जादुई अल्मारी
वो अल्मारी कितनी करिश्माई और जादुई थी मेरे जैसे नन्हें बच्चे के लिए । जब मैं होशियारपुर में अपने ननिहाल मां के साथ गर्मी की छुट्टियां बिताने जाता था ।
वो अल्मारी कितनी करिश्माई और जादुई थी मेरे जैसे नन्हें बच्चे के लिए । जब मैं होशियारपुर में अपने ननिहाल मां के साथ गर्मी की छुट्टियां बिताने जाता था । मौसी भी अपने बच्चों को लेकर आतीं । तब छुट्टियां हिल स्टेशनों पर नहीं बल्कि ननिहाल में ही गुजरती थीं । मेरे सबसे छोटे मामा नरेंद्र बहल तब एम ए हिंदी कर रहे थे और घर के ड्राइंग रूम में एक बड़ी कांच की अल्मारी थी जिसमें उनकी किताबें रखी रहती थीं लेकिन ताले में बंद । मौसी के बच्चे बाहर खेलते रहते लेकिन मैं उस जादुई अल्मारी को बड़ी हसरत भरी निगाहों से देखता रहता और सोचता कि काश , यह अल्मारी किसी तरह खुल जाए और देखूं कि इसमें कौन सी किताबें हैं । आखिर मुझे अल्मारी के पास खड़े एक बार नहीं बल्कि अनेक बार नरेंद्र मामा ने देखा तो मेरी मां से बोले -निर्मला । तेरा बेटा केशी । मेरी आल्मारी के पास झांकता रहता है । दूसरे बच्चों के साथ बाहर खेलने भी नहीं जाता । ऐसा लगता है कि यह किताबें देखना चाहता है । चलो । मैं इसे दिखा ही देता हूं यह रहस्यमय लोक ।
इस तरह मेरे मामा ने अल्मारी खोलते कहा कि देख तेरे लिए ताला खोल रहा हूं । किताबें हैं । इन्हें फाड़ना मत । प्यार से रखना और पढ़ना । मेरे सामने किताबों का जादुई संसार खुल गया । उस अल्मारी में ओशो रजनीश , निर्मल वर्मा और मोहन राकेश की किताबें थीं । निर्मल वर्मा और मोहन राकेश के कहानी संग्रह । ओशो के प्रवचन । हैरानी की बात है कि बचपन से लेकर आज तक ये तीनों मेरे प्रिय रचनाकार हैं । जब गर्मी की छुट्टियां खत्म हुईं और मैं मां के साथ नवांशहर लौटने लगा तब मामा ने मुझे मोहन राकेश का कथा संग्रह जानवर और जानवर उपहार में देते कहा कि बेटे यह पुस्तक तुम्हें पुस्तकों से प्यार के लिए दे रहा हूं आगे से खुद पुस्तकें खरीदा करना । मामा हमेशा पुस्तकें उपहार में नहीं दे सकेंगे ।
वह दिन और आज का दिन । न जाने कितनी पुस्तकें खरीदीं । जहां भी रहा पुस्तकों का वह जादुई संसार मेरे साथ रहा सदैव । नवांशहर से मोहाली /चंडीगढ़ और हिसार तक । मेरी पत्नी और मेरी बेटियां इनसे आजिज आ चुकीं लेकिन इनका जादू कम नहीं हुआ । रोज़ सुबह कोई नयी किताब मेरे हाथ में होती है । गीता के किसी नये अध्याय की तरह बांचता हूं इनको ।
अभी मेरे वे नरेंद्र मामा पंचकूला के निकट मनीमाजरा में रहते हैं । जब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से कथा संग्रह एक संवाददाता की डायरी पर मिले पुरस्कार के बाद मिलने गया तो मेरे गाल थपथपाते बड़े प्यार से बोले -मैंने तो तुझे किताबें पढ़ने के लिए दी थीं , अरे तूने तो लिख कर इनाम भी ले लिया । मुझे गर्व है तुम पर बेटा । किसी ने तो नाम रोशन किया । इसके बाद नवांशहर मां के पास गया था और उसने भी आशीर्वाद देते कहा कि यदि मेरे भाई ने वह अल्मारी न खोली होती तेरे लिए , तो पता नहीं तू क्या बनता । शुक्र है । वह अल्मारी खोल दी ।
आज मेरी मां नहीं । उसने कहा था कि मुझे पुरस्कार में से रुपये दे । मोहल्ले में लड्डू बांटने हैं और वे बांट कर आई थीं । पूरे पांच सौ के लड्डू और अपने लिए कुछ नहीं मांगा था । किताबों का यह संसार याद आया इन दिनों ओशो के छोटे भाई स्वामी शैलेंद्र सरस्वती से मिलने के बाद और उन्हें बताया कि कैसे मैं ओशो के सम्पर्क में आया था । ऐसे ही मोहन राकेश की पत्नी अनिता राकेश का इंटरव्यू लेने दिल्ली गया था तब बताया था कि मैं मोहन राकेश को कब से पढ़ने लगा था जब पूरी तरह समझता भी नहीं था । फिर निर्मल वर्मा से भी लगातार चिट्ठियों का सिलसिला बना रहा था और पंजाब विश्वविद्यालय में जब वे तीन दिन रहे थे तब उनका सान्निध्य भी प्राप्त हुआ और लम्बी इंटरव्यू भी प्रकाशित की । ये मेरे तीनों प्रिय लेखक हैं और रहेंगे ।
-कमलेश भारतीय