समाचार विश्लेषण/मंत्री ने लगाया पोचा, काम हुआ चोखा
-कमलेश भारतीय
कोरोना संकट की घड़ी में एक शुभ खबर भी है । एक सीख भी है और प्रेरणादायक बात भी । कोरोना से संक्रमित अपनी पत्नी और बेटे के उपचार के लिए मिजोरम के ऊर्जा मंत्री आर लालजिरलियाना ने खुद ही अस्पताल के उस बार्ड में पोचा लगाना शुरू कर दिया , जिस बार्ड में उनकी पत्नी व बेटा इलाज के लिए दाखिल थे । आखिर ऐसी नौबत क्यों आई ? इस पर मंत्री महोदय ने जवाब दिया कि मैंने सफाई के लिए स्वीपर को बुलाया था क्योंकि कमरा बहुत गंदा था । लेकिन जब कोई नहीं आया तब मैंने खुद ही साफ कर लेना सही समझा । उन्होंने यह बात भी कही कि मैंने किसी को शर्मिंदा करने के लिए नहीं बल्कि उदाहरण पेश करने के लिए ऐसा किया। वैसे भी झाड़ू पोचा लगाना मेरे लिए कोई नयी बात नहीं । सैल्यूट मंत्री महोदय । ऐसा प्रेरणाप्रद उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए ।
कोरोना काल में बहुत सी स्वयंसेवी संस्थाएं सहयोग के लिए जुटी हुई हैं । उनको भी सलाम ।
यह हमारी कुछ कथाएं भी कहती हैं और बताती हैं । ईश्वर चंद्र विद्यासागर की छोटी ही कथा बहुत पढ़ी है । वे एक ट्रेन में सवार थे । जैसे ही उनका स्टेशन आया तो एक युवक भी उनके साथ उतरा और छोटे से अटैची को उठाने के लिए कुली कुली पुकारने लगे । कोई कुली था नहीं तो ईश्वर चंद्र ने ही अटैची पकड़ा और स्टेशन के बाहर तक छोड़ दिया । वे उस शहर के एक काॅलेज में व्याख्यान देने आए थे । उस दिन व्याख्यान इसी घटना से शुरू किया । जब व्याख्यान समाप्त हुआ तो वही युवक ईश्वर चंद्र विद्यासागर से माफी मांगने आया और फेट फूट कर रोया । यानी कथनी और करनी में फर्क नहीं होना चाहिए और छोटे मोटे काम हमें दूसरों पर निर्भर रहने की बजाय खुद ही कर लेने चाहिएं । यह संदेश देने में ईश्वर चंद्र विद्यासागर सफल रहे ।
गुरु नानक देव जी से जुड़ी एक ऐसी कथा भी बचपन से सुनता पढ़ता आया हूं । गुरु नानक देव किसी बड़े सेठ के घर गये हुए थे । उन्होंने पानी मांगा तो सेठ का बेटा पानी का गिलास लेकर आया । उसके साथ बहुत कोमल थे । गुरु नानक देव जी ने पूछा कि हाथ इतने कोमल कैसे ? बालक ने जवाब दिया कि पिता जी मुझसे कोई काम नहीं करवाते और न ही करने देते । इसके कारण मेरे साथ ऐसे हैं । इस पर गुरु नानक देव जी ने पानी का गिलास वापस कर दिया और हाथ से मेहनत करने की सीख दी । अपने व्यवहार से ही शिक्षा दे दी।
ऐसी एक और छोटी सी कहानी हमारी दादी सुनाया करती थीं कि एक राजा की जब शादी हुई तो रानी ने पूछा कि कोई हाथ का हुनर आपको आता है ? इस पर राजा ने कहा कि मैं तो राजा हूं , मुझे हाथ का हुनर सीखने की क्या जरूरत ? इस पर रानी ने बड़े प्यार से कहा कि आपको मेरे लिए एक हुनर तो जरूर सीखना होगा । नयी नयी दुल्हन और प्यार भरी मनुहार राजा ने टोकरी बनाने का हुनर सीख लिया । कुछ समय बाद राजा शिकार खेलने गया तो वहां जंगली लुटेरों ने कैद कर लिया । राजा को पूछा कि कोई काम आता है कि खाली रोटियां ही तोड़ते रहोगे ? राजा ने बताया कि सामान ला दो , मैं टोकरियां बना सकता हूं । सामान ला दिया और राजा ने एक टोकरी में अपने पकड़े जाने की खबर छिपा कर रानी तक पहुंचा दी । यह कह कर कि यदि रानी को यह टोकरी बेचोगे तो बहुत कीमत मिलेगी। खबर मिलते ही रानी ने सेनापति को बुलाया और सैनिक भेजकर राजा को छुड़वा लिया । तब राजा ने रानी का शुक्रिया अदा करते कहां कि यदि यह हुनर नहीं आता तो उनकी कैद में ही ज़िंदगी निकल जाती ।
मित्रो , एक कथा महाराजा रणजीत सिंह की भी याद आ रही है। उनके शासनकाल में भारी अकाल पड़ा और वेफ्लयं भेष बदल कर अनाज बांटते थे । एक वृद्धा आई और पूरा बीस सेर अनाज बोरी में भरवा लिया परिवार के लिए । बोरी उठे नहीं तब महाराजा रणजीत सिंह ने खुद सिर पर उठाई और घर तक छोड़ने गये । बोरी उतरवाते समय बीमार बहाने पहचान लिया तो वृद्धा ने रोते हुए कहा कि मेरा बेटा नहीं रहा अकाल में । इस पर महाराजा रणजीत सिंह ने जवाब दिया कि मां , मैं भी तो तेरा बेटा ही हूं।
एक हमारे मंत्री महोदय हैं मध्यप्रदेश के जिन्होंने घर बुलावा कर अपने परिवार जनों के वेक्सीनेशन करवाये । यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गयी और जिनको जनता के वेकासीनेशन लगवाने की जिम्मेदारी थी वे अपने परिवार तक सीमित बो कर रह गये । शर्मनाक।
मित्रो , अपने दिन प्रतिदिन के कामकाज में या इसी तरह कार्यालय या अस्पताल में हम भी ऐसी स्थितियों से दो चार होते होंगे और उस भूले युवक की तरह सहायता के लिए इधर उधर देख रहे होंगे तब मिजोरम के इस मंत्री को याद करना और अपना छोटा मोटा खुद कर लेना ताकि देर न हो जाये और कहते भी हैं कि अपने हाथ , जगन्नाथ।
कह रहा हूं दुष्यंत कुमार के शब्दों में :
कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए
कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए