समाचार विश्लेषण/मोल की दुल्हनें और हमारा समाज 

समाचार विश्लेषण/मोल की दुल्हनें और हमारा समाज 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 

जैसे जैसे हमने कन्या भ्रूण हत्या को अपनाया , वैसे वैसे लिंगानुपात गिरता चला गया और यह भयंकर सच्चाई सामने आई कि दुल्हनें नहीं हैं । इतनी कम कर दीं कन्याएं कि मोल खरीद कर शादियां करनी पड़ रही हैं । मुझे अपने गांव  की याद आ रही है । हमारा हलवाहा बिशना छोटी उम्र में ही रंडुआ हो गया । छोटे छोटे बच्चे थे । कोई दूसरी शादी को तैयार नहीं थी । आखिर किसी दूर दराज के प्रदेश में बाकायदा महिलाओं की मंडी से वह एक औरत खरीद कर लाया था और सारे गांव में उस मोल की दुल्हन की चर्चा थी । दूसरे राज्य की होने के कारण उसकी भाषा उसे बहुत हंसी मजाक का पात्र बनाती थी लेकिन धीरे धीरे वह इस समाज में ढल गयी । वह या ऐसी अन्य कहानियां देख कर आज समाज में मोल ली हुई दुल्हनों का धंधा ही शुरू हो गया है । ऐसी खबरें आती रहती हैं कि मोल की दुल्हन शादी की रात ही गहने कपड़े समेट कर उड़न छू हो गयी । पुलिस कचहरी के चक्कर और हाथ कुछ नहीं लगता । न दुल्हन, न सामान ।

ऐसी ही खबर आज जोधपुर से आ रही है लेकिन इसमें भगौड़ी दुल्हन की दाद देनी होगी जिसने सिंह साफ साफ दूल्हे को फोन कर बता दिया कि वह तो एक सप्ताह के लिए रोटियां पकाने के नाम पर लाई गयी थी और उसे धभका कर कहा गया कि जैसे कहते है , वैसे करती चल और इस तरह बिना मर्जी के शादी कर दी गयी तुम्हारे साथ । बेचारा दूल्हा शादी के चक्कर में दस लाख का ऋणी भी हो गया है । भगौड़ी दुल्हन ने यह भी बताया कि मुझे इसके बदले मे एक हजार रुपये प्रतिदिन दिये जाते थे । मोटी रकम तो वे कमा गये और सात हजार में दुलहन बिक गयी । ऐसे बहुत से शो क्राइम पेट्रोल में देखने को मिलते हैं जब मजबूरी का फायदा उठाते हुए मोल की दुल्हन बनी दी जाती है । कुछ दम्पत्ति भी मिल कर इस तरह का धंधा करते हैं । 

सबसे बड़ी बात कि यदि हम इस कन्या भ्रूण हत्या को न करें तो सामाजिक ढांचा चरमरायेगा नहीं और मोल ली हुई दुल्हनों की जरूरत नहीं पड़ेगी । इस दुल्हन ने एक बार फिर सबकी आंखें खोली हैं । अब कितनी खुलीं और कितनी नहीं , यह तो समाज ही तय करेगा ।