इनकी छिपे रहने की चाह/कमलेश भारतीय
क्या यह लाॅकडाउन अज्ञातवास की ओर ध्यान दिला रहा है?
आज वैसे ही याद आया । जब एम ए हिंदी कर रहा था तब जयशंकर प्रसाद को चुना था विशेष अध्ययन के लिए । उसमें यह लिखा मिला था कि जयशंकर प्रसाद कभी किसी समारोह /सम्मेलन में नहीं जाते थे । बस । अपने घर से गंगा के घाट तक और घाट से घर तक ही उनका घूमना सिमटा रहा । फिर भी उनकी कामायनी एक ऐसा काव्य है जो दिल को छू लेता है । अनेक कहानियां और नाटक । संभवतः वे समय का सदुपयोग करने वालों में थे । पाश भी ज्यादा समारोह / कवि गोष्ठियों में बढ़चढ़ भाग नहीं लेते थे लेकिन उनकी कविताएं जन जन तक पहुंचीं और लोकप्रिय हुईं । इसी प्रकार स्वदेश दीपक अपना ही नाटक छिप कर एक साधारण दर्शक की तरह देखना पसंद करते थे । चंडीगढ़ की साहित्यिक गोष्ठियों में उनके शहर के राकेश वत्स तो आते थे लेकिन स्वदेश दीपक को एक भी गोष्ठी में नहीं देखा । क्या ऐसे रचनाकारों में छिपे रहने की चाह होती है ? पाश को तो हमारे नवांशहर के पास गांव काहमा में आतंकवादियों ने निशाना बनाया जबकि वह अमेरिका जा चुका था लेकिन शहीद भगत सिंह के शहीदी दिवस पर काहमा आया और उनके निशाने पर आ गया । स्वदेश दीपक रहस्यमयी ढंग से आज तक गायब हैं । यह छिपे रहने की चाह ...आह ...आज अचानक इस तरफ ध्यान गया ...तीनों को स्मरण कर रहा हूं ...क्या यह लाॅकडाउन उसी अज्ञातवास की ओर ध्यान दिला रहा है ?