हिसार यशपाल के घर मेहमान रहा और सीखी हरियाणवी : सोनम स्टोबिगायस

लेह लद्दाख के कलाकार सोनम स्टोबिगायस के साथ कमलेश भारतीय की एक दिलचस्प इंटरव्यू

हिसार यशपाल के घर मेहमान रहा और सीखी हरियाणवी : सोनम स्टोबिगायस
सोनम स्टोबिगायस।

-कमलेश भारतीय 
आप हैरान हो रहे हैं कि लेह लद्दाख के एक्टर का लखमीचंद जैसी हरियाणवी फिल्म में क्या काम? हैरान होने की कोई बात नहीं हुजूर। मैं लखमीचंद बनाने वाले यशपाल शर्मा का दोस्त हूं। ज्यादा समय दिल्ली गुजारता हूं और एनएसडी में भी यशपाल का जूनियर हूं। हरियाणवी कुछ कुछ समझ आती थी और कुछ प्रेक्टिस की। बस। बन गया हरियाणवी कलाकार। यह कहना है लेह लद्दाख के कलाकार सोनम स्टोबिगायस का। पापा आर्मी में थे। अब नहीं हैं। मम्मी गृहिणी  भाई और उनकी पत्नी व बच्चे सहित हम पांच लोग लद्दाख में ही कोरोना का लाॅकडाउन बिता रहे हैं। वैसे यहां पहले से ही दूर दूर घर होते हैं। दिल्ली या मुम्बई जैसा डर नहीं यहां कोरोना का। ज्यादा चिंता वाली बात नहीं। फिर भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं।
-यशपाल शर्मा से दोस्ती कैसे हुई ?
-पहले तो एनएसडी में इनका जूनियर हूं। फिर सुजीत सरकार की एक फिल्म में साथ साथ काम किया। दोस्ती हो गयी। 
-लखमीचंद में क्या रोल है?
-लखमीचंद जिस सोहन लाल के पास सीखने आता है उन्हीं के बावर्ची के रोल में। इस तरह लखमीचंद से जुड़ता हूं। शायद वह उत्तराखंड का रहा होगा। मेरा चेहरा देखकर यशपाल भाई को मेरा रोल मिल गया। इस फिल्म में मेरे ऊपर एक गाना भी फिल्माया गया है। मेरे वाले हिस्से की शूटिंग सिरसा में हुई।
-कभी हिसार आए हो आप?
-जी । यशपाल मुझे हिसार अपने परिवार से मिलाने ले आए थे। दो दिन रहा। घनश्याम भाई के परिवार से खूब मुलाकात हुई और भाभी के हाथों का खाना इस बावर्ची को मिलता रहा। खूब ठहाका लगाते बताया।
-कैसी है आपकी नज़र में लखमीचंद फिल्म?
-बहुत बढ़िया फिल्म बनाई है। मैं लगभग एक दर्जन डायरेक्टर्स के साथ काम कर चुका लेकिन यशपाल बहुत क्लियर डायरेक्टर रहा। लखमीचंद इसके अंदर यानी आत्मा तक बसी हुई है। दुआ है कि इसके समर्पण को लोग प्यार देंगे। बहुत जुनूनी होकर बनाई है।
-और कौन सी फिल्म में काम किया?
-मेघना गुलज़ार की फिल्म तलवार में जो बहुचर्चित कांड पर बनाई गयी जो तलवार दम्पत्ति की बेटी थी। फिर लास्ट मोंक यूट्यूब फिल्म में। सोनिक के रोल में। सलमान खान के प्रोडक्शन हाउस से। निखिल आडवाणी हीरो। 
-लद्दाख के यूटी बनने से क्या फर्क पड़ा?
-यहां शांति है और फ़िल्मों की शूटिंग साल भर चलती है। यूटी बनने से फायदा हुआ लेकिन कुछ शहरीकरण  हो जाने का खतरा भी है। वह नैसर्गिक लद्दाख नहीं रह पायेगा।