समाचार विश्लेषण/कहीं अविश्वास , कहीं त्याग, ये राजनीति का हाल
-कमलेश भारतीय
कहीं अविश्वास प्रस्ताव आ रहा है तो कहीं त्यागपत्र । दोनों राज्य भाजपा शासित हैं । उत्तराखंड में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपने ही साथी विधायकों के अविश्वास के चलते त्यागपत्र देने को विवश होना पड़ा । वे सिर्फ नौ दिन पीछे रह गये अपने शासनकाल के चार वर्ष पूरे करने में । जाते जाते जहां पार्टी हाई कमान की तारीफ की जैसे कि मुझ जैसे एक साधारण कार्यकर्त्ता को मुख्यमंत्री पद दिया , वहीं अपना दर्द भी बयान कर दिया यह कह कर कि मेरे त्यागपत्र की वजह मुझसे नहीं दिल्ली से पूछो । साफ बात कि दिल्ली बुला कर त्यागपत्र देने का आदेश दिया गया ।
इससे यह बात साफ है कि भाजपा पूरी तरह कांग्रेस के पदचिन्हों पर चल रही है । विधायक फैसला नहीं करते कि मुख्यमंत्री कौन होगा बल्कि दिल्ली बैठी हाईकमान ही यह फैसला करती है कि सरकार किसको सौंपी जाये । फिर यह क्यों कहते रहते हो कि वो मुख्यमंत्री देंगे , जिसे विधायक चुनेंगे । हमारी सरकार दिल्ली के आदेशों से नहीं चलेंगीं । आप ही अपनी राज्य सरकार चुनोगे और आपके ही विधायक करेंगे फैसला कि कौन बनेगा मुख्यमंत्री । अब तो भेद खुल गया न । सब वही चाल , चरित्र और चेहरा । कोई फर्क नहीं अलबत्ता । जिसकी आलोचना की जाती रही । वही हत्थकंडे जो कांग्रेस अपनाती रही । इसीलिए तो राहुल गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर तंज किया कि कांग्रेस में रहते तो देर सबेर मुख्यमंत्री बन ही जाते । भाजपा में बैक बैंचर बन गये । क्या यही आपकी तमन्ना थी ? बेशक जवाब ज्योतिरादित्य ने भी दिया और कांग्रेस की कार्यप्रणाली पर इशारा करते कहा कि यदि कांग्रेस में मेरे रहते इतना ध्यान दिया होता तो कांग्रेस छोड़ने की नौबत ही न आती । यानी कांग्रेस हाईकमान की गुडबुक्स में रह कर भी कमलनाथ ही को मुख्यमंत्री बनाया गया । राजस्थान में सचिन पायलट की अनदेखी की गयी । अब बेशक कांग्रेस में हैं सचिन लेकिन पर काट दिये गये हैं । न उपमुख्यमंत्री हैं और न ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद लौटाया गया ।
इधर हरियाणा में अविश्वास प्रस्ताव आने वाला है आज । हो सकता है सरकार बनी रहे लेकिन जिस तरह से किसान आंदोलन ने इस पर असर डाला वह इस अविश्वास प्रस्ताव का सबसे बड़ा आधार है । दीपेंद्र हुड्डा की बात सही है कि सरकार सिमट कर चंडीगढ़ के सचिवालय तक रह गयी है । सरकार से जुड़े मंत्री और सत्ताधारी दल के नेताओ को गांवों में घुसने नहीं दिया जा रहा । हर जगह बहिष्कार का आह्वान किया जाता है । पहले मुख्यमंत्री ही को करनाल अपने विधानसभा क्षेत्र में घुसने नहीं दिया गया । फिर हर छोटे बड़े सत्ताधारी नेता का बहिष्कार किया जाने लगा । जहां तक कि विवाह शादियों के कार्ड तक बंद कर दिये गये हैं । यह अविश्वास नहीं तो क्या है ? व्हिप जारी हो गये हैं सभी पार्टियों के । और मुख्यमंत्री को दुख है कि जिस ट्रैक्टर पर हुड्डा बैठे थे , उसे एक बहन शकुंतला खटक खींच रही थी । इतना रख है मुख्यमंत्री जी तो किसान के लिए डीज़ल व पेट्रोल के दाम कम करवा दीजिए न । अब विपक्ष कोई तरीका तो अपनायेगा इन बढ़ती कीमतों का विरोध जताने के लिए कि नहीं ? क्या विपक्ष हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाये ? सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि जल्दी पेट्रोल डलवा ले कहीं अगले पेट्रोल पंप आने तक दाम न बढ़ जायें । रसोई गैस के लिए भी उज्ज्वला योजना वाले परिवार को कार्टून में दिखा रहे हैं कि रिफील करवाने के लिए पैसे कहा से लाएं? अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यही उज्ज्वला योजना उनको मुंह चिढ़ा रही है । पहले ममता बनर्जी ने स्कूटी चला कर इन बढ़ती कीमतों पर विरोध जताया और फिर हरियाणा में कांग्रेस ने ट्रैक्टर खींचा क्योंकि कीमतें इतनी बढ़ गयीं कि भरवा नहीं सकते । यह किसान आंदोलन का साइड इफेक्ट है कि सरकार को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ रहा है । दूसरी ओर रावत को अपनों ने ही अविश्वास जता कर सत्ता से बाहर कर दिया । अब दिल्ली से नया मुख्यमंत्री आयेगा । यह बहुत बड़ा तंज जाते जाते रावत ने मारा हाईकमान पर ।
सत्ता तो आती जाती रहेगी लेकिन दूसरों के तौर तरीकों से चलोगे तो वैसे ही परिणाम भुगतने होंगे ।