रेल का किराया और राजनीति
पत्रकार कमलेश भारतीय लिखते हैं .....राजनीति इस कोरोना काल में भी निरंतर जारी है .....
राजनीति इस कोरोना काल में भी निरंतर जारी है और हमेशा की तरह सत्ता पक्ष के प्रवक्ता का कहना है कि कांग्रेस को राजनीति नहीं करनी चाहिए । जैसे कभी सत्ता में रहते कांग्रेस प्रवक्ता यही उपदेश दिया करते थे और संसद में गर्जती हुईं सुषमा स्वराज कहती थीं कि हम राजनीति करने आए हैं , कोई भजन कीर्तन करने नहीं आए । अब संवित पात्रा बतायें कि कांग्रेस बस ताली या थाली बजाने या मोमबत्ती जलाने में ही साथ दे ? यह न पूछे कि एक तरफ रेलवे बोर्ड 151 करोड़ रुपये प्रधानमंत्री केयर फंड में दे रहा है तो दूसरी तरफ प्रवासी मजदूरों से रेल टिकट का किराया वसूल रहै है । एक तरफ विदेश से लाए जाने वाले लोग मुफ्त लाए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ प्रवासी मजदूरों से किराया तक वसूल किया जा रहा है और वह भी उन लोगों से जो रोज़ी रोटी से वंचित हो चुके हैं । जब इस सवाल को कांग्रेस की कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी उठाती हैं तो भाजपा प्रवकता कहते हैं कि बड़े दुख की बात है कि कांग्रेस राजनीति कर रही है । बड़े अभद्र तरीके से इटली को जोड़ा जाता है जबकि वे भारत को सोनिया गांधी भारत को अपना मान चुकी हैं और कह रही हैं कि मेरा राजीव लौटा दो , मैं इटली चली जाऊंगी । अभी तो सशक्त विपक्ष है ही नहीं और जितना विपक्ष है वह भी बिखरा हुआ । तब इतनी चिंता क्यों ? यदि विपक्ष एकजुट हो और सवाल उठाए तब क्या नज़ारा होगा ? ज़रा सोचिए । अब यह बताया जा रहा है कि 85 प्रतिशत रेलवे बोर्ड तो पंद्रह प्रतिशत किराया राज्य सरकार वहन करेंगी । प्रधानमंत्री केयर फंड पर पहले भी सवाल उठे । विज्ञापनों को रोक लगाने की मांग हुई । सरकार कोरोना से कैसे और किस तरह लड़ रही है ? मेडिकल स्टाफ किट से वंचित है । हम पुष्प वर्षा कर रहे हैं । कोई बुरी बात नहीं । पर किस पर पुष्प वर्षा ? बिना किट यह स्टाफ कितना मोटीवेट होगा ? जिस स्टाफ को पीटा जाए और पुलिस पर पथराव हो ? सचमुच उत्साहवर्धन बहुत जरूरी है । गली मोहल्लों में सफाई कर्मियों का उत्साहवर्धन तक करने से हम पीछे नहीं लेकिन जब शराब के ठेके खुले तो लाॅकडाउन का लाॅक ऐसा टूटा कि पुलिस बल को मोर्चा सम्भालना पड़ा । शहर दर शहर जो लम्बी कतारें शराब के ठेकों के सामने दिखीं वे शर्मसार करने के लिए काफी थीं । बड़े बड़े विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कोरोना से हमारे जीवन में बदलाव आयेगा । क्या ये लम्बी कतारें किसी बदलाव का संकेत हैं ? हमारी जिंदगी में शराब का इतना महत्त्व ? हरियाणा सरकार भी शराब से सबसे ज्यादा रेवेन्यू की चिंता में घुली जा रही है । कभी किसी और रेवेन्यू की चिंता क्यों नहीं सताती ? एक समय यह बात सुनी थी कि हमने बड़ी उन्नति कर ली । उद्योग लगे , पैसा बढ़ा लेकिन मनुष्य बनाने का कोई तरीका क्यों नहीं खोजा गया ? सही और अच्छे नागरिक बनाने की कोई कोशिश क्यों नहीं की गयी या कब की जायेगी ? हम किस ओर जा रहे हैं ? कहां जा रहे हैं ? जिस देश में गांधी आदर्श नहीं रहे हों और किसी को महिमामंडित किया जाने लगा हो और वह भी एक चुनी हुई सांसद द्वारा तो वह देश किस अंधी गली में जा रहा है , यह सब संकेत समझ लेना काफी है । थोड़ा कहा ज्यादा समझना ।