हिल रहा है राजस्थान, वर्चुअल रैली के दिन/ कमलेश भारतीय
राजनीति को लेकर बहुत प्रश्न उठ रहे हैं लेखक के मन में
कोरोना का संकट भाजपा ने खत्म मान लिया और देश भर को आत्मनिर्भरता का संदेश देकर मुक्ति पा ली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने। लाॅकडाउन से अनलाॅक की प्रक्रिया शुरू कर दी। सब कुछ खोल दिया। जहां तक कि भगवान भी लौट आए आठ जून से। जैसे सब कुछ सामान्य। ताली थाली बजाई, मोमबत्तियां जलाईं और पुष्प वर्षा करवा दी। अब दिल्ली मे वही कोरोना वारियर अपनी तनख्वाह के लिए तड़प रहे हैं। इधर अमित शाह सक्रिय हुए और उधर राजस्थान की कांग्रेस सरकार का सिंहासन डोलने लगा जैसे कोई भूचाल आने के संकेत मिल रहे हों। भगदड़ मच गयी। अशोक गहलोत को विधायकों की सुध लेनी पड़ी और भाजपा पर आरोप कि पच्चीस पच्चीस करोड़ रुपये कीमत लगाई है कांग्रेसी विधायकों की। दस करोड़ एडवांस और बाकी काम पूरा होने पर। काम क्या? राजस्थान की सरकार गिराने का। बोलो कबूल? अब ऐसी ऑफर कौन छोड़ देगा भला? मंदी का ज़माना है। न कुछ आना है, न कुछ जाना है। लूट सके तो लूट। फिर लूटेगा कब? यही वक्त है करले पूरी आरज़ू। अशोक गहलोत के जवाब में भाजपा का वही रचा रटाया जवाब कि अपना घर संभलता नहीं, हमें किस बात का दोष? आपको कैसा दोष? आप तो निर्दोष और निष्कलंक हो। सारा दोष कांग्रेस का है। जैसे गोवा में, जैसे मणिपुर में, जैसे अभी अभी गुजरात में। शायद जल्द महाराष्ट्र में। सारा दोष कांग्रेस का। जैसे मध्य प्रदेश में। सरकारें गिराने का मंत्र है अमित शाह के पास। वर्चुअल रैलियां शुरू कर रखी हैं। अभी हरियाणा की बारी आने वाली है। बिहार और पश्चिमी बंगाल में विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू और इसी का तोड़ हैं ये वर्चुअल रैलियां। एलईडी कहां से आ रहे हैं? यह सारा पैसा अगर प्रवासी मजदूरों के लिए खर्च होता तो वे बेचारे बिन मौत न मरते। ज्योति को साइकिल चला कर बारह सौ किलोमीटर का सफर तय न करना पड़ता। रेलगाड़ी की पटरियों के बीच ये प्रवासी मजदूर कट कर मरते नहीं। यह सब सोशल मीडिया के सवाल हैं। कांग्रेस जो बयान देती है वे सब राजनीति और आप जो करते हैं वह सब धर्म कर्म का काम? आखिर सिर्फ चुनाव जीतने पर ही आपकी सारी रणनीति क्यों है? कोरोना के लिए आत्मनिर्भरता का संदेश? बस। कोई तो लोकलाज, कहीं तो लोकलाज होती होगी? कहीं तो लोकतंत्र बचा होगा? राजस्थान का संकट लाया गया है न कि आया है। मध्य प्रदेश में लाया गया था। यह स्वस्थ लोकतंत्र तो नहीं है। कैसा भारत बनाओगे? कैसा भारत देकर जाओगे? सोचिए।