भारतीय उत्सव/वृंदावन में होली उत्सव में उड़ा गुलाल
-कमलेश भारतीय
वृंदावन विश्व में अपने होली उत्सव के लिए प्रसिद्ध है जैसे हिमाचल के कुल्लू का दशहरा जाना जाता है जिसे देशी विदेशी सब देखने और आनंद लेने आते हैं । ऐसे ही हमारे अन्य राज्यों के उत्सव प्रसिद्ध हैं । पंजाब के आनंदपुर साहिब का होला मोहल्ला भी विदेशियों के आकर्षण का केंद्र रहता है हर साल । पंजाब के खटकड़ कलां व हुसैनीवाला में शहीदों के मेलों में भी इतनी ही भीड़ जुटती है शहीदी दिवस पर । पुष्कर मेला भी काफी आकर्षित करता है विदेशी पर्यटकों को । हमारे देश के ऐसे कितने मेले हैं जो भारत की उत्सवधर्मिता को प्रदर्शित करते हैं ।
वृंदावन के होली उत्सव की शुरूआत में ही पहले दिन खूब गुलाल उड़ा । हम भी कैसे अज्ञानी लोग हैं जो वैलेन्टाइन तो मनाते हैं और उसके लिए बाजार सजाते हैं । फूल बिकते हैं महंगे महंगे । कभी चाॅकलेट तो टैडी बियर भेंट करते हैं । बाजार ने हमारे भारतीय उत्सवों को पीछे धकेल दिया है । वैलेन्टाइन मनाने का प्रचलन बढ़ा है और वसंत पंचमी पर पूल इंतजार करते रह जाते हैं । असल में वसंत पंचमी ही हमारा वैलेन्टाइन है । कालिदास के नाटकों में कितना प्यारा वर्णन मिलता है । अशोक के पेड़ को कोई नवयौवना अपने पैर से प्रहार करे तभी फूल खिलते हैं । यह संदेश है कि फूल खिलने के लिए प्रेम की भावना बहुत जरूरी है ।
भारतीय उत्सवों में होली और दीपावली आज भी देश विदेश में मनाये जाने वाले उत्सवों में पहले नम्बर पर हैं । क्रिसमस और दीपावली जम कर मनाई जाती है । दोनों में रोशनी और प्रकाश का संदेश दीपक या मोमबत्ती जला कर दिया जाता है । हम लोग भी सौहार्द्र में चर्च जाकर मोमबत्तियों जलाते हैं तो दूसरे धर्मों और विश्वासों के लोग भी दीपावली पर दीये जलाते हैं । ये संदेश देते हैं हमारे पर्व त्योहार ।
वैसे भी पुरूष और महिला की मित्रता का सबसे बड़ा उदाहरण कृष्ण और राधा का ही दिया जाता है । जबकि दोनों में यही मधुर संबंध था फिर भी राधा कृष्ण कहा जाता है न कि कृष्ण रुक्मिणी । होली पर वृंदावन और बरसाने दोनों में धूम मचती है । रंग गुलाल उड़ता है ।
कितनी फिल्मों में होली के गाने खासतौर पर प्रस्तुत किये जायें हैं । राजेंद्र बेदी ने तो एक पूरी फिल्म फागुन ही बना दी थी जिसका अंत नायक धर्मेंद्र द्वारा अपनी पत्नी को साड़ी उपहार मे देकर रंग डाल दिया है क्योंकि इसी बात पर संबंध खराब हुए थे और इसी पर आकर ज़िंदगी फिर शुरू होती है । इसके विपरीत सिलसिला फिल्म है जिसमें होली की उमंग में विवाहेतर संबंधों का राज खुल जाता है । कितना बड़ा संदेश दिया गया कि होली कैसे हमारे मन में उमंग और आनंद भर देती है । बचपन से बच्चे होली खेलते हैं और कुछ जीवन भर इसे मनाते हैं । जैसे हम पतंग उड़ाते हैं लेकिन फिर मुंशी प्रेमचंद की बड़े भाई साहब जैसे हो जाते हैं जो अपनी उमंग को मन में दबा लेते हैं पर चोरी चोरी करने की इच्छा भी रखते हैं ।
वृंदावन की उमंग अभी होली तक जारी रहेगी और यह ऐसा उत्सव है जिसमें एक रंग में रंगते चले जायेंगे ।
होली के दिन दिल मिल जाते हैं
रंगों मे रंग मिल जाते हैं ,,,,