नवीन तकनीकी विकास व ज्ञान से परिचित होना मीडिया विद्यार्थी के लिए जरूरीः प्रो. रबींद्रनाथ

डिजिटल मीडिया में करें मीडिया नैतिकता का पालनः प्रो. बंदना पाण्डेय

नवीन तकनीकी विकास व ज्ञान से परिचित होना मीडिया विद्यार्थी के लिए जरूरीः प्रो. रबींद्रनाथ

रोहतक, गिरीश सैनी। महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता और जनसंचार विभाग में आयोजित मीडिया संवाद कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट वक्ता जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली के सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के प्रो. रबींद्रनाथ मनुकोंडा ने शिरकत की।

विशिष्ट वक्ता प्रो. रबींद्रनाथ मनुकोंडा ने मीडिया उद्योग में प्रयुक्त होने वाले आवश्यक कौशल पर चर्चा करते हुए कहा कि मीडिया छात्रों को लिखित और मौखिक दोनों रूपों में संचार की कला में महारत हासिल करनी चाहिए। उन्हें समसामयिक घटनाओं से अवगत रहना चाहिए और बदलते सामाजिक, आर्थिक परिवेश पर नज़र रखनी चाहिए। नवीन तकनीकी विकास और तकनीकी ज्ञान से परिचित होना भी आज के मीडिया विद्यार्थी के लिए अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि शोधार्थियों को अपने शोध कार्य को प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित करना चाहिए और शोध के सभी पहलुओं में मजबूत आधार बनाना चाहिए।

कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि, गौतम बुद्ध विवि, नोएडा के जनसंचार अध्ययन विभाग से प्रो. बंदना पाण्डेय ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने जीवन को आरामदायक और आसान बना दिया है, लेकिन इसके साथ ही साइबर बुलिंग, फेक न्यूज, गलत सूचना, भ्रामक जानकारी जैसे कई खतरे भी पैदा हो गए हैं। उन्होंने पत्रकारिता के बदलते स्वरूप पर चर्चा की, जो टेलीप्रिंटर के युग से लेकर आज के डिजिटल मीडिया युग तक पहुंच गया है। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि वे तकनीक के मालिक बनें, न कि इसके गुलाम। डेटा से कहानी को विश्वसनीयता और प्रामाणिकता मिलती है, लेकिन इससे कहानी का सौंदर्य नहीं खोना चाहिए। प्रो. बंदना ने डिजिटल मीडिया में मीडिया नैतिकता का पालन करने पर जोर दिया। उन्होंने शोधार्थियों से कहा कि वे अपने काम में सैद्धांतिक ढांचे का उपयोग करें और अपने शोध का उपयोग सामाजिक कल्याण के लिए करें।

 

एमडीयू के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभागाध्यक्ष प्रो. हरीश कुमार ने प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि मीडिया उद्योग और मीडिया शिक्षा का परिदृश्य बदल रहा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस किसी भी काम में मानव स्पर्श का विकल्प नहीं हो सकता। समाज की सांस्कृतिक बारीकियों की पहचान मानवीय संवेदनाओं के बिना नहीं हो सकती। इसलिए एआई का उपयोग सावधानी से करना चाहिए। दोनों विद्वानों के व्यापक अनुभव की सराहना करते हुए प्रो. हरीश कुमार ने कहा कि मीडिया विमर्श पर ऐसी अकादमिक चर्चाएं छात्रों और शोधार्थियों के लिए अत्यधिक लाभदायक सिद्ध होंगी।

 

सहायक प्रोफेसर डॉ. नवीन कुमार ने आभार प्रकट किया। विद्यार्थी नितिका, सरिता और शोधार्थी रविकांत व कुलदीप ने विशेषज्ञों से सवाल पूछे। शोधार्थी प्रिया कुसुम ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस दौरान विभाग के प्राध्यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।