिलाफ कांग्रेस के चार सितम्बर को होने वाले हल्ला बोल की तैयारियों में जुटा हुआ हूं ।
कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष उदयभान ने भी पत्रकारों के सवाल के जवाब में कहा कि गुलाम नबी आज़ाद से मिलने में कोई ऐसी बड़ी बात तो नहीं है । यदि आप थोड़ा पीछे जायें तो देखेंगे कि सैलजा ने प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद भी हुड्डा से दूरियां बनाये रखीं । बेशक विधानसभा चुनाव प्रचार एकसाथ किये लेकिन मन की दूरियां नहीं मिटीं । विधानसभा चुनाव की टिकटें यदि दोनों नेता आपसी सलाह मशविरे से बांटते तो कांग्रेस सरकार बनाने के निकट होती । हिसार में ही टिकटों का बंटवारा सही नहीं हुआ । आपस में ही कांग्रेसी चुनाव मैदान में आमने सामने हो गये जिससे हार झेलनी पड़ गयी । यही नहीं रामभगत शर्मा , रामनिवास घोड़ेला, नरेश सेलवाल को कांग्रेस से बाहर कर दिया जिन्हें अभी नये प्रदेशाध्यक्ष उदयभान ने दोबारा कांग्रेस में शामिल किया है । प्रो सम्पत सिंह भी इन्ही दोनों कांग्रेस में शामिल हुए हैं । बड़ी बात कि नरेश सेलवाल की टिकट खुद सैलजा ने ही दिलवाने में मुख्य भूमिका निभाई थी और विधायक बन कर वे मुख्यमंत्री के तौर पर हुड्डा के विरोध में मुखर रहते थे लेकिन अब पासा पलट चुका है । नरेश सेलवाल अब हुड्डा के नजदीक हैं और कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं । प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर सैलजा अपनी पारी व अवधि समय से पहले ही खत्म कर दिये जाने से नाराज हैं और कुछ तेवर भी बदल गये हैं जिसका प्रमाण हाईकमान को यह चिट्ठी लिखने के रूप मे सामने आया है । हिसार के कांग्रेस भवन से सैलजा के बैनर हटाये जाने की बात भी हाईकमान तक पहुंचाई गयी थी यानी कांग्रेस में यह शिकायतों का दौर सरेआम हो चुका है । अशोक तंवर के समय भी कभी हिसार के कांग्रेस भवन में इसी तरह फोटो हटाने और लगाने के दिलचस्प मामले राजनीतिक गलियारों में छाये रहे थे । फिर दिल्ली में राहुल गांधी के आगमन से पहले अशोक तंवर की कार्यकर्त्ताओं के साथ मारपीट की खबर ने पुलिस केस तक का सफर तय किया था और आखिरकार अशोक तंवर कांग्रेस को अलविदा कह गये थे । आजकल तृणमूल कांग्रेस में हैं । कौन इस गुटबाजी को दूर करने के लिए आगे आयेगा ? या शिकायतों का पिटारा ही खुला रहेगा ? हरियाणा कांग्रेस से गुटबाजी कब खत्म होगी ? कब तक इन दोनों बड़े नेताओं के चलते कांग्रेस कार्यकर्त्ता गुट बदलते रहेंगे ? जिन दिनों सैलजा प्रदेशाध्यक्ष बनी थीं , हुड्डा के कुछ नजदीकी हिसार स्थित सैलजा की कोठी पर दिखाई देने व हाजिरी भरते देखने को मिलते थे , वही अब वापसी कर चुके हैं । कार्यकर्त्ता ऐसे ही उलझन में रहेंगे कि मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं ? कब तक ? ये दूरियां कहां तक जायेंगीं और क्या रंग दिखायेंगीं ?
हम दोनों हैं अलग अलग
हम दोनो हैं खफा खफा
लेकिन कब तक ?
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।