ऐ सिनेमाघर तेरे अंजाम पे रोना आया!
गया सिनेमाघरों का जमाना, आये मल्टीप्लेक्स
-कमलेश भारतीय
आज सिनेमाघरों की याद आई और इनके दयनीय अंत पर लिखने का मन किया। अपने पंजाब के नवांशहर में दो सिनेमाघर थे-शंकर राकेश और सतलुज सिनेमाघर ।। शंकर सिनेमाघर बहुत साल पहले बंद हो गया और वहां मार्केट बन गयी है जबकि सतलुज अब भी चल रहा है। इसी सिनेमाघर में पंजाबी गायक गुरदास मान व काॅमेडियन मेहर मित्तल की इंटरव्यूज की थीं ।
कभी याद आता है कि कैसे हम काॅलेज से बंक मारकर फिल्म देखने जाते थे। वीरवार की शाम यह पता करने जाते कि शुक्रवार को कौन सी फिल्म चलेगी। आने वाली फिल्म के आकर्षक पोस्टर्ज शहर के प्रमुख स्थानों पर लगाये जाते। टिकट खिड़की के आगे लम्बी लम्बी कतारें लग जातीं और टिकट खिड़की में एक साथ कितने हाथ घुस जाते।कुछ युवा एक्टर्स की नकल करते। हमारे शहर में मदनलाल मद्दी नाम का युवक देवानंद का इतना दीवाना था कि उसकी हर फिल्म के स्टाइल में हर गली मोहल्ले का चक्कर लगाता और बच्चे पीछे पीछे भागते कि देवानंद आया, देवानंद आया ! फिर जमाना राजेश खन्ना का आया जब सभी पेंट के ऊपर कुर्ता पहनने लगे । लड़कियां मीनाकुमारी और मधुबाला की दीवानी थीं। डाॅयलाग याद कर दोस्तों के बीच सुना कर वाहवाही लूटना आम बात थी, अब इसका स्थान मिमिक्री ने ले लिया है।
शहर छोटा था और चर्चित फिल्मों का इंतज़ार करना पड़ता था। इसलिए जालंधर तक नयी फिल्म देखने जाते थे। वहाँ सबसे खराब हालत में ओडियन सिनेमाघर था। बाकी सब टिप टाॅप सिनेमाघर थे। टिकटों की ब्लैक आम बात थी । बहुत से लोगों की रोजीरोटी इसी से चलती थी। फिर चंडीगढ़ में रहा और फिल्म देखने का शौक बना रहा पर समय मुश्किल से मिलता। दीवाली के आसपास छुट्टी के दिन सपरिवार फिल्म देखने जाता। वही टिकटों की मारामारी और ब्लैक में टिकटों का बिकना आम बात थी। किरण सिनेमाघर बाइस सेक्टर में और बतरा सिनेमाघर की याद है। पंचकूला में अभिनेत्री ऊषा शर्मा की चंद्रावल-2 का प्रीमियर शो भी देखने को मिला जिसका उद्घाटन तत्कालीन शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल करने आई थीं। तब सिनेमाघरों में अलग अलग क्लास के लिए टिकटें होती थीं और बाॅक्स भी होते थे। इंटरवल में ये बाॅक्स वाले दर्शक ऊपर खड़े होकर अपनी शान बताते थे कि हम तो खास हैं।
फिर हिसार आया स्टाफ रिपोर्टर के तौर पर। सुनता हूँ कि सबसे पहले पारिजात सिनेमाघर बना जिसकी याद अब पारिजात चौक के रूप में बच रही है। एफसी महिला महाविद्यालय की राह में नीलम सिनेमाघर की रौनक भी देखने को मिली जहाँ अश्विनी चौधरी ने अपनी फिल्म लाडो बड़े चाव से दिखाई थी और बाद में हमारे घर साहिब राम गोदारा और जितेंद्र रामप्रकाश के साथ आये भी थे। वे सांसद रामप्रकाश के बेटे हैं जिनका कुछ दिन पहले ही निधन हुआ है। साहिब राम गोदारा आजकल हरियाणा पब्लिक रिलेशन में चंडीगढ़ में प्रमुख है। अब नीलम सिनेमाघर बंद पड़ा है। उजड़े हुए चमन की तरह।
पुष्पा सिनेमाघर की याद अब पुष्पा काम्प्लेक्स के रूप में बची हुई है। जहाँ दुकानें इस तरह बनी हैं जैसे भूल भूलैया हों। नीचे काफी अंधेरा रहता है, ज्यादातर ऊपर की दुकानों में ही रौनक है और अधिकांश मोवाईल्ज के शो रूम हैं।
मिल गेट की ओर नंद सिनेमाघर था जिसे एक बार तो सुभाष चंद्रा के छोटे भाई लक्ष्मी गोयंका ने रेनोवेट करवा कर नया जीवनदान देने की कोशिश की और थ्री इडियट्स फिल्म दिखाई लेकिन उनकी कोशिश सफल नहीं हुई। वे कहते थे कि नंद सिनेमाघर के साथ उनकी यादें जुड़ी हुई हैं। इसलिए इसे चलाने की कोशिश की थी। सोहन व इलाइट सिनेमाघर सहित कुल छह सिनेमाघर थे जिनमें से एक इलाइट ही बच रहा है। यहां राजीव भाटिया ने अपनी हरियाणवी फिल्म पगड़ी-द ऑनर फिल्म दिखाई और नायक दक्ष व नायिका निधि महला के साथ मुलाकात करवाई। निधि महला किसी दूसरी फिल्म में दिखाई नहीं दी। वन फिल्म वंडर कही जा सकती है और शादी के बाद विदेश में है। राजीव भाटिया ने अभी स्टेज एप के लिए धाकड़ छोरियां सीरीज बनाई है। इस तरह आधा दर्जन सिनेमाघरों में से एकमात्र इलाइट सिनेमाघर ही बच रहा है। इसी इलाइट सिनेमाघर में रमन नास्ता ने भी 48 कोस फिल्म दिखाई जिसमें उनका भी रोल था।
अब देखते देखते मल्टीप्लेक्स का जमाना आ गया है। जहां टिकट ही महंगे नहीं बल्कि पोपकाॅर्न भी खूब महंगे हैं। सबसे पहले सन सिटी मल्टीप्लेक्स बना। यहीं यशपाल शर्मा ने अपने निर्देशन में बनी फिल्म दादा लखमी का शो रखा और खुद अपने हाथों टिकट सौंपी जो सम्मान आज भी याद है और इसी विनम्रता के लिए यशपाल शर्मा जाने जाते हैं । उनके चाहने वाले इसी बात के लिए उनके दीवाने हैं। फिल्म की रिलीज से पहले यशपाल शर्मा ने हिसार सहित हरियाणा के सभी बड़े शहरों में -एक त्योहार है, दादा लखमी और फिल्म के पोस्टर के साथ प्रदर्शन भी किये थे। सन सिटी में ही राजेश अमर लाल बब्बर ने अपने निर्देशन में बनी फिल्म- छोरियां छोरों से कम नहीं रिलीज की थी और भीड़भाड़ के बीच मेरा हाथ पकड़ कर हाॅल तक लेकर गये थे।
प्रोड्यूसर सतीश कौशिक सहित हीरो अभिनव व हीरोइन रश्मि राजवंश ही नहीं बल्कि सोनाली फौगाट भी मौजूद थी । फिल्म में सोनाली ने एसपी का रोल निभाया था। वह राजनीति में गयी और उसका अंत बड़ा ही दुखद हुआ। यदि फिल्मों तक सीमित रहती तो शायद कुछ और फिल्मों में दिखाई देती। सन सिटी में ही फौज्जा फिल्म मीना मलिक ने दिखाई क्योंकि उनकी प्रतिभाशाली बेटी नीवा मलिक ने इसमें हीरो की चुलबली छोटी बहन का रोल किया है।
हिसार में एमजी रिजोर्ट भी बना और मीराज भी बन गया। सन सिटी और मीराज शहर के अंदर हैं जबकि एमजी रिजोर्ट बाहर है। मल्टीप्लेक्स में कोई बाॅक्स नहीं होता। न चवन्नी छाप टिकट और न ही चवन्नी छाप दर्शक जो फिल्म को सफल बनाने में बड़ा योगदान देते थे। सिनेमाघरों के बाहर भी कुछ रेहड़ी वाले रोज़गार पा जाते थे। अब तो मल्टीप्लेक्स के अंदर ही सौ सौ रूपये के महंगे पाॅपकार्न लेने पड़ते हैं। अब मोबाइल पर ही पूरी फिल्म देखी जा सकती है। ऐसा लगता है कि मल्टीप्लेक्स का युग भी धीरे धीरे बीत जायेगा! यही आवाज दिल से निकल रही है :
ऐ सिनेमाघर तेरे अंजाम पे रोना आया!