मुझे तो आलोचना और अपमान ही मिलता रहा है, सम्मान तो पता नहीं ये लोग क्यों दे रहे हैं: मनोज प्रीत 

मुझे तो आलोचना और अपमान ही मिलता रहा है, सम्मान तो पता नहीं ये लोग क्यों दे रहे हैं: मनोज प्रीत 

मैं कई बार जब परेशानियों में घिरा हूँ तो बड़े-बड़े कोठी वाले नहीं, रिक्शा चालकों और आम जनमानस ने सम्भाला है| रिश्ते मेरे लिए जरूरी हैं| मैं इन सबसे बहुत धनवान हूँ| पैसे की जरूरत नहीं है| एक दिन था जब खाने के लाले पड़े होते थे| आज महानगर में सबसे अधिक चाहने वाले लोग मेरे हैं| मैं आम आदमी के बीच इसलिए रहता हूँ क्योंकि वह सबसे अधिक निरपेक्ष और मनुष्य हैं| साहित्य मनुष्यता को प्राप्त करने का साधन यदि है तो अमीरी-गरीबी की भावना को दूर रखकर कार्य करना होगा|" यह कहना था लुधियाना के वरिष्ठ कथाकार मनोज प्रीत जी का जो सरमाया, साहित्यिक संस्था द्वारा सम्मानित हुए| 

मनोज प्रीत के सन्दर्भ में इससे पहले डी.ए.वी. कॉलेज, जालंधर के हिंदी विभाग के प्राध्यापक कवि एवं आलोचक बलवेन्द्र सिंह ने विस्तार से बताया| उनके अनुसार चिकित्सकीय दुनिया से सम्बन्ध रखने वाले मनोज प्रीत एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो लुधियाना जैसे महानगर में रहते हुए साहित्य की अलख जगाए हुए हैं| जो कार्य हिंदी के बड़े-से-बड़े महारथी नहीं कर पाए वह इन्होने प्रीत साहित्य सदन के माध्यम से किया| इनके द्वारा संचालित संस्थान में मिलों-फैक्ट्रियों में कार्य करने वाले लोग रचनापाठ करते हैं| इन्हें सुकून तब मिलता है जब आम जनमानस की सेवा करते हैं| पत्थर के शहर में शायद ही कोइ वृक्ष उगा सके लेकिन मनोज प्रीत ने ऐसे किया है|" उनका यह भी कहना था कि 'आलोचकों की नज़र में और अन्य साहित्यिक संस्थाओं की नज़र में पता नहीं ऐसे रचनाकार क्यों नहीं आते? सरमाया ने यह कार्य किया यह उसके लिए भी गौरव की बात है|"

डॉ. बलवेन्द्र सिंह ने मनोज प्रीत के संघर्ष, जीवन-धर्म आदि को लेकर विस्तार से बातें कीं| मनोज प्रीत की सहृदयता यह कि सब कुछ बैठे सुन रहे थे और जब बोले तो यह कि "मुझे तो आलोचना और अपमान ही मिलता रहा है, सम्मान तो पता नहीं ये लोग क्यों दे रहे हैं...|" जिस समय ये वाक्य निकले उस समय मनोज प्रीत के चेहरे पर एक ओजस्वी कान्ति मचल रही थी| वह यह भी कहते हैं कि "मुझे मेरे जीवन में विजय मिली है भले ही देर से मिली|" निश्चित ही मनोज प्रीत को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है| उपेक्षाएं झेलनी पड़ी हैं| बतौर बलवेन्द्र सिंह कहें तो "मनोज प्रीत कार्यक्रम करवाने, पुस्तक छपवाने से लेकर चर्चा करवाने और फिर प्रेस नोट बनाकर हर अखबारों के दरवाजे पहुँचाने तक का करते हैं और उसमें किसी भी रचनाकार से किसी प्रकार का आर्थिक सहयोग नहीं लेते|"

मनोज प्रीत के सम्मान में पहुंचे जितने भी रचनाकार थे सभी ने निरपेक्ष रूप से उनके योगदान को सराहा| अमृतसर से आए कवि राकेश प्रेम ने उनके योगदान को विशेष माना तो डॉ. संजीव डाबर ने सरमाया को योग्य रचनाकार के सम्मान के लिए विशेष आभार दिया| कवि सरदार पंछी ने ऐसे उपयुक्त चयन को विशेष माना| 

वरिष्ठ कवि एवं आलोचक डॉ. राजेन्द्र टोकी के नेतृत्व में किया गया यह कार्यक्रम निश्चित रूप से विशेष रहा| बहुत कम साहित्यिक कार्यक्रम ऐसे होते हैं जो अन्दर से सोचने के लिए विवश करते हैं| यह कार्यक्रम पंजाब के वरिष्ठ कवि एवं आलोचक तरसेम गुजराल की अध्यक्षता में संपन्न हुआ| उन्होंने अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि "मनोज प्रीत जी का सम्मान निश्चित रूप से साहित्य का सम्मान है| इस प्रक्रिया में मैं यह भी कहता हूँ कि इनकी धर्मपत्नी का योगदान इन्हें बनाने में विशेष रहा है| इसलिए उन्हें भी बहुत बधाई |"

साहित्यिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध संस्था है 'सरमाया', खन्ना, पंजाब से| सरमाया संस्था निश्चित रूप से अपने उद्देश्यों के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध संस्था है जो निरंतर रचना-निर्माण में सक्रिय है| रविवार 23 अप्रैल को इस संस्था का वार्षिक कार्यक्रम रखा गया| सम्मान समारोह और कविता-दरबार| प्रदेश के विभिन्न अचलों से कवि-कवयित्री शामिल रहे| इस अवसर पर सभी रचनाकारों को सम्मानित किया गया| संचालन परमजीत जी ने किया| युवा कवियों में रमण शर्मा, सुमित शर्मा, कमलपुरी उपस्थित रहे तो श्रद्धा शुक्ला, सीमा भाटिया, पूनम जी आदि भी अपनी उपस्थिति कविताओं के माध्यम से दर्ज कराईं|