संस्मरण/ऐसे थे संपादक राधेश्याम शर्मा जी

उनकी आंखों से जो प्यार बरसता वह मेरे लिए अनमोल होता  

संस्मरण/ऐसे थे संपादक राधेश्याम शर्मा जी
कमलेश भारतीय।

मैं नवांशहर में दैनिक ट्रिब्यून का पार्ट टाइम रिपोर्टर था सन् 1978 से । हमारी बेटी रश्मि के स्कूल आदर्श बाल विद्यालय के प्रिंसिपल धर्मप्रकाश दत्ता ने सलाह मांगी कि किसे वार्षिक उत्सव के लिए बुलाएं । मैंने कहा कि हमारे संपादक राधेश्याम शर्मा जी को बुला लीजिए । वे मेरे साथ पंचकूला श्री राधेश्याम शर्मा के घर न्यौता देने गये । वे सहर्ष मान गये । पति पत्नी दोनों आए । समारोह के बाद जब चलने लगे तो मुझे कहने लगे कि अच्छी रिपोर्ट भेजना लेकिन मेरा उल्लेख नाममात्र ही करना । हमारा उद्देश्य स्वप्रचार नहीं होना चाहिए । यह बहुत बड़ी सीख थी मेरे लिए । आज तक स्मरण है और अपनाई है । जब चंडीगढ़ में दैनिक ट्रिब्यून का पहली मार्च , 1990 को उपसंपादक बना तब पंजाब विश्वविद्यालय के एक समारोह के बाद उन्होंने  डाॅ इंदु बाली को बड़े गर्व से कहा था कि कमलेश को हम लेकर आए हैं दैनिक ट्रिब्यून में । मेरा सिर सम्मान से झुक गया था । 

मैं उनके संपादन में मात्र छह माह ही काम कर पाया जब वे भोपाल माखनलाल  चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति बन कर चलने लगे तब मुझे अपने कार्यालय में बुला कर मेरे स्थायी होने की चिट्ठी सौंपते कहा कि मैं अपनी जिम्मेवारी से आपको प्रिंसिपल पद छुड़वा कर लाया था । उसी जिम्मेवारी से स्थायी करके जा रहा हूं । आपका प्रोबेशन  पीरियड खत्म हुए पांच दिन ही हूए हैं  लेकिन बाद में कोई कब करे या आपको परेशान करे , इसलिए मैं अपनी जिम्मेवारी पूरी कर रहा हूं । धन्य । उन्होंने मेरी इंटरव्यू में भी चेयरमैन डाॅ पी एन चुट्टानी को कहा था कि ग्यारह साल  से कमलेश हमारे पार्ट टाइम रिपोर्टर हैं और इन सालों में एक भी शिकायत नहीं आई । इससे ज्यादा क्या प्रमाण चाहिए आपको इसकी कवरेज का ? 
इनका मंत्र था -कलम रुके नहीं , भटके नहीं , अटके नहीं और बिके नहीं । इस मंत्र को अपनाए ही चला गया और ,,,आज वे नहीं हैं ,,,बहुत बहुत याद आते रहेंगे राधेश्याम जी आप 

फिर मुझे मौका मिला हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष बनने का । उन्हें अकादमी के कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए मैं सरकारी गाड़ी लेकर न केवल लेने बल्कि छोड़ने जाता तो उनकी आंखों से जो प्यार बरसता वह मेरे लिए अनमोल होता ।

-कमलेश भारतीय