बड़ा पप्पू , छोटा पप्पू और गप्पू/कमलेश भारतीय
देश के राजनेता अपनी अभद्र भाषा शैली से जनता के बीच अपनी गरिमा कम क्यों करते हैं? इसी प्रश्न को उठा रहे हैं पत्रकार कमलेश भारतीय
यह क्या अंदाज है गुफ्तगू का , गालिब एक शेर में पूछते हैं । राजनेताओं से कौन पूछे कि क्या अंदाज है यह बयानबाज़ी का ? हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला के बीच यह अंदाज कुछ ज्यादा ही गुल खिला रहा है । पहले विधानसभा के वेतन को लेकर दोनों में तू तू मैं मैं की नौबत आई तो अब एक को गप्पू तो दूसरे को छोटा पप्पू कहने तक आ गयी । मुख्यमंत्री खट्टर कह रहे हैं कि जो शख्स पंद्रह साल में मात्र इक्कीस बार ही विधानसभा गया हो , वह कैसा राजनेता ? मुख्यमंत्री ने अति उत्साह में कैथल में मीडिया के सामने रणदीप सुरजेवाला को छोटा पप्पू तक कह डाला । शायद यह इसलिए कि एक दिन पहले ही रणदीप सुरजेवाला ने मुख्यमंत्री को गप्पू कह दिया था । वैसे तो विपक्ष का काम है मुद्दे उठाना । विपक्ष ने धान की खेती और शराब घोटाले का मुद्दा उठाया । इस पर मुख्यमंत्री ने सीधे कैथल जाकर किसानों के बीच बात करने का मन बनाया । वे गये भी और अपनी ओर से समझाया भी कि जलस्तर कम देखते हुए धान की खेती अगेती करने से कितना नुकसान हो सकता है । इसके बावजूद उन्होंने कैथल के मीडिया में सुरजेवाला को लेकर रोचक टिप्पणी भी कर डाली । बड़ा पप्पू राहुल गांधी को बताया तो छोटा पप्पू सुरजेवाला को ।
इस तरह के रोचक नामकरण पुराने समय से चले आ रहे हैं । श्रीमती इंदिरा को कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता गूंगी बहरी गुड़िया समझ कर लाये थे लेकिन वे दुर्गा बन कर सामने आईं । अरविंद केजरीवाल को नौटंकीबाज , ड्रामेबाज या क्या क्या नहीं कह कर नवाजा गया लेकिन उन्होंने दो दो बार भाजपा कांग्रेस को दिल्ली में बुरी तरह पराजित किया । इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चायवाला और फेंकू कहा गया और वे दो बार लगातार बेहतर प्रदर्शन कर प्रधानमंत्री बने । लालबहादुर शास्त्री को नन्हे कहा जाता था लेकिन उन्होंने सिर्फ डेढ़ वर्ष के अपने कार्यकाल में आज तक लोगों के दिलों में अपनी छाप बनाये रखी है । जय जवान , जय किसान को कोई नहीं भूला । पी वी नरसिम्हा राव खुद चाणक्य के नाम से कांग्रेस की आलोचना लिखते थे और उन्होंने पूरे पांच वर्ष सफलतापूर्वक शासन किया । जयललिता अम्मा के रूप में लोकप्रिय रहीं । जवाहरलाल नेहरु बच्चों के प्यारे चाचा बने रहे ।
कहा जा सकता है कि राजनेताओं के ऐसे नामकरण से कोई फर्क नहीं पड़ता । फिर जनता के बीच अपनी गरिमा कम क्यों करते हैं ? कुछ अच्छा और बड़ा क्यों नहीं सोचते ?