समाचार विश्लेषण/दुख दर्द और पीड़ा की झांकियां
-कमलेश भारतीय
एक और बातचीत का दौर विफल ।। एक बार और उम्मीद टूटी किसान की । हर बार एक मज़ाक, कैसी बातचीत ? होल्ड कर लेंगे एक दो साल कृषि कानून । यह कोई हल है ? होल्ड क्यों ? रद्द क्यों नहीं ? होल्ड एक चालाकी और रद्द मतलब हार । यह हार स्वीकार करने को तैयार नहीं
सरकार । बड़ी बड़ी भूलें या बड़े बड़े गलत फैसले हो जाते हैं तो क्या इसे स्वीकार नहीं करते ? जम्मू कश्मीर का फैसला ऐसा ही तो है । लौह पुरूष सरदार बल्लभ भाई पटेल इसे भी जीत लेते तो जीत लेते । पर अब तक यह फंसा है । पर यहां किसान आंदोलन पर तो पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता न । नहीं तो कितने फैसलों के लिए उनकी मदद ली जाती है और उन्हें दोषी ठहरा दिया जाता है । बाकी ताज़ा घटनाओं के लिए राहुल बाबा है ही । वह विदेश जाये तो भी उसकी आलोचना और किसान आंदोलन का दोष उस पर । न जाये तो कहते हैं कि इसे किसानों का क ख ग भी आता नहीं । यानी राहुल ही दोषी है । अरविंद केजरीवाल पर भी काफी दोष लगाये जाते रहे । पश्चिमी बंगाल में भी सारा दोष ममता बनर्जी का । कुछ तो है जो कमाल है । अब वहां सारा ध्यान कि तृणमूल से विधायक तोड़ें तो कैसे और कितने तोड़ें ।
किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट को भी खींच लाये । कभी ट्रैक्टर परेड रोकने के लिए तो कभी कृषि कानून पर सोचने का समय लेने के लिए । जब सुप्रीम कोर्ट को भी संदेह की नज़र से देखा जाने लगा तब खुद ही सुझाव दे दिया कि होल्ड कर लेते हैं । पर किसान इसके लिए तैयार नहीं । वे तो ट्रैक्टर परेड के लिए तैयार और अपने दुख दर्द की झांकियां भी निकालेंगे । क्या हर बाॅर्डर पल और पोल प्लाजा पर किसान के दुख दर्द की झांकी नज़र नहीं आ रही सरकार? साहब , किसानों की इतनी अग्नि परीक्षा न लीजिए ।
गैरों पे करम
अपनों पे सितम
ऐ जाने वफा
ये जुलम न कर ,,,,