जैन धर्म में चातुर्मास का महत्व, जानिए 3 खास बातें
चातुर्मास का हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म में खासा महत्व है। तीनों ही धर्म के संत इसका कड़ाई से पालन करते हैं। हिन्दू धर्म के सभी बड़े त्यौहार इन्ही चौमासा के भीतर आते हैं. सभी अपनी मान्यतानुसार इन त्यौहारों को मनाते हैं एवं धार्मिक अनुष्ठान भी करते हैं। वैसे जैन धर्म में चातुर्मास के कई नियम और उपदेश हैं परंतु यहां प्रस्तुत है सामान्य महत्व की 3 बातें।
1. चातुर्मास में सभी जैन संत अपनी यात्रा रोक देते हैं और मंदिर या जैन स्थानक पर ही रहकर यम और नियम का पालन करते हैं। जैध धर्म के अनुसार यह चार माह व्रत, साधना और तप के रहते हैं। इस दौरान सख्त नियमों का पालन करना चाहिए। जैन धर्म के अनुयायी इन चार माह में मंदिर जाकर धार्मिक अनुष्ठान, पूजा आदि करते हैं या सभी जैन धर्मी गुरुवरों एवं आचार्यों द्वारा सत्संग का लाभ प्राप्त करते हैं। संतों द्वारा मनुष्यों को सद्मार्ग दिखाया जाता हैं। यह हर तरह की जिज्ञासा और इच्छाओं को शांत करने के माह होते हैं और यही वह चार माह है जबकि धर्म को साधा या जाना जा सकता है।
2. जैन धर्म में आमजनों को इन चार माह में संयमपूर्वक करने का उपदेश है। उक्त चार माह में किसी भी प्रकार से क्रोध नहीं करते हैं और संयम का पालन करते हैं। इन 4 महीनों में व्यर्थ वार्तालाप, अनर्गल बातें, गुस्सा, ईर्ष्या, अभिमान जैसे भावनात्मक विकारों से बचने की कोशिश की जाती है।
3. चातुर्मास में ही जैन धर्म का सबसे प्रमुख पर्व पर्युषण पर्व मनाया जाता है। यदि वर्षभर जो विशेष परंपरा, व्रत आदि का पालन नहीं कर पाते वे इन 8 दिनों के पर्युषण पर्व में रात्रि भोजन का त्याग, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, जप-तप मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा साधु-संतों की सेवा में संलिप्त रह कर जीवन सफल करने की मंगलकामना कर सकते हैं। चातुर्मास में महापर्व सम्वत्सरी भी आता है। यह चार माह व्यक्ति और समाज को एक सूत्र में पिरोने का भागीरथ प्रयास भी है।
- डॉ. दीपक जैन