कोरोना को रोकने में रात का कर्फ्यू कितना कारगर

कोरोना को रोकने में रात का कर्फ्यू कितना कारगर

कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए, कई राज्यों ने रात्रि कर्फ्यू लागू कर दिया है। हरियाणा में रात 11 बजे से सुबह 5 बजे तक रात्रि कर्फ्यू की घोषणा होने से नये साल की पार्टी मुश्किल में पड़ गयी हैं। पार्टी के लिए बुकिंग कराने वाले और होटल दोनों ही परेशान हैं। होटलों को अपनी न्यू ईयर पार्टी साढ़े 10 बजे ही खत्म करनी पड़ेगी। बुकिंग के पैसे भी वापस नहीं लौटा सकते क्योंकि इंतजाम करने के लिए पैसा पहले ही खर्च किया जा चुका है। दिल्ली, कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों ने तो पहले ही डीजे और पार्टी को बैन कर दिया है। महाराष्ट्र में 31 दिसंबर की रात तक धारा 144 लागू रहेगी। वहां रात 9 से सुबह 6 बजे तक कर्फ्यू लागू है। दिल्ली और गुजरात में कर्फ्यू का समय रात 11 बजे से सुबह 5 बजे तक है। सिर्फ असम एक ऐसा राज्य है जहां साढ़े 10 बजे से सुबह 6 बजे तक कर्फ्यू तो लागू है, लेकिन 31 दिसंबर की रात को कर्फ्यू नहीं रहेगा।

लोग सवाल उठा रहे हैं कि रात के कर्फ्यू से कोरोना रुक जायेगा? क्या कोरोना रात को ही सड़कों पर बाहर निकलता है, जो रात का कर्फ्यू लगाया जा रहा है? सवाल तो वाजिब हैं, लेकिन इसके पीछे सरकार और विशेषज्ञों के भी अपने तर्क और कारण हैं। राज्यों में रात्रि कर्फ्यू के समय में भिन्नता अवश्य है, परंतु अधिकांश राज्य रात के कर्फ्यू को संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए जरूरी मानते हैं। रात के कर्फ्यू से उन सामाजिक कार्यक्रमों पर पाबंदी लगाने की रणनीति है जो कोविड फैलाने वाले जखीरे या समूह में तब्दील हो सकते हैं। सरकार लॉकडाउन तो लगा नहीं सकती, क्योंकि उससे सब कुछ ठहर जाता है और देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। याद है, साल 2020 में लॉकडाउन के फलस्वरूप लाखों लोगों का रोजगार छिन गया था। ऐसे में नाइट कर्फ्यू से एक मनोवैज्ञानिक संदेश तो जाता ही है। नाइट कर्फ्यू हालात की गंभीरता को बताने में मदद कर सकता है और लोगों को सभी सुरक्षा उपायों का पालन करने की आवश्यकता के बारे में जागरूक कर सकता है।

कोरोना को काबू में रखने में टीकाकरण, मास्क, एक-दूसरे से पर्याप्त दूरी और स्वच्छता ही सबसे अधिक कारगर उपाय हैं। परंतु कर्फ्यू के बहाने ही सही, अस्पतालों में चिकित्सा स्टाफ पर बोझ तो कम होता ही है। दिन में प्राय: लोग नियमों का पालन करते हैं, लेकिन रात को अक्सर सभी लापरवाह हो जाते हैं कि अब कौन है हमें देखने वाला। रात में ही पार्टी और दोस्तों के साथ घूमना फिरना होता है, जहां मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का नियम सबसे पहले टूटता है। ऐसे लोगों को मरीज बनने से यकीनन रोकती हैं रात की बंदिशें। नाइट कर्फ्यू न सिर्फ लोगों को बाहर निकलने से रोकता है, बल्कि एक संकेत भी देता है कि उन्हें सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि मामले बढ़ रहे हैं। नाइट कर्फ्यू हर समय मास्क पहनने और सामाजिक दूरी बनाए रखने जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर करता है। सरकार निर्देश जारी करती है, लेकिन लोग इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। दूसरी लहर के बाद नियमों की पाबंदी को लेकर लोग लापरवाह हो चले थे। बाजारों और सड़कों पर बिना मास्क के घूमने लगे। ऐसे में, लोगों में गंभीरता लाने का यह एक कारगर उपाय है।

(लेखक यादव वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं)