आँखों देखी/भारत बंद में कुछ मानवता भी
-कमलेश भारतीय
आज किसान आंदोलन के नेताओं की ओर से भारत बंद का आह्वान था । शायद मैं सुनी सुनाई या गोदी मीडिया की देखी दिखाई लिखता पर अपनी बेटी के किसी काम के चलते चंडीगढ़ आज ही पहुंचना बहुत जरूरी था और सबने आगाह भी किया कि आज भारत बंद का आह्वान है । फिर भी मेरी बेबसी कि आज ही निकलना था । अपने पत्रकारिता के अनुभव के हिसाब से मैं यह मान कर चल रहा कि सुबह सवेरे जल्दी जल्दी निकलूंगा तो चंडीगढ़ आंदोलन और भारत बंद से पहले पहले पहुंच जाऊंगा । यह सोच कर गाड़ी सुबह चार बजे बुला ली । अभी चालीस पचास किलोमीटर गये थे कि पहले नाके से सामना हो गया । तिरंगे झंडे उठाये युवक मिले और रास्ता रोकने की अभी शुरूआत की जा रही थी । मैंने सोचा कि शायद हमें लौटना पड़े और परेशान होना पड़े लेकिन जैसे ही बताया कि बेटी को दिखाने पीजीआई जा रहे हैं तो वे दयालु हो गये और एकदम रास्ता देते कहा कि आप जाइए । हमारा किसी को परेशान करने का कोई इरादा नहीं।
पर लगभग पचास और किलोमीटर चल कर गाड़ियां वापस आती दिखीं और हाथ से इशारे भी किये गये कि लौट जाइए । पर हमें तो पहुंचना था हर हाल में । इसलिए गांववासियों से ही पूछा कि कोई चोर रास्ता है तो बताइए । उन्होंने बता दिया । इस तरह कुछ नये और ऊबड़ खाबड़ रास्ते से फिर पचास किलोमीटर पार हो गये । आखिर अम्बाला के बाद और लालडू से पहले पुलिस वाले ही रोकने लगे कि आप आगे नहीं जा सकते । उन्हें भी अपनी इमर्जेंसी बताई कि कौन घर से ऐसे दिन निकलना पसंद करेगा ? आप हमें जाने दीजिए । पुलिस की वर्दी के नीचे भी दिल धड़क उठा और एकदम से पिघल कर सिपाहियों का इंचार्ज बोला कि इस गाड़ी को रास्ता दे दो । वाह । कौन कहता है कि आसमान में सुराख हो नहीं सकता। एक बार ढंग से बात तो करो यारो।
असली परीक्षा लालडू से पहले हुई जब सभी लौटने वाली गाड़िर्यों के ड्राइवरों ने रोका कि लौट जाइए । फिर भी चले और मेन रोड से गांव के बीच हो लिए और तभी किसान आंदोलन का झंडा लगाये एक मोटरसाइकिल सवार निकला तो मेरा पत्रकारिता का अनुभव समझा गया कि बीच का रास्ता भी यह बंद करवा कर आ रहा है । यह आखिरी पड़ाव था हमारा । जब उस पतली सी सड़क पर पहुंचे तब वहां एक हत्थ रेहड़ी बीच में खड़ी कर रास्ता रोक रखा था । सामने एक युवक बहुत खुशी में खड़ा था कि भारत बंद सफल कर रहा हूं । मैंने उससे प्यार से बताया कि बेटा हमें जाने दो । पीजीआई पहुंचना है । क्या करें? डाॅक्टर को तो पता नहीं था दो माह पहले जब यह तारीख दी थी कि किसान आंदोलन इस दिन भारत बंद का आह्वान कर देगा । वह कुछ समय तक टस से मस न हुआ । बोला कि आप लौट जाइए । मैंने कहा कि भले मानस अब दो सौ किलोमीटर कौन लौटने देगा ? अब सिर्फ तीस किलोमीटर के बीच तुम ही बाधा हो । इतने में एक और गाड़ी हमारे पीछे आकर लग गयी । उसने भी पीजीआई का कार्ड दिखाया । पता नहीं कैसे उस नौजवान का मन पिघल गया और उसने खुद ही हत्थ रेहड़ी को पीछे धकेल कर हमारे लिए रास्ता बना दिया । उसके बाद हम रास्ता पार कर गये और लगा कि कोई देवता आया था ।
यह भी पता चला कि सैनिकों की गाड़ियों के काफिले के लिए भी किसान आंदोलन के कार्यकर्त्ताओं ने रास्ता खोले रखा । सच । और एम्बुलेंस के लिए भी ।आज तक दूर से किसान आंदोलन के बारे मे लिखा लेकिन आज खुद महसूस किया कि किसान किसी को दुखी परेशान नहीं करना चाहता । वह खुद सारी तकलीफ सहकर भी दूसरों के दुख सुख का ख्याल रख रहा है । यह किसान की आत्मा है जो उसे आंदोलन को हिंसक और क्रूर होने से बचा रही है । सुबह सवेरे भूखे पेट सड़क पर आकर आंदोलन करना यह कोई आसान काम नहीं । किसान को सलाम । जय जवान । जय किसान ।