कमलेश भारतीय ने दिए नेतराम भारती के सवालों के जवाब 

आधुनिक हिन्दी लघुकथा साहित्य के शुरुआती दौर से अविश्रांत पथिक सदृश, लघुकथा साहित्य को समृद्ध करते चले आ रहे वरिष्ठ लघुकथाकार कमलेश भारतीय से साक्षात्कार

कमलेश भारतीय ने दिए नेतराम भारती के सवालों के जवाब 

नेतराम भारती :- सर! लघुकथा आपकी नजर में क्या है लघु कथा को लेकर बहुत सारी बातें जितने स्कूल उतने पाठ्यक्रम वाली स्थिति है यदि नव लघु कथाकार के लिए सरल शब्दों में आपसे कहा जाए तो आप इसे कैसे परिभाषित करेंगे?

कमलेश भारतीय :- मेरी लघुकथा के बारे में इतनी सी राय है कि यह बिजली की कौंध‌ की तरह एकाएक चमकती है और जानबूझकर विस्तार नहीं दिया जाना चाहिए । यहां तक पाठ्यक्रम जैसी बात है तो मेरा या आठवें दशक तक के किसी भी लघु कथाकार का कोई पाठ्यक्रम  नहीं था। हमें एकलव्य की तरह खुद ही अपनेआप से जूझना पड़ा और अब अगर मैं दिये गये या बनाये गये पाठ्यक्रम से लिखना चाहूं तो बुरी तरह खराब लघुकथा लिखूं । नहीं, मैं वही एकलव्य ठीक हूँ । अपना रास्ता खुद खोजता रहूं।

नेतराम भारती :- लघुकथा विधा में आपकी विशेष रुचि कब और कैसे उत्पन्न हुई?

कमलेश भारतीय :- : लघुकथा में रूचि आठवें दशक की शुरुआत में सन् 1970 में ही हो गयी थी जब 'प्रयास' अनियतकालीन पत्रिका का प्रकाशन-संपादन शुरू किया । इसी के अंकों में मेरी पहली पहली लघुकथायें-किसान, सरकार का दिन और सौदा आदि आईं। प्रयास का दूसरा ही अंक लघुकथा विशेषांक था, जो संभवत : सबसे पहला लघुकथा विशेषांक या बहुत पहले विशेषांकों में एक है, जिसकी चर्चा सारिका की नयी पत्रिकाओं में भी हुई और यह विशेषांक चर्चा में आ गया । बाद में मैंने दस वर्ष सुपर ब्लेज़ (लखनऊ) मासिक पत्रिका का संपादन किया और फिर दैनिक ट्रिब्यून में उप संपादक रहते समय सात वर्ष कथा कहानी पन्ने का संपादन किया । इसी प्रकार कथा समय का संपादन तीन वर्ष तक किया । और मेरी रूचि निरंतर लघुकथा में बढ़ती ही गयी । 

नेतराम भारती :- लघुकथा,कहानी और उपन्यास के बीच क्या अंतर है, आपके दृष्टिकोण से ?

कमलेश भारतीय :- वैसे ये अंतर वाली बातें बहुत पीछे छूट चुकी हैं । उपन्यास बृहद जीवन कथा तो कहानी एक घटना, भाव का कथन और लघुकथा वामन के पांव जैसी ! ज्यों नाविक के तीर, देखन में छोटे लगें, घाव करे गंभीर । 

नेतराम भारती :- एक लघुकथा में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्त्व आप किसे मानते हैं ?

कमलेश भारतीय :-  सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात कि आप कहना क्या चाहते हैं, उसका ट्रीटमेंट कैसा किया ? कहने-सुनने में अच्छा पर ट्रीटमेंट में फेल तो क्या करेगी लघुकथा ? संदेश क्या है ? छोटे पैकेट में बड़ा धमाका चाहिए लघुकथा में ।

नेतराम भारती :- आजकल देखने में आ रहा है कि लघुकथा की शब्द सीमा को लेकर पूर्व की भांति सीमांकन नहीं है बल्कि एक लचीलापन देखने में आ रहा है । अब आकार की अपेक्षा कथ्य की संप्रेषणीयता पर अधिक बल है । कह सकते हैं कि जिस प्रकार एक नाटक में उसका रंगमंच निहित होता है उसी प्रकार एक लघुकथा में भी उसके कथ्य ,  उसके शिल्प में उसकी शब्द सीमा निहित रहती है । मैं छोटी बनाम लंबी लघुकथाओं की बात कर रहा हूंँ । आप इसे किस रूप में देखते हैं ?

कमलेश भारतीय :- लघुकथा का आकार जितना लघु हो सके, होना चाहिए,, यही तो इसकी लोकप्रियता का आधार है । संवाद शैली में रंगमंच का आभास होता है और ऐसी लघुकथाओं का पाठ बहुत मज़ेदार और लोकप्रिय रहता है । छोटी बनाम लम्बी कोई लघुकथा का विभाजन सही नहीं । लघुकथा बस, लघुकथा है और होनी चाहिए । 

नेतराम भारती :- क्या लघुकथा साहित्य में वह बात है कि वह एक जन आंदोलन बन जाए अथवा क्या वह समाज को बदल सकने में सक्षम है?

कमलेश भारतीय :-  कोई विधा जनांदोलन नहीं बन सकती । निर्मल वर्मा का कहना सही है कि साहित्य क्रांति नहीं कर सकता बल्कि विचार बदल सकता है । वही काम साहित्य की हर विधा करती है । यह भ्रम है । साहित्य मानसिकता बदलता है, राजपाट नहीं बदलता । 

नेतराम भारती :- सर ! गुटबाजी और खेमेबाजी की बातें कोई दबे स्वर में तो कोई मुखर होकर आजकल कर रहा है । मैं आपसे सीधे-सीधे पूछना चाहता हूं क्या वास्तव में आज लघुकथा में खेमे तन गए हैं ?

कमलेश भारतीय :- लघुकथा भी राजनीति की तरह गुटबाजी की बुरी तरह शिकार है, यह कहने में संकोच नहीं लेकिन मेरा कोई गुट नहीं, न मैं किसी के गुट हूँ । मैं लघुकथा के साथ हूँ, यही मेरा गुट है। 

नेतराम भारती :- वर्तमान लघुकथा में आप क्या बदलाव महसूस करते हैं ?

कमलेश भारतीय :- बदलाव तो संसार का, प्रकृति का नियम है और लघुकथा इससे अछूती नहीं। लघुकथा में नित नये विषय आ रहे हैं। अब तो थर्ड जेंडर पर भी लघुकथा संग्रह आ रहे हैं तो पुलिस पर भी । अब जो जैसे बदलाव कर सकते हैं, वे कर रहे हैं । ताज़गी बनी रहती है, नयापन बना रहता है । 

नेतराम भारती :- आपको अपनी लघुकथाओं के लिए प्रेरणा कहाँ से मिलती है ?

कमलेश भारतीय :- शायद सबको साहित्य रचने की प्रेरणा आसपास से ही मिलती है । मैं भी निरंतर आसपास से लघुकथाओं की भावभूमि पाता हूँ । कोई बात चुभ जाये या फिर किसी का व्यवहार अव्यावहारिक लगे तो लघुकथा लिखी ही जाती है । प्रेरणा समाज है । 

नेतराम भारती :- सर ! एक प्रश्न और सिद्ध लघुकथाकारों को पढ़ना नए लघु कथाकारों के लिए कितना जरूरी है जरूरी है भी या नहीं क्योंकि कुछ विद्वान् कहते हैं कि यदि आप पुराने लेखकों को पढ़ते हैं तो आप उनके लेखन शैली से प्रभावित हो सकते हैं और आपके लेखन में उनकी शैली के प्रतिबिंब उभर सकता है जो आपकी मौलिकता को प्रभावित कर सकती है इस पर आपका क्या दृष्टिकोण है ?

कमलेश भारतीय :-  मेरी राय में पढ़ना चाहिए, मैंने पढ़ा है, पढ़ता रहता हूँ। बहुत प्रेरणा मिलती है। मंटो, जोगिंदरपाल, विष्णु प्रभाकर, कुछ विदेशी रचनाकार जैसे चेखव सबको पढ़ना अच्छा लगता है, सीखने को मिलता है, कहने का सलीका आता है। प्रभावित होकर न लिखिये, सीखिये । बस । नकल तो सब पकड़ लेंगे । 

नेतराम भारती :- क्या कोई विशेष शैली है जिसे आप अपनी लघुकथाओं में पसंद करते हैं ?

कमलेश भारतीय :- संवाद शैली बहुत प्रिय है और मेरी अनेक लघुकथायें संवाद शैली में हैं । 

नेतराम भारती :- आपके अनुसार, एक अच्छी लघुकथा की विशेषताएं क्या होती हैं?

कमलेश भारतीय :- अच्छी लघुकथा वह जो अपनी छाप, अपनी बात, अपना संदेश पाठक को देने में सफल रहे । 

नेतराम भारती :- लघुकथा लिखने की प्रक्रिया के दौरान आप किन चुनौतियों का सामना करते हैं ?

कमलेश भारतीय :-  चुनौती यह कि जो कहना चाहता हूँ, वह कहा गया या नहीं ? यह कशमकश लगातार बदलाव करवाती है और जब तक संतुष्टि नहीं होती तब तक संशोधन और चुनौती जारी रहती है । 

नेतराम भारती :- आपकी स्वयं की पसंदीदा लघुकथाओं में से कुछ कौन- सी हैं और क्यों ?

कमलेश भारतीय :-  यह प्रश्न‌ बहुत सही नहीं। लेखक को सभी रचनायें अच्छी लगती हैं जैसे मां को अपने बच्चे। फिर भी मैं सात ताले और चाबी, किसान, और मैं नाम लिख देता हूं, चौराहे का दीया, पुष्प की पीड़ा, मेरे अपने, आज का रांझा, खोया हुआ कुछ, पूछताछ शाॅर्टकट,जन्मदिन, मैं नहीं जानता, ऐसे थे तुम ऐसी अनेक लघुकथायें हैं, जो बहुत बार आई हैं और प्रिय जैसी हो गयीं हैं । और भी हैं लेकिन एकदम से ये ध्यान में आ रही हैं । 

नेतराम भारती :- भविष्य में आप किस प्रकार की लघुकथाएं लिखने की योजना बना रहे हैं ?

कमलेश भारतीय :- वही संवाद शैली और समाज व राजनीति पर लगातार चोट करती़ं लघुकथायें ।

नेतराम भारती :- आपके पसंदीदा लघुकथाकार कौन-कौन हैं और क्यों ? 

कमलेश भारतीय :-  रमेश बतरा, मंटो, जोगिंदरपाल, चेखव, मोपांसा, विष्णु प्रभाकर, शंकर पुणतांबेकर आदि जिनकी रचना जहां मिले पढ़ जाता हूँ । 

नेतराम भारती :- आपके अनुसार लघुकथा का क्या भविष्य है ?

कमलेश भारतीय :- भविष्य उज्ज्वल है । सारी बाधायें पार कर चुकी लघुकथा । संशय के बादल छंट चुके हैं । 

नेतराम भारती :- अगर आपसे पूछा जाए कि उभरते हुए अथवा लघुकथा में उतरने की सोचने वाले लेखक को कुछ टिप्स या सुझाव दीजिए, तो एक नव-लघुकथाकार को आप क्या या क्या-क्या सुझाव देना चाहेंगे ?

कमलेश भारतीय :- वही, ज्यादा से ज्यादा पढ़िये और कम से कम, बहुत महत्त्वपूर्ण लिखिये । कोई सुझाव नहीं,सब महारथी ही आ रहे हैं। दूसरों से हटकर लिखिये,आगे बढ़िये, बढ़ते रहिये। शुभकामनाएं ।

नेतराम भारती :- सर ! आज बहुतायत में लघुकथा सर्जन हो रहा है । बावजूद इसके, नए लघुकथाकार मित्र इसकी यात्रा, इसके उद्भव ,इसके पड़ावों से अनभिज्ञ ही हैं । आपने प्रारंभ से अब तक लघुकथा की इस यात्रा को न केवल करीब से देखा ही बल्कि उसपर काफ़ी कुछ कहा और लिखा भी है । कैसे आँकते हैं आप इस यात्रा को ? 

कमलेश भारतीय :-  आठवें दशक से अब तक पचास वर्ष से ऊपर की लघुकथा की यात्रा का गवाह हूं । बहुत, रोमांच भरी रही यह यात्रा । पहले इसके नामकरण को लेकर खूब बवाल मचा । कोई अणु कथा, मिन्नी कथा तो कोई व्यंग्य को ही इसका आधार बनाने पर तुले रहे लेकिन इन सब झंझावातों से बच निकल करकर यह आखिरकार लघुकथा के रूप में अपनी पहचान बना पाई । बहुत से बड़े रचनकारों‌ ने इसे फिलर, स्वाद की प्लेट या फिर रविवारीय लेखन तक कह कर‌ नकारा लेकिन सब बाधाओं और बोल कुबोल‌ को सहती लघुकथा इस ऊंचे पायदान पर पहुंची है । 

नेतराम भारती :- सर ! लघुकथा आज तेजी से शिखरोन्मुख हो रही है । उसकी गति, उसके रूप , उसके संस्कार और उसके शिल्प से क्या आप संतुष्ट हैं?

कमलेश भारतीय :-  संतुष्ट होना नहीं चाहिए, संतोष जरूर है । शिखरोन्मुख अभी नहीं। अभी आप देखिये, कुछ बड़े समाचारपत्र इसे अब भी प्रकाशित नही कर रहे। उनके वार्षिक विशेषांक भी इसे अछूत ही मानते हैं ।अभी लघुकथा को ज़ोर‌ का झटका धीरे से लगाना बाकी है ।


(कमलेश भारतीय आधुनिक हिंदी लघुकथा साहित्य के प्रारंभिक दौर के वरिष्ठ और चर्चित लघुकथाकार हैं । आप लघुकथा, कहानी ,कविता और आलेख में अच्छा-खासा दखल रखते हैं l आप हरियाणा ग्रंथ अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष रहे हैं l)