समाचार विश्लेषण/शायरी प्रेम में आजाद हुए गुलाम?
-कमलेश भारतीय
क्या सिर्फ शायरी के प्रेम में एक मुशायरे में जाने के लिए आजाद गुलाम हो गये दिल के हाथों ? इतना सरल तो नहीं है यह सवाल । गुलाम नबी आजाद अभी तक कांग्रेस का चेहरा हैं पर कब तक ? कोई नहीं कह सकता । दल बदल के बिल्कुल निकट पहुंच चुके हैं । सीमा कब पार कर जाये , कोई नहीं जानता । बस । एक दिन घोषणा आनी बाकी है । जिस तरह से राज्यसभा से इनकी विदाई पर भावुक दृश्य सामने आया था इनके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच तभी यह समझ आने लगा था कि गुलाम नबी आजाद की राहें कांग्रेस से अलग होने वाली हैं । जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चिट्ठी युद्ध शुरू किया था , वह भी एक शुरूआती कदम माना जा सकता है । प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में कहा भी था कि गुलाम की सेवायें निष्फल नहीं जायेंगी । किसके लिए ? कांग्रेस या भाजपा के लिए ? जाहिर है कांग्रेस की बहुत सेवा कर चुके । अब तो कहीं नयी जगह नयी पारी की शुरुआत करेंगे । भाजपा जल्द से जल्द और मुशायरे करवाये ताकि आजाद पूरी तरह इनके गुलाम हो जायें और इनकी पार्टी में शामिल होने की घोषणा भी किसी मुशायरे में करवायी जाये ।
वैसे अल्पसंखक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी बड़ी मासूम सी सफाई दे रहे हैं कि आजाद मुशायरा प्रेमी हैं । इसलिए आए । इसमें कोई मतलब नहीं निकालना चाहिए । बात कुछ हजम नहीं होती । वैसे कपिल सिब्बल भी गुलाम नबी आजाद के चिट्ठी युद्ध में साथ थे, मुशायरा सुनने वे गुलाम के साथ नहीं आए । मुशायरा तो एक बहाना है , भाजपा के साथ नजदीकियां बढ़ाना है । धीरे धीरे प्यार को बढ़ाना है और कांग्रेस की हद से गुजर जाना है । सवाल उठता है यदि एक पार्टी में इतनी लम्बी पारी खेलने के बाद सपने बाकी हैं , इच्छाएं बाकी हैं तो फिर छोटे नेताओं के बारे में दल बदलने पर काहे का अफसोस? सारी ज़िंदगी एक पार्टी में बिता कर और बडे से बड़े पद लेकर भी लालसाएं बाकी हैं तो कम से कम लालकृष्ण आडवाणी जी का उदाहरण देख लीजिए कि उनकी सेवाओं का क्या सम्मान किया गया ? वे मार्गदर्शक बना कर घर बिठा दिये गये । आप किस उम्मीद में जाने की तैयारी में हो ? राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति? नजमा हेपतुल्ला भी गयी थीं और वे पा गयीं जो पाना चाहती थीं । वैसे भी भाजपा को राजनीतिक शुद्धिकरण की गंगा माना जा रहा है । ज्योतिरादित्य सिंधिया भी गये । राज्यसभा में ही पहुंच पाये अभी तक मंत्री पद को तरस रहे हैं महाराजा । पश्चिमी बंगाल के शुभेंदु चुनाव से पहले शुद्ध हो चुके । अब वे भ्रष्ट नहीं रहे । इसीलिए ममता बनर्जी कह रही हैं कि भाजपा के सहयोगी रह गये सीबीआई और आईडी ही साथ दे रहे हैं । बात में कुछ दम तो है । अभी ममता बनर्जी का भतीजे अभिषेक भाजपा में शामिल हो जाये तो सारे पाप धुल जायें । बहुत से तृणमूल कांग्रेस के विधायकों के पाप दूर चुके हैं । तो अभिषेक को कैसे दाग और पाप रह जायेंगे ? सोच लो अभिषेक । मौका है । लगा लो चौका । बुआ के भरोसे रहे तो ...
इसके बावजूद महाराष्ट्र में सरकार चला रहीं तीनों पार्टियां शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस मिल कर निकाय चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं । अमित शाह जी । ध्यान दीजिए ।।सारा ध्यान तो गोवा में लगा रखा है । दलबदल जिंदाबाद ।