मेरी यादों में जालंधर-भाग दो

वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी

मेरी यादों में जालंधर-भाग दो

-कमलेश भारतीय
जगजीत सिंह की आवाज में गायी यह  ग़ज़ल आप सब सुनते ही नहीं सराहते भी हैं :
वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी...
सुनते ही आप दाद देने लगते हैं और बार बार सुनना चाहते हैं और सुनते भी हैं। इस ग़ज़ल के लेखक थे जालंधर के ही सुदर्शन फाकिर और गायक जगजीत सिंह! जगजीत सिंह का जन्म बेशक श्रीगंगानगर में हुआ लेकिन ग्रेजुएशन डी ए वी काॅलेज, जालंधर से की और डाॅ सुरेन्द्र शारदा बताते हैं कि जगजीत सिंह व सुदर्शन फाकिर दोनों डी ए वी काॅलेज, जालंधर में इकट्ठे पढ़ते थे। वहीं इनकी जोड़ी बनी। सुदर्शन फाकिर मोता सिंह नगर में अपने भाई के पास रहते थे। 
जालंधर की ही डाॅ देवेच्छा भी बताती हैं कि जगजीत सिंह यूथ फेस्टिवल में सुगम संगीत में हिस्सा लेकर महफ़िल लूट लेते थे। डाॅ देवेच्छा ने यह भी बताया कि उनकी सहेली उषा शर्मा के घर भी जगजीत सिंह की ग़ज़लें सुनीं। उषा शर्मा भी यूथ फेस्टिवल में भाग लेती थी। उन दिनों जगजीत सिंह पर ग़ज़ल इतनी सवार थी कि जहाँ भी अवसर मिलता वे ग़ज़ल सुना देते थे। फिर तो जगजीत सिंह ग़ज़ल गायन में देश विदेश तक मशहूर हो गये। 
वैसे यह गाना भी आपने सुना होगा-बाबुल मोरा पीहर छूटत जाये! इसके गायक कुंदन लाल सहगल थे, जो जालंधर के ही थे। उन्होंने न केवल गायन बल्कि फिल्मों में अभिनय भी किया। इनके ही कजिन थे नवांशहर में जन्मे मदन पुरी और अमरीश पुरी जिन्हें उन्होंने फिल्मों में काम दिलाया और ये दोनों भाई विलेन के रोल में खूब जमे। सहगल की स्मृति में दूरदर्शक केंद्र, जालंधर के सामने बहुत खूबसूरत सहगल मैमोरियल बनाया गया है। एक मशहूर शायर हाफिज जालंधरी भी हुए हैं। व्यंग्यकार दीपक जालंधरी भी याद आ रहे हैं। 
जालंधर की बात करें और उपेंद्रनाथ अश्क को कैसे भूल सकते हैं। इन्होने कथा, उपन्यास और एकांकी में नाम कमाया। इनके पिता रेलवे में थे तो कभी राहों नवांशहर में पोस्टिंग होगी तब इन्होंने जोंक हास्य एकांकी लिखा जिसमें नवांशहर का खास जिक्र है। अश्क पंजाबी पत्रिका प्रीतलड़ी में भी कुछ समय संपादन में रहे। फिर इलाहाबाद बस गये और अपना प्रकाशन भी खोला। इनका उपन्यास बड़ी बड़ी आंखें व कहानी डाची भी पंजाब विश्वविद्यालय के हिंदी पाठ्यक्रम में पढ़ने को मिलीं। 
रवींद्र कालिया भी जालंधर से ही निकले और फिर धर्मयुग, ज्ञानोदय व नया ज्ञानोदय पत्रिकाओं के संपादन से जुड़े रहे। इनकी लिखी संस्मरणात्मक आत्मकथा गालिब छुटी शराब व काला रजिस्टर, नौ साल छोटी पत्नी जैसी रचनायें खूब चर्चित रहीं। इनकी पत्नी ममता कालिया इन पर रवि कथा नाम से बहुत ही शानदार पुस्तक यानी संस्मरण लिख चुकी हैं। वह पुस्तक भी चर्चित रही। अभी वे इसका दूसरा भाग लिख रही हैं। ममता कालिया गाजियाबाद में रहती हैं। रवींद्र कालिया ने शुरुआत में हिंदी मिलाप में उप संपादक के रूप में काम किया। काफी साल ये भी इलाहाबाद रहे। 
बहुचर्चित कथाकार मोहन राकेश भी जालंधर से जुड़े रहे और डी ए वी काॅलेज में दो बार हिंदी प्राध्यापक लगे। दूसरी बार हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे। इनके अनेक रोचक किस्से जालंधर से जुड़े हुए हैं कि ये क्लास काॅफी हाउस में भी लगा लेते थे। मोहन राकेश ने कहानियों के अतिरिक्त तीन नाटक लिखे-आषाढ़ का एक दिन, आधे अधूरे और लहरों के राजहंस। चौथा नाटक अधूरा रहा जिसे बाद में इनके मित्र कमलेश्वर ने पैर तले की ज़मीन के रूप में पूरा किया। मोहन राकेश के आषाढ़ का एक दिन और आधे अधूरे नाटक देश भर में अनेक बार खेले गये। ये नयी कहानी आंदोलन में कमलेश्वर व राजेन्द्र यादव के साथ त्रयी के रूप में चर्चित रहे। इनकी कहानी उसकी रोटी फिल्म भी बनी और ये एक वर्ष सारिका के संपादक भी रहे पर ज्यादा समय फ्रीलांसर के रूप में बिताया। इन्होंने ज्यादा लेखन सोलन व धर्मपुरा के आसपास लिखा। 
खालसा काॅलेज, जालंधर में हिंदी विभाग के अध्यक्ष डाॅ चंद्रशेखर के बिना भी पुराना जालंधर पूरा नहीं होता। इन्होंने कटा नाखून जैसे अनेक रेडियो नाटक लिखे और पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की जीवनी भी लिखी। फगवाड़ा से पत्रिका रक्ताभ भी निकाली। बाद में डाॅ चंद्रशेखर पंजाबी विश्वविद्यालय,  पटियाला के हिंदी विभाग में रीडर रहे लेकिन दिल्ली से लौटते समय कार-रोडवेज बस में हुई टक्कर में जान गंवा बैठे। एक प्रतिभाशाली लेखक असमय ही हमसे छीन लिया विधाता ने! इनके शिष्यों में कुलदीप अग्निहोत्री आजकल हरियाणा साहित्य व संस्कृति अकादमी के कार्यकारी  उपाध्यक्ष हैं। डाॅ कैलाश नाथ भारद्वाज, मोहन सपरा और डाॅ सेवा सिंह,डाॅ गौतम शर्मा व्यथित इनके शिष्यों में चर्चित लेखक हैं। बाकी अगले भाग का इंतज़ार कीजिये। 
एक बात स्पष्ट कर दूं कि ये मेरी यादों के आधार पर लिखा जा रहा है। मैं जालंधर का इतिहास नहीं लिख रहा । कुछ नाम अवश्य छूट रहे होंगे। अगली किश्तों में शायद उनका जिक्र भी आ जाये।  

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