समाचार विश्लेषण/रिश्वत मांगने वालों की खैर कब तक?
-*कमलेश भारतीय
रिश्वत पर आज पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान का जोरदार बयान आया है कि रिश्वत मांगने वालों के नाम सार्वजनिक करो , कार्रवाई करना हमारा काम ! कितना लोकलुभावन बयान है न ! सत्तर साल बनाम सात माह ऐसे ही लोकलुभावन बयानों से कब निकल गये , पता ही नहीं चला ! हमें तो जब करोडों रुपये के विज्ञापन अखबारों में भगवंत मान की फोटो के साथ छपते हैं तब पता चलता है ।
वैसे हमारे हमारे हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी पर्ची खर्ची बंद करने के दावे करते नहीं थकते और माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ईमानदार सरकार का पदक देकर इनकी पीठ थपथपाते रहते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि बड़े बड़े कार्यालयों में नोटों से भरे सूटकेस बरामद किये जा रहे हैं और अब तो महिला पुलिस कर्मचारी भी रिश्वत लेतीं पकड़ी जा रही हैं यानी रिश्वत किसी को नहीं मानती । सबको समान आदर देती है । एक आंख से ही देखती है -क्या पुरूष अधिकारी , क्या महिला अधिकारी !
पर्ची, खर्ची के लिए आप किसी दूसरे पर दोष नहीं डाल सकते । ऐसा दावे बेकार हैं । सब कार्यालयों में अंडर टेबल सब कुछ लिया जा रहा है । पहले टेबल के नीचे , अब तो खुल्लमखुला चल रहा है यह कारोबार ! अभिभावक भी चल लड़की का रिश्ता ढूंढने निकलते हैं तो पहले सरकारी नौकरीवाला लड़का और फिर उसमें भी वह जो ऊपर की कमाई वाली कुर्सी पर बैठा हो ! सूखी तनख्वाह से आज की सुरसा जैसी महंगाई में क्या बनता है ! इस तरह देखा जाये कि हमारा सामाजिक ढांचा और हमारी सोच रिश्वत को दिल से स्वीकार कर चुकी है । मुख्यमंत्री का फ्लाइंग स्क्वॉड कितने लोगों को रिश्वत लेते पकड़कर जेल भेज चुका है लेकिन रिश्वत का खेल जारी है । कोई असर नहीं किसी पर । वैसे ही जैसे महाभारत में कहा था कि सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि दूसरा फंस सकता है रिश्वत लेते, मै तो बहुत सयाना हूं , मुझे कौन पकड़कर ले जायेगा ! पर सारी सयानप धरी की धरी रह जाती है जब हाथ धोकर पीछे पड़ जाते हैं स्क्वॉड वाले ! शर्म मगर फिर भी नहीं आती ! सस्पेंशन खत्म होते ही फिर वही खेल फरूखाबादी !
आखिर रिश्वत खत्म कौन करेगा और कैसे खत्म होगी? हमारे मन से ही खत्म हो सकती है न कि कानून या चेतावनियों से ! जब हम ईमानदार वर ढूंढने निकलेंगे , तब इसकी शुरूआत होगी और जब हम अपनी चादर देखकर पांव पसारने लगेंगे और अपनी इच्छाओं को सीमित कर लेंगे तब यह खत्म हो सकती है और ये इच्छायें तो अनंत हैं और इन्हें पूरा करते करते हम अनैतिक रिश्वत के जाल में फंसता चले जाते हैं ! कोशिश कीजिए ईमानदारी से और अपने वेतन , अपनी सीमाओं में जीने की !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।