कमलेश भारतीय की कुछ लघुकथाएं
हार
नयी नयी शादी और पत्नी को यह भेद मिल जाए कि महाशय किसी और से भी उलझे हैं तो ? वह सन्न रह गयी । पति का मोबाइल देख कर । वे अचानक भूल गये थे ऑफिस ले जाना । एक युवती के दिन भर संदेश , मिस काॅल्ज । यह तो एक स्त्री की हार है । क्या उसमें कोई सुरखाब के पर लगे हैं ? क्या मैं उनकी नजर में कुछ भी नहीं ? ढेरों सवाल मन में दिन भर उठते रहे ।
शाम को घर आए । चाय की प्याली थमाई और साथ ही फोन देिखा कर पूछा-यह कौन है ?
-बस , यूं ही ...
-यूं ही ? यह साफ करो कि मैं यूं ही या वो यूं ही ?
अब कान लाल हो उठे । कुछ कहते न बना ।
-देखिए । अब फैसला बता दो । जो हुआ सो हुआ ।
-वादा रहा । पति ने कहा ।
पर फोन पर ऐसे संदेसे आते रहे और जिंदगी चलती रही । उम्र के आखिरी पडाव पर नवविवाहिता से बुढापे की ओर बढ रही पत्नी ने कहा -मैं सारी जिंदगी हारती रही । क्यों ? वह हर समय यह सवाल खुद से पूछती है ।
शर्त
युवा समारोह में श्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीतने वाली कलाकार अभिनय से अचानक मुख मोड़ गयी । क्यों ? यह सवाल पूछा तब उसने ठंडी आह भर कर बताया कि सर, नाटक निर्देशक मुझे स्टुडियो मे कदम रखने सै पहले कहने लगे कि अंदर जाने से पहले शर्त यह है कि शर्म बाहर रखनी होगी ।
बस, मेरी कला शर्मसार होने से पहले घर लौट आई ।
नामकरण
कच्चे घर में जब दूसरी बार भी कन्या ने जन्म लिया तब चंदरभान घुटनों में सिर देकर दरवाजे की दहलीज बैठ गया । बच्ची की किलकारियां सुनकर पड़ोसी ने खिड़की में से झांक कर पूछा -ऐ चंदरभान का खबर ए ,,,?
-देवी प्रगट भई इस बार भी ।
-चलो हौंसला रखो ।
-हां , हौसला इ तो रखेंगे बीस बरस तक । कौन आज ही डिग्री की रकम मांगी गयी है । डिग्री ही तो आई है । कुर्की जब्ती के ऑर्डर तो नहीं ।
-नाम का रखोगे ?
-लो । गरीब की लड़की का भी नाम होवे है का ? जिसने जो पुकार लिया सोई नाम हो गया । होती किसी अमीर की लड़की तो संभाल संभाल कर रखते और पुकार लेते ब्लैक मनी ।
दोनों इस नाम पर काफी देर तक हो हो करते हंसते रहे । भूल गये कि जच्चा बच्चा की खबर सुध लेनी चाहिए ।
पड़ोसी ने खिड़की बंद करने से पहले जैसे मनुहार करते हुए कहा -ऐ चंदरभान, कुछ तो नाम रखोगे इ । बताओ का रखोगे?
-देख यार, इस देवी के भाग से हाथ में बरकत रही तो इसका नाम होगा लक्ष्मी । और अगर यह कच्चा घर भी टूटने फूटने लगा तो इसका नाम होगा कुलच्छनी ।
पड़ोसी ने ऐसे नामकरण की उम्मीद नहीं की थी । झट से खिड़की के दोनों पट आपस में टकराये और बंद हो गये ।
कितने अजीब
लेखकों की महफिल थी । एक समारोह के बाद थोड़ी थोड़ी पीने में मस्त थे । जिस महिला रचनाकार ने बुलाया और सम्मानित किया उसी के चरित्र को प्याज के छिलकों की तरह घूंट भर भर कर छील रहे थे । कितनी जल्दी सम्मान करने का ऋण उतार कर मुक्त हो रहे थे । ये लेखकों की महफिल बड़ी अजीब थी !
-कमलेश भारतीय