समाचार विश्लेषण/मां, माटी और मानुस नहीं गौत्र शांडिल्य है ममता बनर्जी का
-कमलेश भारतीय
राजनीति भी किस अजीब मुकाम पर पहुंच गयी । पहले तो विरोधी प्रत्याशी की पूरी जन्म कुंडली निकाल कर रख दिया करते थे लेकिन अब प्रत्याशी खुद ही गौत्र तक बताने लगे हैं जैसे पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बताया अपना गौत्र । उनका कहना है कि मैं एक मंदिर गयी थी , जहां पुजारी ने मेरा गौत्र पूछा तो बताया कि मां , माटी और मानुस लेकिन आप लोगों को बता दूं कि मेरा गौत्र शांडिल्य है । क्या जरूरत आन पड़ी गौत्र बताने की ? यही भाजपा के प्रकाश जावड़ेकर पूछ रहे हैं कि आखिर हिंदू बताने की जरूरत क्यों पड़ी? जबकि आपने पश्चिमी बंगाल में दुर्गा पूजा पर मूर्ति विसर्जित करने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था । अब चुनाव आया तो हिंदू होना भी याद आया । यह धर्मनिरपेक्ष देश है और चुनाव में धर्म का क्या काम? यानी राजनीति के अंगने में धर्म या धार्मिक चिन्हों का क्या काम ? चुनाव न हों तो प्रियंका गांधी की तरह कुंभ स्नान करना बुरा नहीं । चुनाव न हों तो किसी भी मंदिर मस्जिद जाइए । चुनाव में धर्म का उपयोग गलत है । अब इस पर कोई अमल नहीं करता । प्रधानमंत्री भी उत्तरकाशी में घोर तपस्या करते दिखाई देते हैं लेकिन बिना मीडिया सब सून । जैसे आजकल कहते हैं कि कोरोना का टीका लगवाते समय फोटोग्राफर साथ रखिए नहीं तो किसे पता चलेगा कि आपने कोरोना का टीका लगवा लिया है । फोटोग्राफर्ज सारे बुक हैं और मैं टीका नहीं लगवा पा रहा । क्या करूं ? गिरिराज सिंह कह रहे हैं कि मुझे कभी अपना गौत्र बताने की जरूरत नहीं पड़ी । पर आपकी तीखी जुबान के तीखे बयान ही आपका गौत्र मान लेते हैं जनाब । पाकिस्तान चार चले जाओ , आपने ही तो कहा था ।
राजनीति की बात हो रही थी । ममता बनर्जी कह रही हैं कि भाजपा ने नंदीग्राम में गुंडे भेज दिये । निर्वाचन आयोग ध्यान दे । कहां फुर्सत निर्वाचन आयोग के पास । ईवीएम की पूजा करो अब तो । ईवीएम आपका साथ दे , कल्याण करे । विजयी भव: बोल दे एक बार । प्रियंका गांधी असम के चुनाव प्रचार में चाय की पत्तियां तोड़ती नज़र आई तो राहुल गांधी वर्क आउट करते दिखे । ये कैसा चुनाव प्रचार है ? इसीलिए कहा कि लड़कियों के काॅलेज में ही चुनाव प्रचार करने क्यों जाते हैं? सीआईडी के चीफ ने भी पूछा कि कुछ तो गड़बड़ है दया । पता करो ।
महाराष्ट्र में सौ करोड़ की वसूली कोर्ट तक पहुंच गयी और पुलिस प्रमुख रहे परमबीर से जज पूछ रहे हैं कि आपने एफआईआर दर्ज क्यों नहीं करवाई ? कितने बेबस रहे होंगे पुलिस प्रमुख फिर आम आदमी कैसे एफआईआर दर्ज करवा सकता है ? सौ करोड़ के बीच सचिन बाजे का नाम भी बज रहा है । विस्फोटक छड़ें भी आ रही हैं । कितना कुछ । जैसे सुशांत सिंह राजपूत का केस कहां से चला और कहां पहुंच गया था , कोई और छोर ही न रहा । ऐसे ही सौ करोड़ वसूली का क्या होगा रे कालिया ?