साहित्य का 'उन्मेष' होना बहुत जरूरी
-*कमलेश भारतीय
साहित्य का समाज स्थान तो है लेकिन अब आमजन के घरों में इसका प्रवेश निषेध जैसा है । पहले आमजन के घरों में कोई न कोई पत्रिका या किसी पाॅकेट बुक्स की किताबें आया करतीं जिससे बच्चे भी जाने अनजाने साहित्य की घुट्टी पा जाते थे । बहुत से साहित्यकारों ने इस बात को स्वीकार किया कि उनके घर का माहौल कुछ या बहुत कुछ साहित्यिक था । मां दोहे गुनगुनाती थी तो पिता अच्छा साहित्य मंगवाते थे । कोई न कोई बाल पत्रिका भी घर में आती थी । इस तरह कुछ साहित्यकार बचपन से ही डायरियों में छुप छुपा कर लिखने लगे । अब देखिए घरों में कोई किताब या बाल पत्रिका देखने को न मिलेगी । इसी के चलते बहुत सी पुरानी बाल पत्रिकायें बंद हो गयीं । बच्चे वीडियो गेम्स में या वाट्स अप यूनिवर्सिटी से सारा ज्ञान लेने लगे हैं । कागज पर छपीं किताबों या पत्रिकाओं की ओर देखते तक नहीं । यह बालपन से ही बालमन में साहित्य के प्रति प्यार जगाना जरूरी है । मेरे मित्र प्रताप जोकि पंजाब बुक सेंटर , चंडीगढ़ में कार्यरत थे , कहा था कि आमजन के बजट में किताब का बजट अब्बल तो है नहीं और अगर है तो सबसे नीचे । किताबों के संस्करण अब मात्र तीन सौ तक सिमट कर रह गये हैं ।
दूसरी ओर बड़े या छोटे शहरों में किताबों की यानी साहित्य की जानकारी देने वाली किताबों की दुकानें थीं लेकिन अब बड़े बड़े शहरों में भी ऐसी दुकानें गायब होने लगी हैं । भीष्म साहनी ने मेरे साथ बातचीत में कहा था कि अब सौंदर्य प्रसाधनों की दुकानें खुलने लगी हैं , मन के प्रसाधन की दुकानें बंद हो रही हैं । दूसरे आम आदमी की जिदंगी में अगर कोई सबसे शानदार बुक है तो वह है पासबुक । यानी धन ही धन की चिंता । मन की चिंता नहीं रही ।
अभी शिमला में साहित्य अकादमी की ओर से 'उन्मेष' नाम से साहित्य उत्सव का आयोजन किया गया जिसमें गुलज़ार , विशाल भारद्वाज की जुगलबंदी ने सबका दिल जीत लिया । इसी प्रकार प्रसिद्ध अभिनेत्री दीप्ति नवल ने भी बातचीत की साहित्यकारों के साथ जो बहुत दिलचस्प रही । दीप्ति नवल ने बताया कि वे आधी पहाड़ी हैं तो आधी पंजाबी क्योंकि उनकी मां हिमाचल से थीं तो पिता पंजाब के अमृतसर से । दीप्ति के अनुसार उनका कनेक्शन कांगड़ा से है । मेरे नाना पहाड़ी आदमी थे । वे डोगरी थे व कांगड़ा में रहते थे । इसी बात से यह बात भी खुली कि दीप्ति नवल मनाली में ज्यादा समय क्यों बिताती हैं और वहीं हिमाचल की प्राकृतिक सुंदरता के बीच न केवल कविताएं लिखती हैं बल्कि पेंटिंग्स भी बनाती हैं । दीप्ति नवल के अनुसार राइटर की जाॅब मुद्दों को सामने लाना है । इसमें सुधार लाना सरकार , विभिन्न विभागों और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं का काम है । दीप्ति ने इंटरनेट की दुनिया का उल्लेख करते कहा कि इस डिजीटल युग ने साहित्य के महत्त्व और अस्तित्व को बदल दिया है । इंटरनेट मीडिया में बहुत लोग लिखते हैं लेकिन यह पता नहीं चलता कि लिखने वाला कौन है और उसकी विचारधारा क्या है ? मेरा काम चीज़ों को उठाना है । आगे का काम समाज या सरकार का है ।
दूसरी ओर गुलज़ार व विशाल भारद्वाज की जोड़ी ने भी समां बांध दिया और गेयटी थियेटर साहित्य व संगीत से गुलज़ार हो गया । काश ! ये साहित्य उत्सव या ऐसे साहित्य उत्सव होते रहें , जिससे कि साहित्य का फिर से उन्मेष हो सके ।
काश! ऐसे साहित्य उत्सव छोटे छोटे शहरों में भी हों और पुस्तक प्रदर्शनियां भी शैक्षणिक संस्थानों में समय समय पर लगाई जायें जिससे कि नयी पीढ़ी किताबों की जादुई दुनिया को जान और समझ सके ।
किताबों की दुनिया फिर से गुलज़ार हो सके और पन्नों के बीच गुलाब रखे जाने लगें ।
साहित्य अकादमी को इस आयोजन की बहुत बहुत बधाई । उस आयोजन की भी जो हाल ही में दिल्ली में भी किया जिसमें प्रसिद्ध लेखक रामदरश मिश्र का व्याख्यान आयोजित किया गया था:
जहां आप पहुचे छलांगें लगाकर
वहा मैं भी पहुंचा मगर धीरे धीरे ...
साहित्य यह धैर्य और संतोष व मन की खुशी ही तो प्रदान करता है ।
आइए फिर से किताबों की दुनिया में लौट चलें ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।