स्त्री को मनुष्य मान लें तो स्त्री विमर्श की जरूरत ही कहां! -विभा रानी
-कमलेश भारतीय
यदि स्त्री को मनुष्य मान लिया जाये तो फिर स्त्री विमर्श की जरूरत ही कहां रह जायेगी ? यह कहना है प्रसिद्ध रंगकर्मी, लेखिका, फोक प्रस्तोता व रूम थिएटर आरंभकर्ता विभा रानी का, जो हाल में ही 'नेमिचंद्र जैन नाट्यलेखन सम्मान' व 'किरण सम्मान' सहित अनेक सम्मान / पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं । दिलचस्प बात यह है कि विभा रानी हिसार में भी कुछ वर्ष पहले 'आओ, तनिक प्रेम करें' नाटक मंचित करने आ चुकी हैं । मूल रूप से बिहार की मधुबनी निवासी विभा रानी पिछले अनेक वर्षों से मुम्बई में हैं, सक्रिय हैं और देश-विदेश में नाटक मंचन व डहकन (गाली गीत) परफॉर्म करने जाती रहती हैं ।
-पढ़ाई लिखाई के बारे में बताइए ?
-एम ए (हिंदी), बी एड ।
-अध्यापिका के रूप में जाॅब की ?
-स्कूल, काॅलेज में । फिर भारत सरकार में ।
-थियेटर के प्रति शौक कैसे ?
- शुरू से। आकाशवाणी, दरभंगा पर रेडियो पर पहले कैजुअल उद्घोषिका व ड्रामा आर्टिस्ट रही। वहां रेडियो नाटक किये । म॔च पर कोलकाता, दिल्ली, मुम्बई सहित अब हर जगह। सन् 1989 से मुम्बई में बसेरा।
-कौन हैं आपकी प्रिय अभिनेत्रियां?
-ज़ोहरा सहगल और दीना पाठक ।
-कितने नाटक कर चुकी होंगी?
- बहुत सारे। अपने थिएटर गुरु आर एस विकल जी के निर्देशन में दिल्ली में उनके थिएटर फेस्टिवल में नाटक किए। उनके निर्देशित 'मि. जिन्ना' में फातिमा जिन्ना की भूमिका निभाती हूँ। सोलो नाटक को आगे बढ़ने के लिए सोलो नाटक करना शुरू किया। छह सोलो नाटक हैं । ग्यारह लिखे हुए सोलो नाटक हैं। सात प्रकाशित नाटक हैं। तीन नाटक सिर्फ दो पात्रोंवाले हैं। और भी बहुत से हैं- अभिनीत व लिखित।
-कौन नाटक दिल के बहुत करीब रहा ?
- को बड़ छोट कहत अपराधू। दिल के करीब जुड़े नाटकों को ही परफॉर्मेन्स के लिए उठाती हूँ, इसलिए सभी नाटक दिल के करीब हैं। मेरी भूमिका स्त्री पक्ष को सामने लाने की है । एक नाटक है - 'मैं कृष्णा कृष्ण की' । इसमें कृष्ण - द्रौपदी के माध्यम से स्त्री- पुरुष के सखा भाव सहित अनेक पक्ष सामने लाने की कोशिश रही है। इसी प्रकार 'बिम्ब- प्रतिबिम्ब' नाटक में विधवाओं व तलाकशुदा के माध्यम से समाज मे स्त्रियों को पुरुषों से कमतर बताए जाते रहने और उन्हें हर प्रकार की मान्यताओं से वंचित किए जाते रहने की बात कही गई है। यह बताने की कोशिश है कि स्त्रियों पर कुछ भी न थोपा जाए तो वे हर जगह बेहतरीन कर सकती हैं।
-हिसार कब आईं थीं नाटक मंचन करने ?
-सन् 2011 में । तब मनीष जोशी और रवि मोहन के नाट्योत्सव के दौरान मंचित किया था - 'आओ, तनिक प्रेम करें।'
-क्या केद्र बिंदु रहा नाटक का ?
- अभिव्यक्ति का अभाव । पति सोचता है कि पत्नी से क्या बात करनी ? यह जो खालीपन है स्त्री का, उसे सामने लाने की कोशिश। मेरे नाटक स्त्री- भाव से लिखे रहते हैं, इसलिए तनिक अलग रहते हैं।
-कितनी पुस्तकें आ चुकीं आपकी ?
-तीस। हिंदी और मैथिली दोनों में। अनुवाद भी, लोक साहित्य व स्त्री-विमर्श पर भी ।
-परिवार के बारे में बताइए ?
-पति हैं अजय ब्रह्मात्मज । दो बेटियां हैं -विधा सौम्या और कोशी ब्रह्मात्मज। दोनों फाइन आर्ट्स की अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कलाकार हैं ।
-कोरोना काल में क्या किया ?
- खूब लिखा, खूब पढ़ा। किताबें छपीं। यूट्यूब चैनल पे 'बोले विभा' कार्यक्रम शुरू किया। अबतक 252 एपिसोड हो चुके हैं। यहीं पुरुष रसोई को बढ़ावा देने के लिए 'BB का Male किचन' चैनल शुरू किया। फेसबुक पेज 'अवितोको रूम थिएटर' से कलाकारों को डिजिटल थिएटर की दुनिया में ले गई और उन्हें मंच दिया । अब तक दो सीजन में 26 एपिसोड कर चुके हैं। बड़ी बिन्दी फेसबुक ग्रुप से हर सप्ताह एक महिला विभूति को लाकर उनसे बातचीत करते हैं । अबतक 57 एपिसोड हो चुके हैं। हमने खूब सारी गतिविधियां जारी रखीं। अभी भी हैं । अभी मेन्टल हेल्थ को ध्यान में रखते हुए ' 'Healing through Theatre' प्रोग्राम ऑनलाइन करती हूं । ऑनलाइन परफॉर्मेंस चल रहे हैं। 'ऑनलाइन सोलो परफॉर्मेंस क्लास' लेती हूं।
कोई ठहराव नहीं आने दिया है अभी तक। एकल से रूम और रूम से डिजिटल थियेटर तक काम कर रही हूं। सहभागियों को ऑनलाइन परफॉर्मेंस के मौके देती हूं। घर पर ही थियेटर क्रिएट करती हूं।
-पुरस्कार ?
- 27 से अधिक।
- सबसे खुशी किसमें?
- सभी पुरस्कार सम्माननीय हैं। लेकिन सबसे ज्यादा खुशी हुई दिल्ली का सम्मानित 'कथा अवार्ड' पाकर, क्योंकि यह मेंरे जीवन का पहला सबसे बड़ा पुरस्कार था, जिसकी धमक देश से विदेश तक में थी। इस साल मैथिली कथा संग्रह के लिए 'किरण पुरस्कार' और नाटक 'प्रेग्नेंट फादर' के लिए 'नेमिचंद्र जैन नाट्य लेखन सम्मान' मिला है। इससे भी पहले मोहन राकेश सम्मान सहित अनेक पुरस्कार हैं।
-किसी फिल्म में भी काम किया ?
- फ़िल्म 'लाल कप्तान', 'अनवांटेड' और यशराज फिल्म्स की फ़िल्म में । अभी अभी वेबसीरीज 'महारानी'
-स्त्री विमर्श पर क्या कहेंगी ?
- आज स्त्री से ज्यादा पुरुष विमर्श की ज़रूरत है। समझना उन्हें है। यदि स्त्री को मनुष्य मान लें तो स्त्री विमर्श की जरूरत ही न रह जाये। पितृ सत्तात्मक समाज इसे जितनी जल्द समझ ले, उतना बढ़िया होगा, उनके ही हक में।
हमारी शुभकामनाएं विभा रानी को ।