थोड़ा सा भरम तो रहने दें नेताजी 

पत्रकार कमलेश भारतीय की कलम से ताज़ा हालात पर उनका नज़रिया

थोड़ा सा भरम तो रहने दें नेताजी 
लेखक।

ऐ जाने वफा यह जुल्म न कर 
थोड़ा सा भरम तो रहने दे 
महफिल में तमाशा बन जाएं 
इस दर्जा सताना ठीक नहीं ....
आज जब हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और कैथल के पूर्व विधायक के बयान देखे और पढ़े तब होंठों पर सहज ही इस गीत की पंक्तियां आ गयीं । आखिर प्रदेशवासियों के दुख दर्द की बात उठाना विपक्ष का काम है । जब कोरोना काल में आप लाॅकडाउन में फंसे लोगों पर नये टैक्स लगायेंगे तो विपक्ष तो उंगली उठायेगा ही । बसों के किराये बढ़ा देना , मार्केट फीस की बात हो या फिर भर्तियां एक साल के लिए रोक देने की बात हो तो आप यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि विपक्ष आंख मूंद कर या मूक दर्शक बन कर बैठा रहेगा ? इसके जवाब में जिस तरह से मुख्यमंत्री ने तर्क दिए हैं वे बहुत गरिमापूर्ण नहीं । सीधे रणदीप सुरजेवाला की पेंशन बता कर यह कहना कि उन्हें नहीं  लगता कि सुरजेवाला ने प्रतिमाह मिल रही 1,68 लाख रु की पेंशन में से इस मुश्किल घड़ी में राहत कोष में कुछ अर्पण किया हो । इसकी प्रतिक्रिया में रणदीप सुरजेवाला ने भी कमी नहीं छोड़ी और गरिमा नहीं रखी । बताया कि मुख्यमंत्री भी पिछले पांच साल से लगभग पांच छह करोड़ रु ले चुके हैं , उन्होंने क्या दिया है ? यह स्तर देखकर ही कहना पड़ा कि ऐ जाने वफा यह जुल्म न कर । थोड़ा सा भरम तो रहने दो नेताओ । आखिर आप एक दूसरे की तनख्वाह और भत्तों में क्यों उलझ रहे हो ? इस समय कोरोना के संकट से बाहर निकलने का क्या उपाय है , इस पर विचार करो । पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सही कहा था कि यह समय दलगत राजनीति का नहीं है । यह समय मिल कर इस संकट का सामना करने का समय है । आपस में निजी छींटाकशी तक उतरने की यह प्रतियोगिता देखकर जनता पर क्या असर पड़ेगा ? मुख्यमंत्री और अनिल विज कह रहे हैं कि यह समय ओछी राजनीति करने का नहीं है । सचमुच । यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे कठिन समय पर हम निजी आरोप प्रत्यारोपों में उलझे हैं । महाभारत की बात हमेशा याद आती है कि दोनों ही पक्षों ने कुछ कम और कुछ ज्यादा एक जैसा व्यवहार ही किया है । नियमों का पालन दूर बल्कि नियमों को अपने अपने पक्ष में तोड़ा मरोड़ा है । कुछ लिहाज कीजिए एक दूसरे की । गरिमा बनाये रखिए । यह समय इसके लिए नहीं है । वैसे राजनेताओं से संत बनने या संतों जैसा व्यवहार किए जाने की उम्मीद बेवकूफी ही कही जायेगी ।