जीवन के विभिन्न मुद्दों को स्पर्श करती लघुकथाओं का संग्रह है- "जागते रहो"

लघुकथा-संग्रह -'जागते रहो' (मनोज धीमान) 

जीवन के विभिन्न मुद्दों को स्पर्श करती लघुकथाओं का संग्रह है-

हिन्दी साहित्य में लघुकथा नवीनतम विधा है। निश्चित तौर पर लघुकथा का विकास उत्तरोत्तर बढ़ा है। लघुकथा अपने छोटे से कलेवर के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराती है एवं कम समय में अपने कथ्य को संप्रेषित करने की क्षमता इसमें विद्यमान होती है। लघुता के कारण, अन्य विधाओं की तुलना में समकालीन पाठकों के बीच लोकप्रिय हो रही है। लगभग दो दशकों से लघु कथाओं का लेखन प्रचुर मात्रा में हो रहा है। कुछ विद्वानों/आलोचकों का मत है कि लघुकथा बीसवीं सदी की देन है लेकिन इतना तो तय है कि लघुकथा अपने समय को व्यक्त करने में सफल हो रही है।क्षणिक घटनाओं को भी,वृहद कथ्य के साथ बिंबो में कैद कर लेना ही लघुकथा सर्जक का उपक्रम है।
संक्षिप्तीकरण, व्यंग्य,तीखेपन की प्रस्तुति ,प्रमुखता से सामाजिक विसंगतियों, भ्रष्टाचार, सम्बंधों के खोखलेपन पर नश्तर की भाँति कम और चुटीले शब्दों से प्रहार कर उक्त संदेश को उजागर करती हैं। तीक्ष्णता,पूरे संवेग,कम समय एवं लघु आकार में त्वरित संवाद स्थापित करती है, जो साहित्य की अन्य विधाओं से स्वयं को अलग करती है।
मानव जीवन की विकृतियों/विद्रूपताओं को उसके स्वस्थ्य व सही दिशाबोध/दायित्व के निर्वहन के लिए प्रेरित करती है।
लघुकथा ने अपने स्वरूपगत, अपनी भाषा वैशिष्ट्य, सुगठित शिल्प के कारण अपनी स्वतन्त्र पहचान बनाई है। मुख्यतः कम शब्दों में अधिक कहने की सामर्थ्य, शब्दों का कसाव, प्रस्तुतिकरण की कला, लघुकथा का कौशल इसी में निहित है। वस्तुत: लघु कथाओं में संक्षिप्ता ,कसावट, प्रमाणिकता का गुण होना नितान्त आवश्यक है।
समसामयिक पकड़ व लेखक की ईमानदार कोशिश इस विधा में प्राण फूँक देती है।
लघुकथाओं के विषय में दिलचस्प बात यह है कि यह विधा, अंदर से बाहर की यात्रा की तरह है।यह विधा उस परत को उधेड़ती है जिस पर मनुष्य का ध्यान नहीं जाता है, वह जीवन रूपी चक्की में पिसता रहता है। लघुकथाएं जीवन में जागृत अवस्था में सचेतन रहती हैं।
"जागते रहो", सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार/पत्रकार/कथाकार मनोज धीमान द्वारा लिखित, ऐसा लघुकथा संग्रह है जो पूरे जीवन और समाज, परिवार के समग्र पक्षों को हूबहू दिखाने की ईमानदार कोशिश करता है। इस लघुकथा-संग्रह की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि वह बिना किसी शब्दजाल रूपी बंवडर का प्रदर्शन किये ही, बड़ी सहजता से हर छोटी से छोटी बात को अपनी कथा में पिरो देती है। इस लघुकथा-संग्रह में 81 लघुकथाएं संग्रहीत हैं। इस पुस्तक की भूमिका प्रोफेसर (डॉ) सुनील कुमार ने लिखी है जिसमें उन्होंने पूरी पुस्तक का सम्यक विवेचन किया है।
डॉ सुनील कुमार अपने आमुख में लिखते हैं --
"वाक्य छोटे हैं। भाषा - प्रवाहमय है। अंत में उद्देश्य और भी समाहित होता चला गया है। इनमें कथाओं का सहज प्रवेश हुआ है। संवाद-शैली से लघु कथाओं की मारक क्षमता बढ़ी है।" उक्त कथन का आंकलन कथा के भाषा और कथ्य के संदर्भ में बिल्कुल ही तर्कसंगत है। इस भागम-भाग में मनुष्य संकुचित दायरे में सिमटता जा रहा है, अपने निहित स्वार्थ से ऊपर उठ नहीं पा रहा है। इस अंधी दौड़ में कोई किसी के लिए खड़ा नहीं होना चाहता है, यहाँ तक कि खून के रिश्ते माँ, पिता,पति, पत्नी (सभी रिश्ते) चरमरा रहे हैं। सेवा, परोपकार, फ़र्ज़, प्रेम जैसे पवित्र और सात्विक गुण सभी जाते रहे हैं।
मनोज धीमान द्वारा लिखित लघुकथा-संग्रह में इन प्रश्नों को किस तरह उठाया गया है ?
'जागते रहो ' लघुकथा संग्रह में देखा जा सकता है कि संग्रह में संग्रहीत लघुकथा 'भविष्य के दर्शन ' उक्त संदर्भ में उत्तर को खोजा जा सकता है। कथा में पलायन करना ठीक नहीं बल्कि मनुष्य को डटकर मुकाबला करना चाहिए। कोई जगह सुरक्षित नहीं है, हर जगह पर आंतक फैला है, शिकारी अपनी फ़िराक़ में है। चहुँओर फैले इस आंतक के कहर को कथाकार अपनी लघुकथा 'घर वापसी' में करता है।
पुस्तकों के प्रकाशन के बावजूद भी पाठकों की संख्या में निरंतर गिरावट आई है।' रद्दी ' लघुकथा में,  कथाकार पुस्तकों को रद्दी के भाव में बिकने की चिंता व्यक्त की है। एक बेबस पिता अपने बीते दिनों को याद करता है, जहाँ बच्चे झुनझुना या अन्य खिलौने के द्वारा शारीरिक तौर पर मजबूत होते थे और चहकते थे,मगर आज के बच्चे मोबाइल फोन की गिरफ्त में कैद हो गये हैं। इस कथा को कथाकार ने अपनी लघुकथा 'झुनझुना ' में पिता के माध्यम से कही है।
'विदेशी धरती' लघुकथा में लेखक ने अपनी धरती, घर एवं रिश्ते के महत्व को रेखांकित करने की कोशिश की है, बिना रिश्तों के घर सूना हो जाता है, अपनों के साथ ही, घर की बगिया खिलती है अन्यथा अनजान जगह, अनजान धरती के बीच, मनुष्य अन्ततः नितान्त अकेला ही रह जाता है।
लघुकथाकार ने छोटी सी कथा के माध्यम से कई संदेश दिए हैं, जो पाठक/अध्येता अपनी अवस्था के अनुसार ग्रहण करता है।
'माँ की आँखें' लघुकथा में रिश्तों के प्रति अमानवीय व्यवहार, असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा पर दृष्टि गयी है कि कैसे आजकल के बेटों अपने माता-पिता को नजरंदाज कर जाते हैं। 'अंतिम निर्णय' लघुकथा में अभावों और संघर्षों में जूझती ऐसी माँ की दयनीय कथा है, जो आत्महत्या का निर्णय लेती है। लेखक ने यह भी बताने की कोशिश की है कि आत्महत्या करना समस्या का हल नहीं है। शीघ्र ही नायिका पात्र अपने बच्चे को उठा लेती है।
'काँच की चूड़ियाँ ' लघुकथा में बड़ी ही मार्मिक घटना है। कभी -कभार नन्हें बच्चे भी अपने मां बाप को लड़ते झगड़ते देखकर विस्मित होकर शांत हो जाते है। मनोज धीमान ने किसी न किसी कथा में मनोवैज्ञानिक स्पर्श भी किया है चाहे वह बाल-सुलभ चेष्टा या फिर मानव मन/व्यवहार में हाव भाव, भंगिमा की अजीबो-गरीब चेष्टाएं।
'अनहोनी' लघुकथा में कथाकार ने संकेतांक ढंग से सपेरे के माध्यम से कथा का ताना-बाना बुना है आखिरकार कथाकार ने सिद्ध किया है कि चोर की दाढ़ी में तिनका होता है चोरी और पाप छिपाने से छिपते नहीं है एक न एक दिन उसका सामना करना ही पड़ता है।
'मोर पंख ' लघुकथा आधुनिक परिवेश व जीवनशैली में  हो रहे बदलाव को लेकर है। टकराव और विचारों में मदभेद है। दो पीढ़ियों को देखा जा सकता है।
आदमी अब न चाहते हुए भी अपने आपको रिश्तों को बचाने हेतु , अपनी इच्छा को दबा करके समायोजित करना पड़ रहा है। अरमानों का गला भी घोंटना पड़ सकता है।
अगली लघुकथा 'असली डॉन' से है कौन कानून का रक्षक और कौन भक्षक कहना मुश्किल हो गया है। आजकल असली डॉन वह नहीं है जो पेशेवर चोर व डाकू है उनकी संख्या घटी है लेकिन जब वही कानून का रक्षक ही ,भक्षक बन जाएं तो फिर समाज कहा जाएगा? जुर्म को हवा देने वाले पहरेदार ही जुर्म को ख़त्म नही होना देना चाहते हैं लेखक ने बड़ी ही कुशलतापूर्वक इन मुद्दों पर चर्चा की है।
गृहिणियों की चालाकी , क्षुद्र मानसिक हलचल,लुक छिपाव को लेखक ने 'बैंगन ' लघुकथा में बड़े ही चुटीले और धारदार शब्दों में कथा को कहा है।
मनोज धीमान द्वारा लिखित लघुकथा-संग्रह "जागते रहो" में अन्तर्हित संदेश छिपे हैं जो वर्तमान परिस्थितियों/विसंगतियों/राजनीतिक चाल/परिवार के अन्तर्द्वंद/आपसी कलह, वैमनस्य, स्वार्थपन, बाजारवाद, कृत्रिमता, रिश्तों की कड़वाहट, टूटते रिश्तों के कारक तत्व, धर्म, संप्रदाय में पनपता मतभेद, आधुनिकता का लिबास आदि विषयों पर गंभीर चिंतन मनन करते हुए कथा में निर्वाह भी किया है।
'जागते रहो ', 'सोने की कलम' , प्राण -प्रतिष्ठा , 'बदलाव', 'मेरा मत' , 'खोने का दर्द ' , 'सूखे की मार' , 'गांव वापसी', 'संवेदना', 'मोहब्बत की दुकान ', 'मदर्स डे ', 'समाधान' आदि कथाओं में उपर्युक्त विषय के अनुरूप लघुकथाएं प्रासंगिक और हु-ब-हू समसामयिक पकड़ बनाए हुए हैं।
नि:संदेह मनोज धीमान द्वारा लिखित लघुकथा संग्रह में, संग्रहीत लघुकथाएं बाहरी दुनिया की तामझाम को छोड़कर , दैनिक जीवन की हर हरकत, छोटी से छोटी बातें, जो हमारे जीवन को प्रभावित कर सकती हैं।जीवन को सही और गलत दिशा में मोड़ सकती है, इसका खुलासा लेखक पूर्ण मनोयोग से ,कथाओं में वर्णित करता हुआ दिखाई देता है। आम जीवन की जीवन-शैली, आवश्यकता के साथ-साथ वाह्य जीवन की वास्तविकता को बड़ी ही तटस्थता एवं निर्भीकतापूर्वक बड़ी ही सहजता, सरलता से अपने कथ्य को आसान, बोलचाल की शब्दावली/संवाद को संप्रेषित करने में कथाकार पूर्ण सफल हुआ है।
-दिलीप कुमार पाण्डेय फगवाड़ा-पंजाब
 

लघुकथा कथा संग्रह - जागते रहो
कथाकार/लेखक -- मनोज धीमान
प्रकाशक --न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन
संस्करण --2024
मूल्य - 225 रुपये