समाचार विश्लेषण/नायक हूं , खलनायक नहीं
-कमलेश भारतीय
पंजाब के मोगा शहर के मूल निवासी और,आजकल मुम्बई की फिल्मों में चर्चित सोनू सूद बेशक खलनायक का रोल कर हीरो से मार खाते दिखाई देते हों लेकिन असल जिंदगी में वे नायक हैं , खलनायक नहीं । यह बात कोरोना काल में मुम्बई में प्रवासी मजदूरों की मदद के रूप में सामने आई है । कितने प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने का महत्त्वपूर्ण काम किया कि इसके आंकड़े देखकर हैरानी हुई । कैसे एक व्यक्ति ऐसा काम कर सकता है ? अब यह बात,सामने आई कि सोनू सूद ने अपनी सम्पत्ति गिरवी रख कर दस करोड़ रुपये लेकर इस समाजसेवा को अंजाम दिया था । अभी उनके कदम रुके नहीं हैं । वे उन बुजुर्गों के लिए भी कुछ करना चाहते हैं जिनके घुटने काम नहीं कर रहे । यानी एक खलनायक पर्दे पर नहीं असल जिंदगी में पूरी तरह बदल गया । सारी जिंदगी प्राण खलनायक रहे लेकिन मनोज कुमार ने उपकार फिल्म में प्राण को मलंग बाबा का पाॅजिटिव रोल दिया और उनकी इमेज बदल कर रख दी । फिर तो कितने ही नये रोल्स में नजर आये प्राण ।
कोरोना ने सोनू सूद के बारे में ऐसी स्क्रिप्ट लिखी जो मनोज कुमार ने प्रेम के लिए लिखी थी । अफ सोनू सूद खलनायक नहीं रहे, दुनिया कि नजर में नायक हो गये । जो काम महाराष्ट्र सरकार को करना था , वह अकेले अपने दम पर सोनू सूद ने कर दिखाया । दस करोड़ रुपये महाराष्ट्र सरकार बड़ी आसानी से प्रवासी मजदूरों को घर भेजने के लिए खर्च कर सकती थी लेकिन जो इच्छा शक्ति सोनू सूद के पास थी वही महाराष्ट्र सरकार के पास नहीं थी । इसलिए सोनू सूद ही आखे आए , महाराष्ट्र सरकार ने मदद के लिए हाथ भी नहीं बढ़ाये । यह सबसे बड़ी दुख की बात रही । हां , सोनू को उद्धव ठाकरे के दरबार में हाजिरी के लिए जरूर न्यौता मिला । सरकार ने तब भी नहीं पूछा कि कहा से कर रहे हो यह समेजसेवा? अपनी दुकानें या घर गिरवी रख कर कौन समाजसेवा कर सकता है ? सोनू सूद ने कर दिखाया ऐसे साहस । रतन टाटा ने भी मदद की पर टाटा और सोनू सूद का अंतर तो देखिए साहब । कहते है कि दिल होना चाहिए । वह सोनू सूद का बहुत बड़ा है । इतने इमोशनल कि मोगा में अभी तक अपने पिता की कपडेककी दुकान बेची नहीं ताकि उसमें काम करने वालों की रोज़ी न छिन जाये ।
ऐसी सोच वाले असल जिंदगी के नायक को सैल्यूट ।