पहले रोया खेत में , भीगा अनाज मंडी में
पत्रकार कमलेश भारतीय की कलम से
किसान का भी क्या जीवन है? सारी मेहनत करके भी परिणाम दूसरे के हाथ में या ऊपरवाले के हाथ में। तपती धूप में हल चलाओ या ट्रैक्टर। बात एक ही है। कंपकंपाती सर्दी में फसल की रक्षा करो। बारिश के आने पर दिल धक धक करे सो अलग। फिर अनाज मंडी तक पहुंचाओ। आढ़ती के मुंह की ओर देखो या इंस्पेक्टर को खुश करो। सच में पूरे पच्चीस साल यह किसानों का जीवन जीने के बाद लिख रहा हूं। खेतों में बारिश के चलते गेहूं को अंकुरित होते देखा। आलू के उचित भाव न मिलने पर खेतों में ही खाद की तरह हल चला के दबाते देखा। बैसाखी पर नाचते किसान को नहीं देखा। यह सिर्फ ग्लैमर का तड़का है। या कहा जा सकता है। पच्चीस सालों में कभी खेतों में भांगड़ा करते किसान को नहीं देखा। सपने लेता किसान देखा और सपने टूटने पर रोते देखा। तभी तो कह रहा हूं कि पहले रोया खेत में, फिर भीगा अनाज मंडी में। कैसे मेरे छोटे से शहर की अनाज मंडी के चलते रेलवे रोड जाम हो जाता था गेहूं से लदी बैलगाडियों से। वे दृश्य अब नहीं हैं। सर्दियों में जाम लगता था गन्ने से भरी ट्रालियों से। ये जाम लगने आम थे। हमारी ही छोटी सी अनाज मंडी से हिमाचल के ऊना से लेकर बिलासपुर तक सारा कारोबार चलता था। अब वही अनाज मंडी उदास है। आढ़तियों से लेकर किसान तक सबके चेहरे मुरझाये हुए हैं। कभी बीच में अपने शहर जाता हूं तो अनाज मंडी की यादें ताज़ा करने भी जाता हूं। वीरान अनाज मंडी और विदेशों में चले गये नयी पीढ़ी के लोग। अनाज मंडियों में बारिश के चलते जो दृश्य आ रहे हैं वे किसान की दुर्दशा को बयान करने के लिए काफी हैं। विपक्षी नेताओं का जाना वर्जित कर दिया गया है। इसमें कोई हर्ज़ नहीं लेकिन आप ध्यान तो दीजिए किसानों की फसल पर। जो लोग अर्द्धनग्न होकर किसान के लिए स्वाभीनाथन रिपोर्ट की मांग कर रहे थे वे सत्ता के स्वाद और सुख में भूल गये। जो लोग ज्यादा समर्थन मूल्य देने की बात करते थे वे कितना दे रहे हैं यह तो किसान ही बता सकते हैं। मैं तो इतना ही निवेदन कर सकता हूं कि किसान को अनाज मंडी में भीगने और न दें। बस।