तुम्हें याद हो कि न याद हो/कमलेश भारतीय 

आज मेरा मित्र डाॅ सुरेंद्र मंथन इस दुनिया में नहीं पर मुझे उसने जो किशोर मिलवाया था वह आज देश के शीर्ष काॅर्टूनिस्टों में एक है ।

तुम्हें याद हो कि न याद हो/कमलेश भारतीय 
कमलेश भारतीय।

दैनिक ट्रिब्यून का नवांशहर से मैं पार्टटाइम रिपोर्टर था । साथ में खटकड कलां के आदर्श स्कूल में हिंदी प्राध्यापक । इसके साथ मूलतः कहानीकार । सन् 1984 में पंजाब विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष थे डाॅ वीरेंद्र मेहंदीरत्ता । उन्होंने विभाग की ओर से एक कहानी कार्यशाला आयोजित की तो मुझे और मेरे सहयोगी डाॅ सुरेंद्र मंथन को भी इसमें प्रतिभागी बनाया । मेंरी सबसे बड़ी खुशी यह कि सबसे पहली कहानी मेरी ही थी जिसके पाठ के लिए पहले ही सत्र में आमंत्रित किया । डाॅ महीप सिंह मुख्यातिथि के रूप में मौजूद थे । बाद में जिन्होंने मेरा प्रथम कथा संग्रह महक से ऊपर प्रकाशित किया।
शाम के समय एक किशोर डाॅ सुरेद्र मंधन से मिलने आया । उन्होंने उसका परिचय देते बताया कि यह स्वर्गीय कथाकार  बलराज जोशी का बेटा संदीप है । बहुत अच्छी पेंटिंग्स बनाता है । आप इतने फीचर लिखते हो । एक फीचर मेरे मित्र के इस बेटे के बारे में भी लिख दो । मैंने कहा कि इस तरह यूनिवर्सिटी में खड़े खड़े फीचर नहीं लिखा जा सकता । यह मुझे अपनी पेंटिंग्स दिखाए तभी कुछ लिख सकूंगा । उस रात यूनिवर्सिटी में हमारे रुकने का प्रबंध था । लेकिन डाॅ सुरेंद्र मंथन ने पेशकश की कि आप इसके साथ घर चले जाओ और वहीं रात को रुक जाना और पेंटिंग्स भी देख लेना । मुझे यह पेशकश सही लगी और मैं उस शाम संदीप के साथ सेक्टर तेइस स्थित उसकी मम्मी को मिले क्वार्टर में चला गया ।  यह बता दूं कि बलराज जोशी बहुत अच्छे व चर्चित कथाकार थे लेकिन छोटी आयु में निधन हो गया जिसके चलते संदीप की मम्मी को  सरकार ने अनुकम्पा के आधार पर नौकरी दी ।
खैर , मुझे उत्तराखंड के दाल भात परोसे गये और बाद में मैंने संदीप की पेंटिंग्स देखीं । जो उसने खाकी कागजों में लपेट कर बड़े करीने से संभाल रखी थीं । मैंने एक पेंटिंग को पसंद किया और कहा कि इसकी बढ़िया फोटोकाॅपी मुझे नवांशहर के पते पर भेज देना । इस तरह पेंटिंग्स पर बातचीत कर दूसरी सुबह मैं अपने शहर लौट आया ।
दो तीन दिन बाद मुझे डाक में पेंटिंग की फोटोकाॅपी मिल गयी और मैंने फीचर लिख कर दैनिक ट्रिब्यून में भेज दिया जो बहुत बढ़िया तरीके से संदीप की फोटो  व उसकी पेंटिंग के साथ प्रकाशित हो गया । मैं आमतौर पर शनिवार या रविवार चंडीगढ़ जाता । साहित्यिक और पत्रकारिता के नये टिप्स ग्रहण करने या समारोह में भाग लेने । उसी रविवार मैं चंडीगढ़ गया और दैनिक ट्रिब्यून के न्यूज रूम भी पहुंचा । तभी समाचार संपादक सत्यानंद शाकिर ने मुझे बुलाया और सामने कुर्सी पर बैठने को कहा । उन्होंने मुझे कहा कि तुमने एक बड़ा पुण्य का काम किया है संदीप जोशी के बारे में फीचर लिखकर । बलराज जोशी मेरे मित्र थे और मैं इस परिवार की मदद करना चाहता था लेकिन अता पता नहीं था । तुमने ढूंढ निकाला । अब एक और पुण्य कर दो । वह यह कि संदीप को मुझसे मिला दो । मैंने कहा कि आज ही लीजिए । मैं वहां से सीधा तेइस सेक्टर पहुंचा और संदीप को बताया । उसने अपनी साइकिल निकाली और मुझे पीछे बिठा कर दैनिक ट्रिब्यून ऑफिस सेक्टर 29 तक चला कर गया । 
सत्यानंद शाकिर ने संदीप से परिवार की जानकारी ली और उस समय संपादक राधेश्याम शर्मा से मिलवाया । इसी मिलन के बाद दैनिक ट्रिब्यून में कुछ दिनों बाद काॅर्टून कोना ताऊ बोल्या के प्रकाशन की शुरूआत हुई और संदीप जोशी एक पेंटर आर्टिस्ट से काॅर्टूनिस्ट बन गया । उसके काॅर्टून चौ देवीलाल को इतने पसंद आए कि नरवाना के एक समारोह में बुलाकर पांच हजार रुपये का पुरस्कार दिया । आज तो नेता काॅर्टून बर्दाश्त ही नहीं करते । सम्मानित करने की कौन कहे ? यह बात आबिद सुरती जैसा काॅर्टूनिस्ट अपनी जुबां से कहते हैं ।
इसके बाद मैं सन् 1990 में चंडीगढ़ में ही दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय विभाग में उपसंपादक बन कर आ गया । इस बीच किशोर संदीप पढ़ाई पूरी कर चंडीगढ प्रशासन में नौकरी पा चुका था और साइकिल की जगह स्कूटर ने ले ली थी । जनसत्ता में उत्तराखंड के ही प्रमोद कौंसवाल साहित्य पन्ना देखते थे । उन्होंने काॅर्टूनिस्ट के तौर पर जनसत्ता में संदीप की बात चलाई तो वह मेरे पास सलाह लेने ऑफिस में आया । तब मैंने उसे सलाह दी कि देखो  काॅर्टून के कैरीकैचर या चरित्र बार बार लोकप्रिय नहीं होते । तुम दैनिक ट्रिब्यून में ही जमे रहो । 
इस बीच मैंने इंग्लिश ट्रिब्यून के सहायक संपादक कमलेश्वर सिंन्हा को बताया कि संदीप को जनसत्ता वाले ले जाने की कोशिश में हैं । इसे किसी तरह रोक लीजिए । बस उन्होंने बात एडीटर इन चीफ तक पहुंचाई और संदीप को फुल्ल टाइम  काॅर्टूनिस्ट बना दिया गया । इस तरह उत्तर भारत के एक बढ़िया काॅर्टूनिस्ट का जन्म हुआ देखते देखते । उसने मेरी लघुकथा पुस्तक मस्तराम जिंदाबाद का कवर भी बनाया । और स्वयं अम्बाला छावनी जाकर महाराज कृष्ण जैन को देकर आया । इस तरह एक पुस्तक में वह मेरा सहयोगी भी रहा । 
एक बार उसका काॅर्टून चौ भजनलाल पर था । सोनिया गांधी और भजनलाल दोनों मेज़ के साथ लगी कुर्सियों पर आमने सामने बैठे हैं और लिखा है कि यह कैसी बातचीत ? एक को हिंदी नहीं आती तो दूसरे को अंग्रेजी नहीं आती । मैं हिसार में ही पोस्टिड था और उस रोज़ चौ भजनलाल भी हिसार में ही थे और मीडिया से बातचीत कर रहे थे तब मैंने वह काॅर्टून दिखाया । वे बहुत हंसे और बोले - इतनी अंग्रेजी तो आवे सै । इसी तरह एक बार चौ बंसीलाल को केंद्र से हटा कर हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया तब उसने कार्टून बनाया - बाबू बंसीलाल बगल में फाइलें दबाए चंडीगढ़ पहुंच रहे हैं और नीचे लिखा है - ईबकी बार नसबंदी कराने नहीं आया ।
खैर । जब ग्रंथ अकादमी का उपाध्यक्ष बन कर चंडीगढ़ लौटा तब संदीप से फिर मुलाकातें होती रहीं । उसने फिर एक सलाह ली कि मुझे हरियाणा साहित्य अकादमी सम्मानित करने जा रही है । सम्मान लेने जाऊं या नहीं ? मैंने सुझाव दिया कि ले लो । उसे पचास हजार रुपये का पुरस्कार मिला और इस उपलब्धि पर भी मैं मौजूद रहा ।एक किशोर से संदीप जोशी को क्या क्या बनते देखा । 
फिर वह हिसार आया विद्यादेवी जिंदल स्कूल तब मैंने अपने घर बुला उसकी प्रेसवार्ता करवाई जैसे मुझे खुशी सी चढ़ गयी ।
आज मेरा मित्र डाॅ सुरेंद्र मंथन इस दुनिया में नहीं पर मुझे उसने जो किशोर मिलवाया था वह आज देश के शीर्ष काॅर्टूनिस्टों में एक है । यह मेरी सबसे बड़ी खुशी है कि किसी को इतनी ऊंचाई पर देख रहा हूं । बधाई संदीप ।