फिर तेरी कहानी याद आई ...फिर तेरा अफसाना याद आया/कमलेश भारतीय
राजनीति भी एक तपस्या ही है। ऋषि विश्वामित्र की तरह जिसकी तपस्या भंग हो गयी वह फिर कहीं का नहीं रहता।
चंडीगढ़ के सेक्टर 63 में तीसरी मंजिल पर स्थित एक आवास से अपनी महिला मित्र को मिलने गये भाजपा नेता चंद्रप्रकाश कथूरिया ने डोरबेल बजते ही खतरा भांपा और कपड़े को गांठ लगा पिछले दरवाजे से नीचे कूद गये पर हाय री किस्मत। गांठ जल्दी में लगाई थी। बीच राह खुल गयी और नेता जी धड़ाम से नीचे आ गिरे। दोनों पांव चोटिल। वीडियो अलग वायरल हो रहे हैं। अस्पताल में भर्ती हुए। पार्टी की फजीहत शुरू हुई तो पार्टी अध्यक्ष तुरत फुरत डैमेज कंट्रोल करने आगे आए और नेता जी को छह साल के लिए पार्टी से बाहर कर दिया। वे नेता जी करनाल से अपनी राजनीति चलाते हैं और मुख्यमंत्री से पहले करनाल से भाजपा टिकट के दावेदार थे। टिकट नहीं मिली पर कुर्बानी के बदले शूगरफैड की चेयरमैनी मिल गयी। फिर टिकट मांगी लोकसभा की पर नहीं मिली लेकिन विशेष आमंत्रित सदस्य का सम्मान मिला। पर अब जो पार्टी को दिया उससे पार्टी को उन्हें बाहर निकालने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था।
इस कहानी से आप यह न सोचिए कि इससे पहले हरियाणा में ऐसी प्रेम गाथा हुई ही नहीं। बहुत रंग-बिरंगी प्रेम गाथा। फिर तेरी कहानी याद आई चांद मोहम्मद की। यानी अपने हिसार के प्यारे राज दुलारे चंद्रमोहन की अनुराधा बाली से प्रेम कथा। किसी माॅल में अचानक सुंदरी दिखी और अपने उपमुख्यमंत्री महोदय की तपस्या उसी तरह भंग हो गयी जैसे विश्वामित्र की मेनका को देखकर भंग हो गयी थी। खोज निकाली और प्रेम प्रस्ताव भी रख दिया। प्रेम कथा की खुशबू हरियाणा क्या, सारे देश में फैल गयी भीनी भीनी। राज दरबार में शिकायत लगी तो हाथों में हाथ डाल अपने चांद मोहम्मद सामने आ गये फिजां को लेकर। फिर तेरी कहानी याद आई। ठोकर मार दी डिप्टी सीएम के पद को। तख्तो ताज लौटा दिया। प्रेम के आगे क्या चीज़ है यह? ऐसा प्रेम कुछ दिन रहा। फिर समाज आया, राजनीति आई और दांव पेंच आए। आखिर इतने पचडों के बीच प्रेम कहानी कभी चली है? फिजां दम तोड़ गयी और चांद मोहम्मद अपना तख्तो ताज आपस लेने दौड़ा। फिर कौन देता है? आज तक राजनीति के हाशिए पर है चांद मोहम्मद। बेटे के लिए भी टिकट नहीं मिलती। वैसे तो एक मंत्री महोदय किसी एयर होस्टस के प्रकरण में भी चर्चित हुए। यह कहानी भी कम चर्चित नहीं रही। हिसार के बांके जवान कब क्या कर डालें, पता नहीं चलता। मजेदार बात है कि भाजपा नेता और हमारे चंद्रमोहन के नाम में भी चंद्र की समानता है। अभी तक वह महिला सामने नहीं आई। मीडिया खोज निकालेगा किसी नयी फिजां को।
राजनीति भी एक तपस्या ही है। ऋषि विश्वामित्र की तरह जिसकी तपस्या भंग हो गयी वह फिर कहीं का नहीं रहता। अब चंद्र का क्या होगा रे कालिया?