ज़िंदगी और फिल्म, कितनी पास, कितनी दूर ....?
-कमलेश भारतीय
यूपी के गैंगस्टर विकास दुबे की कहानी का द एंड होने के बाद हमारे हिसार की बहू और प्रसिद्ध एक्टर यशपाल शर्मा की एक्ट्रेस पत्नी प्रतिभा सुमन ने यशपाल की फिल्म की वीडियो का एक अंश भेज कर पूछा-क्या याद आया कुछ ? यह वीडियो एनकाउंटर पर आधारित है जिसमें यशपाल के हाथों में हथकडियां लगी हैं और उसका एनकाउंटर किया जाता है । फिर सवाल पूछा कि कौन कहता है कि फिल्में वास्तविकता से दूर होती हैं ? सचमुच । फिल्म और ज़िंदगी में ज्यादा अंतर नहीं रह गया ।
विकास दुबे की कहानी पर फिल्म बनाने की चर्चा भी चल पड़ी है और इस चरित्र को निभाने के लिए मनोज वाजपेयी को सही एक्टर माना गया है क्योंकि सत्या का भीखू सबको याद आ जायेगा । विकास दुबे की जिंदगी की कहानी में फिल्म की हर सिच्युशेसन है । प्यार, रोमांस , धोखा , अपराध , राजनीति और फिर दु:साहस । कितना कुछ । कानपुर वाला विकास दुबे जिस लड़की से प्यार करता है उससे माता पिता की मौजूदगी में गन प्वाइंट पर शादी करता है । भाई राजू से यानी साले से प्यार और तकरार । फिर रिचा यानी पत्नी का लेडी डाॅन जैसा व्यवहार ।
सीसी टीवी से कंट्रोल । अब चर्चा भी है कि भाभी रिचा सारा कारोबार संभाल लेगी यानी अंडरवर्ल्ड डाॅन बन जायेगी । क्या कमी है फिल्मी कहानी में ? पूरा मसाला । विकास दुबे जैसा करेक्टर जो भेष बदलने में भी माहिर । कभी साफा बांध कर किसान जैसा भोला भाला तो कभी रिवालवर पकड़ कर डाॅन बन जाना । क्या और कौन सा रंग नहीं है विकास में ? हर रंग और हर रोल में फिट । पुलिस थाने में नेता पर गोलियां बरसाना । डीएसपी देवेंद्र मिश्रा को मारकर पैर काट डालना । कितनी क्रूर तस्वीर ? शोले का गब्बर सिंह माने जिंदा हो गया या शर्मिंदा हो गया । प्रिंसिपल सिद्धेश्वर को तड़पा कर मारना और खून से हाथ मलना । इससे बड़ा क्रूर खलनायक कहां मिलेगा ?
इस सब पर राजनीति भी जारी है कि पहले सरेंडर या उज्जैन में पकड़े जाने को सच माना जाये ? फिर मारा तो एनकाउंटर में क्यों मारा ? कानून का रास्ता क्यों नहीं अपनाया ? यदि फिर गवाहियों के अभाव में छूट जाता तो ? पर फिर कानून की देवी क्या करेगी यदि इस तरह ऑन द स्पाॅट फैसले होने लगे ? एनकाउंटर क्या कोई स्थायी हल माना जा सकता है ? पर किसी भी मुख्यमंत्री को अपनी छवि और सरकार बचाने के लिए ऐसे गुप्त आदेश देने पड़ते हैं । उज्जैन की पुलिस ने भी नियमों और कानून का पालन नहीं किया । इसलिए उज्जैन के एक पुलिस अधिकारी की वीडियो वायरल हो रही है कि उन्हें नहीं लगता कि विकास दुबे जिंदा कानपुर लौटेगा । वही डर या आशंका सच हुई । पर फिल्म, जिंदगी, राजनीति और अपराधी की सारी रेखायें साफ साफ नज़र आईं इस विकास दुबे की हिस्ट्री से । कहां फिल्म और कहां ज़िंदगी शुरू या खत्म होती है , कुछ अंदाजा नहीं लगाया जा सकता । इतना अंदाजा है कि राजनीति ऐसे भस्मासुरों को जन्म देती है और जब ये अपराधी इनको ही दुख देने लगते हैं तब एनकाउंटर करने का आदेश जारी हो जाता है सारे नियम और कानून ताक पर रख कर । अब प्रतिभा सही कह रही है कि फिल्में वास्तविकता से दूर नहीं हैं ।