न न करते ज़िंदगी आकाशवाणी को अर्पित : डाॅ रश्मि खुराना
-कमलेश भारतीय
आकाशवाणी, जालंधर की प्रोग्राम प्रोड्यूसर रहीं डाॅ रश्मि खुराना ने न न करते सारी जिंदगी आकाशवाणी के नाम ही अर्पित कर दी । हालांकि पहला प्यार शिक्षक बनना था और दो वर्ष जालंधर व लुधियाना के कालेजों में प्राध्यापिका भी रहीं । मूल रूप से मेरठ के निवासी पापा बी पी कौशिक पहले प्रिंसिपल थे , फिर आकाशवाणी में संगीत प्रोड्यूसर । पटना केंद्र जाने पर चौथी कक्षा तक वहीं पढ़ाई हुई और फिर जालंधर लौटने पर पहले गवर्नमेंट जूनियर स्कूल , फिर नेहरू गार्डन के गवर्नमेंट स्कूल में पढ़ाई की । हंसराज कन्या महाविद्यालय से ग्रेजुएशन और एम ए हिंदी के बाद मेरठ से पीएचडी -साठोत्तरी हिंदी खंड काव्य : विरह का स्वरूप विषय पर । आकाशवाणी से पहले गुरु नानक गर्ल्स काॅलेज , लुधियाना व जालंधर के खालसा काॅलेज फार वीमैन में प्राध्यापिका वहीं लेकिन फिर जालंधर आकाशवाणी पर ट्रांसमिशन एग्जीक्यूटिव बनीं और फिर यूपीएससी से टेस्ट क्लियर कर प्रोग्राम प्रोड्यूसर बनीं और सारा जीवन आकाशवाणी को अर्पित कर दिया । मुझे भी मंत्र दिया था कि माइक के सामने आने पर बिल्कुल अंदाज अलग होना चाहिए । दो पैर घट तुरना पर तुरना मटक दे नाल । यानी बेहतर कार्यक्रम देने की भावना ।
-आकाशवाणी ही क्यों चुनी ?
-यह मेरी नस नस में थी न । पापा आकाशवाणी में थे तो घर पर रेडियो सुनती थी । घनघोर श्रोता । मां उर्मिला उपन्यास पढ़ती थीं तो मैंने भी शरद और आचार्य चतुरसेन के उपन्यास पढ़े बचपन में ही । वैसे डाॅक्टर बनने की इच्छा थी । पति प्रोफेसर मिले सुभाष चंद्र खुराना । दो बेटियां हुईं कोंपल और पल्लवी ।
-कौन कौन से डायरेक्टर याद आते हैं ?
-पी पी सेतिया, राजेंद्र प्रसाद और लक्ष्मेंद्र चोपड़ा । इनसे बहुत कुछ सीखा ।
-कौन कौन से प्रोग्राम ध्यान में आ रहे हैं ?
-परिमल । हिंदी साहित्यिक प्रोग्राम । इसी तरह अंग्रेजी प्रोग्राम रेनबो । नेत्रहीनों के लिए प्रोग्राम । ऐसे अनेक हिंदी व पंजाबी प्रोग्राम बनाये । महात्मा गांधी पर पंजाबी में प्रोग्राम बनाया जो बहुत लोकप्रिय रहा । इसे पुस्तक रूप भी दिया -सच दे तजुर्बे के रूप में ।
-और कौन सी पुस्तकें लिखीं ?
-रेडियो संस्मरणों की पुस्तक -बात निकलेगी तो ,,,। वैसे मेरी तेरह पुस्तकें हैं और सबसे नयी पुस्तक काव्य संग्रह -प्रीत पलाश । अनेक पुरस्कार भी मिले।
-क्या बदलाव आया आकाशवाणी में ?
-वक्त के साथ बदलाव आता ही है । पहले कर्म धर्म और संवेदना के साथ समर्पण था । अब इसमें कमी आई है । पापा ने भी कहा था जब आकाशवाणी में काम शुरू किया तो अपना दायित्व ध्यान में रखना हमेशा । डूब कर , मन लगाकर काम करना । कार्यक्रम बनाती बनाती मैं बनती चली गयी और सीखती चली गयी । कार्यक्रमों ने मुझे बनाया ।
-अब लक्ष्य क्या ?
-बिजी रहूं । बच्चों के बच्चों के साथ मस्त रहती हूं और कुछ न कुछ नया लिखने की लालसा बनी रहती है नये अनुभवों से । शीघ्र अपने घर जालंधर वापस आऊंगी ।
हमारी शुभकामनाएं डाॅ रश्मि खुराना को ।