यादें जालंधर कीं- भाग छह
कौई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
-कमलेश भारतीय
सच! कितनी प्यारी पंक्तियाँ हैं :
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
प्यारे प्यारे दिन,
वो मेरे प्यारे पल छिन!
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन!
नहीं हम सब जानते हैं कि बीते हुए दिन कभी नहीं लौटते, बस उन दिनों की यादें शेष रह जाती हैं । मेरे पास भी बस यादें ही बची हैं, जालंधर में बिताये सुनहरी दिनों कीं! बात हो रही थी डाॅ तरसेम गुजराल के संपादन में प्रकाशित कथा संकलन 'खुला आकाश, की और उसमें प्रकाशित कथाकारों की ! इसमें खुद तरसेम गुजराल, रमेश बतरा, योगेन्द्र कुमार मल्होत्रा (यकम), राजेन्द्र चुघ, रमेंद्र जाखू, कमलेश भारतीय, सुरेंद्र मनन, विकेश निझावन और मुकेश सेठी जैसे दस कथाकार शामिल थे। आपस में हम सब मज़ाक में कहते थे कि हम दस नम्बरी लेखकों में शामिल हैं । हम में से विकेश निझावन अम्बाला शहर में रहते थे जिन्होंने आजकल "पुष्पांजलि' जैसी शानदार मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू कर रखा है। इनके पास मैं और मुकेश सेठी नवांशहर से अम्बाला जाते और उन बसंती दिनों में रात का सिनेमा शो भी देखते। विकेश निझावन की कहानियों को जालंधर दूरदर्शन पर नाट्य रूपांतरण कर प्रसारित किया गया तब उनकी खूब चर्चा हुई। यही नहीं उन्हें हिसार में प्रसिद्ध कवि उदयभानु हंस ने हंस पुरस्कार से भी पुरस्कृत किया। जिन दिनों मुझे हरियाणा ग्रंथ अकादमी का उपाध्यक्ष बनाया गया तब हिसार से चंडीगढ़ जाते या लौटते समय मैं ड्राइवर को उनके घर गाड़ी रोकने को कहता। विकेश निझावन का घर बिल्कुल मेन सड़क पर ही है और हम चाय की चुस्कियों के साथ पुराने दिनों को याद करते । इनके पापा डाॅक्टर थे।विकेश ने पुष्पगंधा' के कथा विशेषांक में मेरी कहानी भी चुनी। छोटे बच्चों का स्कूल यानी किनरगार्डन भी चलाते रहे ।
हम वरिष्ठ व चर्चित कथाकारों स्वदेश दीपक व राकेश वत्स के संग भी बैठते और कथा लिखने पर बातें करते करते कथा लेखन की बारीकियाँ भी सीखते! अफसोस आज न स्वदेश दीपक हैं और न ही राकेश वत्स! स्वदेश दीपक के प्रथम कथा संग्रह- अश्वारोही को हम दोनों ने राजेन्द्र यादव के अक्षर प्रकाशन से मंगवाया और खूब डूब कर, गहरे से पढ़ा । ये अलग तरह की कहानियों का संकलन है। स्वदेश दीपक फिर एच आर धीमान के सुझाव पर नाटक लिखने लगे और उनका लिखा नाटक-कोर्ट मार्शल न जाने देश भर में कहां कहां मंचित किया गया! फिर उन्होंने मेरे द्वारा दैनिक ट्रिब्यून के लिए हुई इंटरव्यू में कहा भी कि कहानियों के पाठक कम और नाटक के दर्शक ज्यादा होते हैं और इनका दर्शकों पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है । देर तक मन पर प्रभाव बना रहता है। दुख यह है कि स्वदेश दीपक के अंदर कहीं गहरे उदासी और आत्मघाती भावना किसी कोने में रहती थी जिसके चलते एक बार रसोई गैस सिलेंडर से खुद को जला लिया और पीजीआई, चंडीगढ़ में दाखिल करवाया गीता भाभी ने! उन दिनों तक मैं देनिक ट्रिब्यून में उपसंपादक हो चुका था। यह सन् 1990 के आसपास की बात होगी ! मैने संपादक विजय सहगल को यह जानकारी दी तो उन्होंने मेरे साथ फोटोग्राफर मनोज महाजन को भेजा कि उनसे हो सके तो कुछ बात करके आऊं! हम दोनों पीजीआई गये। बैड के पास गीता भाभी उदास बैठी थीं और मनोज ने पट्टियों में लिपटे स्वदेश दीपक की फोटो खींची और मैने रिपोर्ट लिखी- 'स्वदेश दीपक को अपनों का इंतजार' जिसमें चोट हरियाणा साहित्य अकादमी पर की गयी थी कि ऐसे चर्चित कथाकार की कोई सहायता क्यों नहीं की जा रही। मेरी रिपोर्ट का असर भी हुआ। अकादमी ने बिना देरी किये पांच हजार रुपये देने की घोषणा कर दी। इस रिपोर्ट की कटिंग बहुत साल तक मेरे पर्स में पड़ी रही। पता नहीं क्यों? तब तो स्वदेश दीपक बच गये क्योंकि अभी उन्हें हिंदी साहित्य को शोभायात्रा जैसा नाटक और मैने मांडू नहीं देखा जैसी कृतियाँ देनी थीं लेकिन फिर कुछ वर्षों बाद वही आत्मघाती भावना ने जोर मारा और वे बिना बताये घर से चले गये! कोई नहीं
जानता कि उनका अंतिम समय कहाँ और कैसे हुआ! राकेश वत्स भी पिंजौर जाते हुए बुरी तरह दुर्घटनाग्रस्त हुए और उनके इलाज़ उपचार में शास्त्री नगर में बनाया खूबसूरत मकान भी बिक गया लेकिन वे नही बच पाये! वैसे वे स्कूटर पर ही चंडीगढ़ आते जाते। हमने भी उनके स्कूटर की सवारी का लुत्फ चंडीगढ़ में अनेक बार उठाया। उनकी भी इंटरव्यू करने जब अम्बाला छावनी गया था तब अपना शानदार मकान दिखाते बड़े चाव से बताया था कि यह मकान मैंने अपनी मेहनत से बनाया है लेकिन अफसोस वही मकान बेच कर भी उन्हें बचाया न जा सका! राकेश वत्स सरस्वती विद्यालय नाम से प्राइवेट संस्था चलाते थे और उन्होंने 'मंच' नामक पत्रिका भी निकाली और 'सक्रिय' कहानी आंदोलन चलाने की कोशिश की जिसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। दोनों की कहानियों को मैंने हरियाणा ग्रंथ अकादमी की कथा समय पत्रिका में प्रकाशित किया और सम्मान राशि इनके परिवारजनों को भिजवाई। स्वदेश दीपक की कहानी महामारी और राकेश वत्स की कहानी आखिरी लड़ाई प्रकाशित की। तब इनकी पत्नी नवल किशोरी ने मुझे आशीष दी थी, आज वे भी इस दुनिया में नहीं है। स्वदेश दीपक की सम्मान राशि इनकी बेटी पारूल को भिजवाई जो अब इंडियन एक्सप्रेस में सीनियर पत्रकार हैं और उसका पंजाब विश्वविद्यालय में एडमिशन फाॅर्म लेकर देने मैं ही उसे लेकर गया था, प्यारी बेटी की तरह क्योंकि मैं दैनिक ट्रिब्यून की ओर से पंजाब विश्वविद्यालय की कवरेज करता था तो मेरी सीनियर डाॅ रेणुका नैयर ने पारूल को विश्वविद्यालय लेकर जाने को कहा था। पारूल आज भी मेरे सम्पर्क में है। राकेश वत्स के बेटे बल्केश से कभी कभार बात हो जाती है !
खैर! आप भी सोचते होंगे कि कहाँ जालंधर और कहाँ अम्बाला छावनी पर मैं और मुकेश सेठी एकसाथ अम्बाला छावनी और जालंधर जाते थे और बाद में चंडीगढ़ भी साथ रहा। मुकेश सेठी और जालंधर के किस्से कल आपको सुनाऊंगा!
आज यहीं विराम देना पड़ेगा यही कहते हुए कि
कोई लौटा दे मेरे बीते पल छिन!
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