मायानगरी का काला सच...?/कमलेश भारतीय

आखिर किसी गैर फिल्मी परिवार के व्यक्ति को इतना संघर्ष क्यों करना पड़ता है?  

मायानगरी का काला सच...?/कमलेश भारतीय
सुशांत सिंह राजपूत।

सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने एक बार फिर मायानगरी का काला सच सामने ला दिया है। यहां भी राजनीति की तरह कुछ परिवारवाद चलता है। पहले इसका शिकार कंगना रानौत हुई और उसने डट कर मुकाबला किया और कर रही है। इस बार भी उसने आवाज़ उठाई है। उसका कहना है कि यह आत्महत्या नहीं बल्कि सुशांत को इसके लिए सुनियोजित ढंग से मजबूर किया गया। जिसे बड़ी बड़ी फिल्मों से वंचित कर दिया गया। यदि ऐसा नहीं होता तो बाजीराव मस्तानी का हीरो सुशांत सिंह राजपूत होता जबकि वही नियम रणवीर सिंह पर भी लागू हो रहे थे। सुशांत सिंह राजपूत को छूट नहीं दी गयी। इस तरह एक अच्छी फिल्म उसके हाथ में आते आते रह गयी। शेखर कपूर की पानी के लिए आठ महीने सुशांत ने पसीना बहाते लेकिन यह ठंडे बस्ते में चली गयी। इस तरह के अनेक उदाहरण सामने आ रहे हैं। आखिर किसी गैर फिल्मी परिवार के व्यक्ति को इतना संघर्ष क्यों करना पड़ता है? बेशक फिल्मी परिवार के लोग बिना प्रतिभा के बहुत दूर तक नहीं जा पाते। बिग बी अमिताभ बच्चन के बेटे अभिषेक बच्चन आज कहां हैं? राजकपूर के बेटों में से सिर्फ ऋषि कपूर ही सफल रहे जबकि रणधीर कपूर और राजीव कपूर जल्दी ही फिल्मों से बाहर हो गये। धर्मेंद्र के छोटे बेटे बाॅवी दयोल का करियर भी लम्बा नहीं चला और उनके भतीजे अभय दयोल भी बहुत कम दिखे। माला सिन्हा की बेटी प्रतिभा सिर्फ राजा हिंदुस्तानी के एक आइटम सांग के लिए याद की जा सकती है। इनके विपरीत धर्मेन्द्र और मनोज कुमार एक समय फुटपाथ पर सोकर संघर्ष करते रहे और सफल स्टार बने। संजीव कुमार सी ग्रेड फिल्मों से स्टार बने। ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। सुशांत तो स्टार बन चुके थे। सीरियल से निकल कर फिल्मों तक का सफर तय कर चुके थे। फिर इस संघर्ष से क्यों पीछे हट गये? आखिर एक अच्छे परिवार से थे। चार बहनों के इकलौते लाडले भाई। जीजा ओपी सिंह हरियाणा पुलिस के एडीजीपी। फिर क्या कमी थी? क्या परिवार के लोग सुशांत के मन को पढ़ने से चूक गये? माया नगरी को अनुपम खेर के बेटे सिकंद खेर ने भी जी भर कर कोसा है और गायक अभिजीत सावंत ने भी। क्या इस सारी चर्चाओं या बहस के प्रोग्राम से मायानगरी पर कोई असर पड़ेगा? लगता नहीं। सुशांत को संघर्ष करना चाहिए था। अपने मन की बात बहन से खोलनी चाहिए थी। कोई नहीं समझ पाया। कोई नहीं थाह पा सका सुशांत के मन की। वह अपने मन की बात मन में ही लेकर इस माया नगरी से विदा हो गया।