भारत अपने ज्ञान और आदर्शों के कारण विश्वगुरु बना: पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया
पंचनद शोध संस्थान की वार्षिक व्याख्यानमाला का आयोजन रविवार को चंडीगढ़ में किया गया। इस समारोह की अध्यक्षता पंजाब के माननीय राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया ने की, जबकि मुख्य वक्ता के रूप में प्रख्यात विचारक प्रशांत पोल जी उपस्थित थे। इस अवसर पर मंच पर पंचनद शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रो. बृज किशोर कुठियाला, निदेशक डॉ. कृष्णचंद पांडेय और महासचिव सीए विक्रम अरोड़ा उपस्थित रहे। कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षा प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान (एनआईटीटीटीआर), सेक्टर-26, चंडीगढ़ में किया गया।

चंडीगढ़, 5 जनवरी 2025: पंचनद शोध संस्थान की वार्षिक व्याख्यानमाला का आयोजन रविवार को चंडीगढ़ में किया गया। इस समारोह की अध्यक्षता पंजाब के माननीय राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया ने की, जबकि मुख्य वक्ता के रूप में प्रख्यात विचारक प्रशांत पोल जी उपस्थित थे। इस अवसर पर मंच पर पंचनद शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रो. बृज किशोर कुठियाला, निदेशक डॉ. कृष्णचंद पांडेय और महासचिव सीए विक्रम अरोड़ा उपस्थित रहे। कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षा प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान (एनआईटीटीटीआर), सेक्टर-26, चंडीगढ़ में किया गया।
व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए पंजाब के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया ने अपने संबोधन में कहा कि भारत का इतिहास संघर्षों और विजय की एक लंबी यात्रा है। उन्होंने बताया कि यह वह देश है जिसने हजारों वर्षों तक विदेशी आक्रमणों का सामना किया और अपनी अद्वितीय संस्कृति को बचाए रखा। भारत की ताकत केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध है।
राज्यपाल कटारिया ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने बाहरी ताकतों से लड़ाई लड़ने के साथ-साथ अपने मन और आत्मा को भी कमजोर नहीं होने दिया। इसी कारण आज भी हमारी संस्कृति जीवित है और हमारे आदर्श स्थिर हैं। उन्होंने जोर दिया कि भारतीय संस्कृति का आधार केवल भौतिक समृद्धि नहीं, बल्कि नैतिकता, ज्ञान और मानवीय मूल्यों में निहित है।
राज्यपाल ने अपने वक्तव्य में वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, और लोककथाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि ये महान ग्रंथ हमें सिखाते हैं कि सत्य और नैतिकता की शक्ति हर संकट से बड़ी होती है। ये ग्रंथ केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं, बल्कि समाज को नैतिकता, सह-अस्तित्व, और सत्यनिष्ठा का पाठ पढ़ाने वाले साधन हैं।
उन्होंने कहा कि भारत तकनीकी और आर्थिक रूप से चाहे जितनी भी प्रगति कर रहा हो, लेकिन यह आवश्यक है कि हम अपनी संस्कृति और मूल्यों से जुड़े रहें। उन्होंने वर्तमान शिक्षा प्रणाली की आलोचना करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी शिक्षा प्रणाली हमारे अतीत की महानता को महत्व नहीं देती। इसके परिणामस्वरूप, हमारे युवा केवल नौकरी पाने और भौतिक सुखों तक सीमित रह गए हैं।
राज्यपाल ने कहा कि हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी शिक्षा प्रणाली को इस प्रकार से विकसित करें कि यह रोजगार देने के साथ-साथ हमारी नई पीढ़ी को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से भी जोड़े। उन्होंने जोर देकर कहा कि मंदिरों में होने वाले कार्यक्रम, कथाएँ, और रामलीलाएँ केवल मनोरंजन के साधन नहीं थे, बल्कि समाज को शिक्षित करने और जीवन मूल्यों को सिखाने के प्रभावी माध्यम थे।
राज्यपाल कटारिया ने कहा कि भारत ने तलवार की ताकत से नहीं, बल्कि अपने ज्ञान और आदर्शों से दुनिया का नेतृत्व किया। उन्होंने यह भी कहा कि आज कुछ ताकतें भारत को पुनः शक्तिशाली बनते नहीं देखना चाहतीं। इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए हमें अपने इतिहास और संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए संगठित प्रयास करना होगा। उन्होंने व्यक्तिवादी सोच की आलोचना करते हुए कहा कि आज का मनुष्य अपने और अपने परिवार तक सीमित हो गया है। यह दृष्टिकोण समाज और देश के प्रति हमारे कर्तव्यों से हमें दूर करता है। हमें समझना होगा कि जिस देश और समाज ने हमें बनाया है, उसके प्रति हमारी भी जिम्मेदारी है।
राज्यपाल ने आह्वान किया कि यह समय हाथ पर हाथ धरे बैठने का नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति और मूल्यों को पुनर्जीवित कर भारत को पुनः विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने का है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में न केवल समस्याओं का समाधान है, बल्कि यह आत्मविश्वास और प्रेरणा भी देती है। आवश्यकता केवल इसे समझने और अपनाने की है।
राज्यपाल कटारिया ने अपने संबोधन का समापन इस विश्वास के साथ किया कि यदि हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहे और अपने ज्ञान एवं आदर्शों को अपनाया तो भारत न केवल एक सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनेगा, बल्कि दुनिया में अपना खोया हुआ नेतृत्व भी पुनः प्राप्त करेगा।
पंचनद शोध संस्थान की 31वीं वार्षिक व्याख्यानमाला के अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में सभा को प्रख्यात चिंतक, विचारक और शोधकर्ता प्रशांत पोल ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि विभाजन की त्रासदी को न भूलते हुए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न न हों। केवल एक संगठित, सशक्त, और सहिष्णु समाज ही भारत की वास्तविक शक्ति हो सकता है।
डॉ. पोल ने आज की स्थिति और चुनौती पर कहा की आज भारत वैश्विक मंच पर एक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभर रहा है। उन्होंने कहा कि अगर हमें एक शक्तिशाली और एकजुट राष्ट्र बने रहना है तो हमें विभाजनकारी मानसिकता को समाप्त करना होगा। उन्होंने कहा कि इतिहास से सीखना हमारा दायित्व है। उन्होंने कहा कि एक संगठित, सशक्त और सहिष्णु समाज ही हमारी वास्तविक शक्ति हो सकता है।
इस अवसर पर पंचनद शोध संस्थान की 31वीं वार्षिक व्याख्यानमाला के अवसर पर संस्थान द्वारा प्रकाशित पंचनद शोध पत्रिका और दो पुस्तकों का विमोचन किया गया। इनमें से पहली पुस्तक ‘विचार प्रवाह’ संस्थान के अध्यक्ष प्रो. बृज किशोर कुठियाला द्वारा लिखित और यश प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है। दूसरी पुस्तक ‘क़ुरआन में मानवीय मूल्य एवं अधिकार’ दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स में पत्रकारिता विभाग के सहायक प्राध्यापक और दिल्ली प्रांत के सह समन्वयक डॉ. अमरेन्द्र कुमार आर्य द्वारा लिखित शोध आधारित कृति है। यह पुस्तक किताबवाले प्रकाशन समूह, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गई है।
संस्थान के महासचिव विक्रम अरोड़ा ने पंचनद शोध संस्थान का परिचय प्रस्तुत किया, जबकि विगत वर्ष का लेखा-जोखा संस्थान के निदेशक डॉ. कृष्ण चंद पांडे ने साझा किया। कार्यक्रम में संस्थान के 45 अध्ययन केंद्रों से आए लगभग 500 कार्यकर्ताओं ने सक्रिय भागीदारी की।