समाचार विश्लेषण/महंगाई डायन खाये जात है
-कमलेश भारतीय
यों तो पिपली लाइव का यह गाना आए और लोकप्रिय हुए बरसों बरसों बीत गये लेकिन महंगाई डायन है कि खाये जात है,,,बस,,,खाये जात है । अब तो महंगाई आसमान छू रही है । कभी मनोज कुमार यानी भारत ने भी एक फिल्म में प्रेमनाथ के रोल से महंगाई का रोना दिखाया था कि कभी हम मुट्ठी भर पैसे लेकर जाते थे और थैला भर सामान खरीद कर आते थे लेकिन अब हालात यह हो गये हैं कि थैला भर पैसे लेकर बाज़ार जाते हैं और मुट्ठी भर सामान लाते हैं । अब आप ही सोचिए तब से कितनी महंगाई बढ़ चुकी होगी ? कितने आसमान पार कर चुकी होगी ? सातवें आसमान से भी ऊपर यानी सुपर डुपर महंगाई हो चुकी है । पहले एक सौ रुपये का पता नहीं चलता था कि इधर जेब में डाला और उधर किधर चला गया । आजकल पांच सौ के नोट का भी यही हाल हो गया है । पता नहीं चलता कि घर से लेकर तो गये थे , आखिर गया कहां ? यह हाल है ।
ऐसे में अगर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी चाय-नाश्ते पर बुला कर विपक्षी दलों के साथ संसद तक साइकिल चले कर विरोध जताने गये तो क्या गलत किया ? आखिर कोई तो विरोध करेगा कि सब गोदी मीडिया का दिखाया योगी मोदी के विज्ञापनों को ही सच मानेगा? कहते हैं कि सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता है और सावन तो आया ही हुआ है तो गोदी मीडिया को सब हरा ही हरा और खुशहाल ही दिखता है । महंगाई डायन सुरसा की तरह मुंह खोले आम आदमी को खाये जा रही है , यह दिखाई ही नहीं देता । कौन सा चश्मा लगाये हो भैया ? कहां से मिला है और कितने का मिला है ? वही देखोगे और वही दिखाओगे या चश्मे को उतार कर भी कुछ देखोगे और दिखाओगे?
पहले ट्रैक्टर पर चल कर संसद पहुंच कर कृषि कानूनों का विरोध दर्ज कराया और अब साइकिल पर चल कर महंगाई डायन आ रही है , इससे आम आदमी को बचाओ की दुहाई दी । विपक्ष को संसद न चलाने देने के लिए कोस रहे हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी । खर्च भी पता दिया कि 133 करोड़ बर्बाद कर दिये । दूसरी ओर विपक्ष कह रहा है कि सरकार यह चाहती है कि बहस हो ही नहीं और बहिष्कार कर विपक्ष निकल जाये और वे मनपसंद फैसले कर लें । जैसे कृषि कानून पास कर लिये । जब संसद में मुद्दे ही उठाने नहीं दोगे तो फिर विपक्ष सड़क पर ही निकलेगा। फिर दोष किसलिए ? आप खुद भी तो कहते रहे कि संसद में विपक्ष बोलने का मौका नहीं देता इसलिए आपके बीच आया हूं जनसंसद में । आपकी पंचायत में आया हूं तो प्रधानमंत्री जी माहौल बनाइये ऐसा कि संसद चले और देश की समस्याओं पर चर्चा हो न कि धन व समय की बर्बादी हो । सब जगह राजहठ न चलाइये । कुछ लोकलाज भी रखिए और लोकतंत्र की पर॔परायें भी निभाइये । न विपक्ष की कार्यवाही सराहनीय है और न सत्ता पक्ष की । थोड़ा आम आदमी का सोचें दोनों पक्ष । महंगाई, कृषि कानून और जासूसी कांडों पर बहस हो जाने दीजिए न ।।बाकी आपने हाॅकी का पूरा मैच देख कर धन्य कर दिया देषवासियों को ।
(लेखक पूर्व उपाध्यक्ष,हरियाणा ग्रंथ अकादमी हैं)