जगद्गुरु श्री शंकराचार्य ने भारतवर्ष को आध्यात्म के द्वंद्व से निकालकर एक नई दिशा दी हैः प्रो कैलाश चंद्र शर्मा
खानपुर कलां, गिरीश सैनी। भारतीय संस्कृति व आध्यात्म के पुरोधा जगद्गुरु श्री शंकराचार्य ने भारतवर्ष को आध्यात्म के द्वंद्व से निकालकर एक नई दिशा दी है। उन्होंने वेदों को सरल भाषा में समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया। भारतीय संस्कृति के कालजयी और यशस्वी उन्नायक शंकराचार्य के जीवन वर्षों की संख्या भले ही कम रही हो, पर उन द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या अनेक जीवन के समकक्ष है। यह उद्गार हरियाणा उच्चतर शिक्षा परिषद, पंचकूला के अध्यक्ष प्रो कैलाश चंद्र शर्मा ने बतौर मुख्य अतिथि भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय में आयोजित -'जगद्गुरु श्री शंकराचार्य जी के दर्शन' विषयक संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किए।
प्रो कैलाश चंद्र शर्मा ने अपने ओजस्वी संबोधन में कहा कि शंकराचार्य ने संवाद, शास्त्रार्थ तथा भारतीय वेदों, गीता और उपनिषदों पर भाष्य लिखकर यह प्रमाणित किया है कि भारतीय जीवन शैली श्रेष्ठ है। उन्होंने वर्तमान समय में शंकराचार्य के जीवन दर्शन को जानने की आवश्यकता पर बल दिया। प्रो कैलाश चंद्र शर्मा ने अपने संबोधन में भारतीय भाषा समिति की सराहना करते हुए कहा कि भारतीय भाषा समिति देश भर के उच्च शिक्षण संस्थानों में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य के व्याख्यान के लिए सहयोग कर रही है। इस व्याख्यान का उद्देश्य आदि गुरु शंकराचार्य के जीवन दर्शन को छात्र समुदाय के मध्य लाना है।
इस संगोष्ठी में अध्यक्षीय संबोधन करते हुए महिला विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो सुदेश ने कहा कि भारत के महानतम दार्शनिक शंकराचार्य का दर्शन आज भी प्रासंगिक है और इसे छात्रों तक सरल भाषा में पहुंचाने में शिक्षण संस्थान एक अहम भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह संगोष्ठी काफी अर्थपूर्ण है और ऐसे आयोजन हमारे विद्यार्थियों को अपनी संस्कृति और भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ने में सहायक सिद्ध होते हैं। कुलपति प्रो सुदेश ने कहा कि जगतगुरु श्री शंकराचार्य ने भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने लोगों को सही-गलत की दुविधा से निकालकर पूरे भारतवर्ष को एक सूत्र में बांधा और देशभर की यात्रा करते हुए चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। यह चारों ज्योति पीठ भारत की अखंडता एवं एकता के प्रतीक हैं।
इस संगोष्ठी में वक्ता के रूप में संबोधन करते हुए जेएनयू, नई दिल्ली के प्रो रजनीश कुमार मिश्रा ने कहा कि बहुप्रचार व दुष्प्रचार के कारण अद्वैत मत को लेकर अनेक भ्रांतियां समाज में व्याप्त हैं। उन्होंने अपने संबोधन में इन भ्रांतियां पर चर्चा करते हुए कहा कि भारतीय चिंतन शैली वैश्विक है। उन्होंने जगतगुरु शंकराचार्य को भारतीय संस्कृति का व्याख्याता बताते हुए भारतीय दर्शन पर भी चर्चा की। बतौर वक्ता, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की प्रो विभा अग्रवाल ने आदि शंकराचार्य के भाष्य प्रवाह पर अपने विचार रखते हुए कहा कि सभी दर्शन ग्रंथों का स्रोत वेद है। उन्होंने शंकराचार्य द्वारा रचित भज गोविंदम को भी उद्धृत करते हुए कहा कि लिखित ज्ञान को अक्षरशः ग्रहण करने की बजाय उसके भाव एवं तात्पर्य को ग्रहण करना महत्वपूर्ण है।
डीन, फैकल्टी आफ सोशल साइंस प्रो रवि भूषण ने मुख्य अतिथि एवं वक्ताओं का परिचय देते हुए स्वागत संबोधन किया तथा इस संगोष्ठी का संचालन किया। इस संगोष्ठी के कन्वीनर एवं डीन एकेडमिक अफेयर्स प्रो संकेत विज ने इस आयोजन द्वारा राष्ट्र चेतना की अलख जगाने में अहम सहयोग के लिए भारतीय भाषा समिति का आभार व्यक्त किया। उन्होंने मुख्य अतिथि एवं वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद प्रकट किया। बीपीएस महिला विश्वविद्यालय की ओर से मुख्य अतिथि एवं वक्ताओं को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ। इस दौरान विभिन्न संकायों के डीन, विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।