राजस्थानी कवि राम स्वरूप किसान/कमलेश भारतीय द्वारा
जिन दिनों मुझे हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष की जिम्मेवारी निभाने का सुअवसर मिला तब 18 दिसम्बर, 2011को फतेहाबाद आमंत्रित किया गया । तिथि चूंकि किताब पर अंकित है, इसलिए याद रही । इस समारोह में राजस्थानी कवि राम स्वरूप किसान के काव्यसंग्रह के सिरसा के डाॅ शेर चंद द्वारा किये पंजाबी अनुवाद का विमोचन होने जा रहा था । प्रसिद्ध रचनाकार पूरन मुद्गल जी अध्यक्ष थे । मैंने मंच के सामने बैठे सचमुच किसान से लगते राम स्वरूप जी को देखा जैसे अभी वे खेतों से आ रहे हों । एक सफेद शाल ओढ़े । इतने साधारण और कितने प्रभावशाली कवि यह उनकी कविताओं को पढ़कर अहसास हुआ । कुछ वर्ष पहले किसान जी को बड़ा पुरस्कार भी मिल चुका है ।
इनकी आ बैठ बातें करें कविताओं की नौ कविताएं मंच पर बैठे ही पढ़ीं तो सुखद आश्चर्य से भर गया
और कभी देखा नहीं तेरी ठोड्डी का तिल सदा के लिए याद रह गया
संयोग से मेरी पत्नी की ठोड्डी पर भी तिल है
और सही बात यह कि हम कितनी उपेक्षा करते हैं ,,,
वैसे तिल हो या न हो
बड़ी बात कि उपेक्षा करते हैं हम साहित्यकार परिवार की
यह संदेश ,,,
आज आपको उस सुख तक ले जाने की कोशिश ।
मैंने पंजाबी पुत्तर होकर भी कभी पंजाबी में अनुवाद नहीं किया पर आपके लिए कोशिश की है । ये पूरी कविताएं नहीं पर उनके अंश हैं
आ बैठ बातें करें
एक दूजे का दीदार करें कितने लम्बे समय का साथ
साँसों से भी करीब हम
पर कर न सके दीदार
इक दूजे का
सच कहूं
मैं तो नहीं कर सका
तेरी तू जाने
सच कहूं
मैंने तुम्हारा सारा उपयोग किया पर देखा न
कभी तेरी ठोड्डी का प्यारा सा तिल
लेकिन
माफ करना
कब तेरे दांत टूट गये
और बाल हो गये सफेद
आ बड़े प्यार से देखूं तुझे प्रिय
कहीं जीवन की सांध्य बेला में
अंत समय न आ जाये
,,,,
आ बैठ बातें करें
लेन देन का हिसाब करें
शायद मैं ही तुम्हारा देनदार निकलूं
मुझ टूटे निराश इंसान को
तूने दिया सहारा
जब भी घर आया खाली हाथ हंसते हुई तुमने मेरी जेब टटोली और कविता ढूंढी
पैसों से अधिक
मान मेरी कलम को दिया
,,,,
आ बैठ बातें करें
खिलखिला कर हंसें
हाथ पर हाथ मार कर
उदास पलों का
मज़ाक उडायें ,,,,
,,,,,
आ बैठ बातें करें
दूरी और फर्क मिटा
करीब आएं ,,,
-प्रस्तुति: कमलेश भारतीय