उड़ गये उड़न सिख मिल्खा सिंह 

उड़ गये उड़न सिख मिल्खा सिंह 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
देश दुनिया में उड़न सिख के रूप में जाने जाते मिल्खा सिंह आखिर उड़ गये इस जहां से और बिछुड़ गये हमसे । पांच दिन पहले इनकी धर्मपत्नी निर्मल कौर भी कोरोना की लपेट में आकर चली गयीं और उन्हें बेटे ने बताया भी नहीं था लेकिन आखिर जब उनका विदा होने का समय आ गया तब उनके कान में कह दिया -पापा । आप वहीं जा रहे हैं जहां मम्मा गयी हैं । निर्मल कौर भी बाॅलीवाल टीम की कैप्टन रही थीं । दोनों खिलाड़ी पति पत्नी लम्बी उम्र तक फिट एंड फाइन रहे । यह नयी पीढ़ी के लिए एक अनुपम उदाहरण कहा जा सकता है । 
मैं जब खटकड़ कलां के आदर्श स्कूल  में हिंदी प्राध्यापक नियुक्त हुआ तो लाइब्रेरी का इंचार्ज भी बना दिया गया । मैं नहीं जानता था कि इनकी जीवनी अपनी लाइब्रेरी में है । हमारी खेल प्रशिक्षक चरणजीत कौर आईं और उसने लाइब्रेरी को खंगालते इनकी जीवनी ढूंढ ली और फिर उसने ही नहीं हमने भी पढ़ी । अब जीवनी का जिक्र आया है तो फिल्म भाग मिल्खा भाग का जिक्र भी आयेगा । फरहान अख्तर ने यह फिल्म बनाई और खुद हीरो की भूमिका भी अभिनीत की । हालांकि मिल्खा सिंह इससे ज्यादा संतुष्ट तो नहीं हुए और कहा भी कि उनके जीवन संघर्ष को दो तीन घंटे की फिल्म में कैसे समेटे जा सकता है ।  भारत पाक के बंटवारे में मिल्खा सिंह ने बहुत कुछ खोया और देखा । पर जीवन की लालसा और संघर्ष कभी नहीं छोड़ा यानी अपनी मेहनत से अपनी किस्मत लिखी और यही बात नयी पीढ़ी को भी सिखाई कि किस्मत लिखना अपने हाथ में है , किसी दूसरे के बाद में नहीं । यह भी कि एक समय दौड़ के लिए जूते भी नहीं थे लेकिन वही मिल्खा सिंह उड़न सिख बन गये । इसीलिए रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां याद आ रही हैं :
जीवन उनका नहीं युधिष्ठिर जो इससे डरते हैं 
जीवन उनका जो चरण रोप निर्भय होकर लड़ते हैं...
यह अरण्य झुरमुट जो काटे अपनी राह बना ले ...
संकट सबके जीवन में आते हैं जो इनके सामने घुटने टेक देते हैं वे कुछ नहीं बनते लेकिन जो इनका मुकाबला करते हैं और संघर्ष करते हैं वे मिल्खा सिंह बन जाते हैं । कल वैसे भी योग दिवस आ रहा है और योग दिवस भी अपने को फिट रखने का दिन है । मिल्खा सिंह आखिरी दिनों में भी चढ़दी  कला में रहे और यही कहते रहें कि दो चार दिन में ठीक हो जाऊंगा । एक बार तो ठीक होकर घर आ भी गये लेकिन दोबारा कोरोना ने लपेट लिया तो फिर बच न पाये । मालूम है कि सन् 2001 में मिल्खा सिंह ने अर्जुन अवार्ड लेने से मना कर दिया यह कहते हुए कि आजकल अवार्ड मंदिर के प्रसाद की तरह बांटे जाते हैं । उन्होंने कहा कि पद्मश्री के बाद अर्जुन अवार्ड के लिए चुना गया । 
मिल्खा सिंह का सबसे बड़ा संदेश है कि मेरे लिए हर दिन चुनौतीपूर्ण रहा लेकिन मैंने हार नहीं मानी। हर चुनौती को खुशी खुशी स्वीकार किया और अपनी किस्मत को मेहनत से बदला । यही अपनाइए जीवन में कि हाथों की लकीरों को बदलना सीखो । 
यह खेल नहीं हाथों की चंद लकीरों का...
यह खेल है तदबीरों का ....