सूने साज, क्या सुनेगी सरकार?/कमलेश भारतीय 

कोरोना के इस दौर में कलाकारों का दर्द बता रहा है यह लेख  

सूने साज, क्या सुनेगी सरकार?/कमलेश भारतीय 
कमलेश भारतीय।

जैसा कोरोना के चलते संकट है , उसके चलते हर छोटा या बड़ा वर्ग परेशान है । छोटे छोटे काम धंधे करने वाले बेरोजगारी की कगार पर पहुंच गये हैं । प्रवासी मजदूरों को सड़कों पर बदहाल पहले कभी नहीं देखा होगा । छोटे छोटे दुकानदार सरकार की लेफ्ट राइट की नीति का विरोध करने पर उतर आए । शराब के ठेके खुलवाने के लिए तो बड़ा शोर मचा लेकिन कलाकार किस हाल में हैं या पहुंच गये हैं , इसकी चिंता किसी ने नहीं की । वे कलाकार जो हमारी महफ़िलें सजाते थे , हमें अपनी प्रतिभा से प्रभावित करते थे और हमारे उदास पलों को खुशी में बदल देते थे, वही कलाकार आज खुद उदास हैं । उनके साज सूने पड़े हैं और सभागार खाली । उनके चेहरे मायूस हैं और हंसी गायब । जो रोज़ी रोटी कमाते थे , वह छिन गयी । जो काम करते थे , उसका आधार ही नहीं रहा । धरती पांव के नीचे से खिसक गयी । इसीलिए इंदौर की प्रेक्षा मेहता ने आत्महत्या कर ली और मनजीत ने भी मुम्बई में यही कदम उठाया । नागिन के रूप में लोकप्रिय मौनी राॅय भी डिप्रेशन की दस्तक महसूस कर रही हैं । सिर्फ दो फिल्म और लम्बे बेरोजगार दिन । 
इन्हीं स्थितियों को देखते हिसार , रोहतक, भिवानी और कुरूक्षेत्र में कलाकारों ने खाली कुर्सियां और साज रख कर विरोध प्रदर्शन कर सरकार का ध्यान अपनी हालत की ओर आकर्षित करने की कोशिश की है । सरकार से निवेदन किया है कि जैसे अन्य वर्गों का ध्यान रखा जा रहा है या उन्हें आर्थिक पैकेज दिए जा रहे हैं तो हम कलाकारों ने क्या गुनाह किया है ? हमारी भी सुनिए और हमें पेंशन लगा दीजिए या आर्थिक पैकेज की व्यवस्था कीजिए । बात सही है । मांग सही है । कलाकारों को लगता है कि अभी कोरोना संकट के चलते सांस्कृतिक कार्यक्रम निकट भविष्य में नहीं होने वाले तो फिर वे क्या करें ? कहां जाएं ? कलाकारों की सुनिए सरकार । यदि हमारी आवाज़ आप तक पहुंच रही हो तो ...कहीं दुष्यंत कुमार के शब्दों में- 
तुझको पुकारती हुई आवाज़ 
खो न जाए कहीं ....