समाचार विश्लेषण/गद्दी खाली करो कि किसान आते हैं 

जेपी की वापसी? 

समाचार विश्लेषण/गद्दी खाली करो कि किसान आते हैं 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
कभी जननायक जयप्रकाश नारायण ने पटना से प्रदर्शन कर आवाज़ बुलंद की थी इंदिरा गांधी के तानाशाही फैसले के खिलाफ और वह आवाज़ कब देश भर में गूंज गयी यह लोह महिला इंदिरा गांधी को भी पता नहीं चला । बेशक उस जनांदोलन को दबाने के लिए इंदिरा गांधी ने कड़े से कड़े कदम उठाये पर जनता ने एक बार जो मन बना लिया उसे बदल न सकीं । आपातकाल की ज्यादतियां भी डिगा न सकीं । जिस प्रधानमंत्री को दुर्गा अवतार तक कहा गया और जिसकी लोकप्रियता देश विदेश में आसमान छू रही थी , वही प्रधानमंत्री अपने तानाशाही फैसलों के चलते अपने ही गढ़ रायबरेली में पराजित हुईं । जैसे अब इतने सालों बाद राहुल गांधी अमेठी से हारे । यानी बात साफ जब आप आपने ही मन की करने लगते हैं तब जनता भी अपने मन की करती है । इसमें प्रमाण की कोई जरूरत नहीं है , साहब ।

जयप्रकाश नारायण अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद नायक ही नही जननायक बने और राष्ट्रपति पद तक की पेशकश ठुकरा दी और जननायक बन कर ही रहे । जेपी ने एक आह्वान किया था -राईट टू रिकाॅल यानी जब हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधि जनता का विश्वास को बैठें तब उन्हें वापस बुलाने का अधिकार जनता को मिलना चाहिए । पर सभी दल इसे स्वीकार करने से डरते हैं । अब देखिए जब दलबदल कर विधायक पाला बदलते हैं तब जेपी कितने याद आते हैं । चुना किसलिए और आप चले गये कहां ? जिसका विरोध कर चुनाव जीते , उसी दल के साथ मिल कर सरकार बना ली । फिर क्यों न याद आएं जेपी ? जनता छली जाती है और छली गयी महसूस करती है हर बार । यह किसी एक राज्य की कहानी नहीं । यह तो हर राज्य में हो रहा है । किस किस को रोयें ? संविधान , जनसेवा, समपर्ण और सादगी की बातें तो पुरानी हो चुकीं । 
छोड़ो कल की बातें 
कल की बात पुरानी 

अब तो हर सरकार बिकाऊ है । लोकतंत्र बिकाऊ है । राकेश टिकैत का शुक्रिया जिसने फिर जेपी के स्टाइल में चुनौती दी है -गद्दी खाली करो कि युवा किसान आ रहे हैं । 
अभी तक सिर्फ अंगड़ाई है ।
आगे और लड़ाई है  

अभी तो सिर्फ आह्वान है । राकेश टिकैत का कहना बहुत सही कि अभी तो कीलबंदी की है हमारी और कल हमारी रोटी अमीर की तिजोरी में बंद होगी फिर क्या होगा ? इसलिए गद्दी खाली करो कि किसान आते हैं । यह आवाज़, यह आह्वान वैसा ही है जैसा कभी जेपी ने किया था । संभल जाओ और स्वीकार कर लीजिए इनकी मांगें और खुद भी सुख से रहो और इनको भी सुख से रहने दो , साहब । कहीं देर हो गयी तो मुश्किलें बढ़ती जायेंगी और कीलबंदी किसी काम नहीं आयेगी ।