समाचार विश्लेषण/पत्रकार, राजनेता और रिश्ते
-*कमलेश भारतीय
पत्रकार और,राजनेताओं का सीधा सीधा संबंध बना और बिगड़ा चला आ रहा है । यह ऐसा रिश्ता है जिसमें स्थायित्व नहीं होता और न हो सकता । पत्रकार यदि राजनेताओं से दोस्ती कर ले तो वही मुहावरा याद आ जाता है कि घोड़ा अगर घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या ? पत्रकार यदि राजनेताओं से दोस्ती कर लेगा तो लिखेगा क्या और किस पर ? खासतौर पर जिनकी राजनीतिक कवरेज पर ही ड्यूटी हो । अब इतने मधुर रिश्ते भी सामने आए हैं कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को एक टी वी एंकर से प्यार हो गया और फोटोज वायरल होने के बाद उन्होंने उम्र की सीमाओं की परवाह न करते हुए शादी भी कर ली । इसी प्रकार सुबोध कांत सहाय ने भी एक टीवी एंकर से शादी की थी । ये तो मधुर रिश्ते हैं और ऐसे और मामले भी हो सकते हैं ।
दूसरी तस्वीर यह है कि पत्रकारों को तब तक नेता बहुत प्यार करते हैं जब तक विपक्ष में होते हैं और जैसे ही सत्ता में आते हैं , वही पत्रकार उन्हें सुहाते नहीं । यह बहुत बार हुआ । हरियाणा में कभी द ट्रिब्यून के रिपोर्टर श्याम खोसला रहे , पूर्व मुख्यमंत्री चाहे चौ बंसीलाल हों या चौ भजनलाल उन्हें पसंद नहीं करते थे । यहां तक कि एक जनसभा में श्याम खोसला की नाक पर पत्थर भी पड़ा था और वे लहू-लुहान चंडीगढ़ लौटे थे । मैं उनके बारे में इसलिए जानता हूं कि उनके छोटे भाई सुरेंद्र मंथन और मैं आदर्श स्कूल में सहयोगी अध्यापक थे और जब भी हम चंडीगढ़ आते तो श्याम खोसला के घर ही रुकते । कुछ टिप्स पत्रकारिता के भी लेता रहता था । वे बहुत धाकड़ किस्म के पत्रकार थे । बहुत कुछ बिना सीखे भी उनकी रिपोर्टिंग से ही सीखा । हरियाणा के पत्रकारों में पवन बंसल इसलिए चर्चित हैं कि उन्होंने बहुत प्यारे प्यारे किस्सों की किताब लिखी -लालों के लाल । हमारे दैनिक ट्रिब्यून के विशेष रिपोर्टर रहे स्वतंत्र सक्सेना भी एक समय चौ देवीलाल की जल युद्ध यात्रा की कवरेज से हरियाणा में लोकप्रिय हुए थे । हिसार के ही द ट्रिब्यून के पत्रकार एम एल काक को भी आपातकाल का शिकार होना पड़ा था । आपातकाल में तो कितने ही पत्रकार शिकार बने । कुलदीप नैयर को भी जेल जाना पड़ा । बाद में वे राजनयिक भी बने । पंजाब में 'अजीत' के संपादक बृजेंद्र सिंह हमदर्द को राज्यसभा में भेजा गया था लेकिन ब्ल्यू स्टार ऑपरेशन के विरोध में उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था । पत्रकारिता और विचारधारा का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए । हिमाचल में कांग्रेस नेता मुकेश अग्निहोत्री एक समय 'जनसत्ता' के चंडीगढ़ में रिपोर्टर थे । राजनीति में आए और अपनी मंजिल पाई । अब विपक्ष के बड़े नेता हैं । हमारे मित्र वीरेंद्र चौहान 'दैनिक ट्रिब्यून' में रोहतक से रिपोर्टर पर राजनीति से जुड़े और भाजपा के प्रवक्ता के रूप में दिखते हैं टी वी चैनलों में । शायद कोई मेरा भी कहे । मैं हरियाणा ग्रंथ अकादमी का उपाध्यक्ष बना और अब फिर से स्वतंत्र पत्रकार । वैसे मुझे दैनिक ट्रिब्यून के समाचार संपादक व शायर सत्यानंद शाकिर से जो मंत्र मिला था वह यह कि जब कोई आंदोलन शुरू हो जाये तो आप मौके पर जाकर कवरेज करना और प्रतिदिन करना । कंडेला आंदोलन में यही किया । पूरे उन्नीस दिन मोटरसाइकिल पर कंडेला गया और कवरेज की ग्राउंड लेवल पर ।
खैर , ताज़ा प्रकरण रूद्रा राजेश कुंडू के खिलाफ केस दर्ज किये जाने का है । हिसार में पत्रकारों ने इकट्ठे होकर राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा और दो दिन का अल्टीमेटम दिया । अनिल विज पहले ही किसान आंदोलन पर पुनर्विचार करने के लिए केंद्र को आग्रह कर चुके है तो किसान आंदोलन पर किसी पत्रकार पर केस बनाये जाने की जानकारी मिलते ही एक्शन में आए और हिसार पुलिस अधीक्षक से बात कर कुंडू के फोटोग्राफर किस्मत राणा की रिहाई करने के आदेश दिये और रूद्रा को भी गिरफ्तार करने पर रोक लगा दी । यह एक अच्छा संकेत है गृह मंत्री का । यह उनके मीडिया फ्रेंडली होने का प्रमाण है ।
बात फिर आती है यू ट्यूबर्ज पर । क्या सरकार इन्हें पत्रकार मानती है ? मानती हो तो क्या इनके लिए कोई नियम/शर्तें बनायेगी ? यह बहुत जरूरी हो गया है । गृहमंत्री इस ओर भी ध्यान दें ।