समाचार विश्लेषण/असंतुष्टों को मनाने के दिन आए
- कमलेश भारतीय
आखिर कांग्रेस ने जी -23 समूह यानी असंतुष्टों को मनाने की कोशिश शुरू कर दी है । पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद यह भी तय हो गया कि अभी सोनिया गांधी ही आलाकमान रहेंगीं और असंतुष्ट समूह की आवाज़ अनसुनी ही रह गयी । असल में सोनिया गांधी को हटाये जाने की मांग ज़ोर शोर से यह समूह उठा रहा था । इसके लिए जम्मू को चुना गया और गुलाबी पगड़ियां पहन कर असंतुष्ट होने का संकेत भी दिया गया । यदि कांग्रेस अब भी असंतुष्टों को मनाने की कवायद शुरू नहीं करेगी तो यह भी लापता हो जायेगी जैसे आउटलुक का मुखपृष्ठ भाजपा की केंद्र सरकार को लापता बता रहा है ।
लापता : केंद्र सरकार।
उम्र: सात साल ।
खोजें : भारतवासी ।
यह ऐसा मुखपृष्ठ है जो बड़ी तेजी से वायरल हो रहा है । आखिर जिन दिनों देश के प्रमुख पश्चिमी बंगाल में बड़ी बड़ी रैलियां और रोड शो करने निकले हुए थे उन दिनों देश भर में कोरोना अपना सिर फिर से उठा रहा था । तब यही लगता था कि केंद्र सरकार लापता हो गयी है जो कोरोना से लड़ने की बजाय एक प्रदेश को जीतने में सारी ताकत लगा रही है । यह भारी भूल साबित हुई भाजपा के लिए । न खुदा ही मिला, न बिसाले सनम । वहां भी दो सौ पार करते करते औंधे मुंह गिरे और कोरोना से लड़ने की कोई तैयारी न करने पर कोर्ट से डांट भी खाई कि आखिर आपकी तैयारी क्या थी ? कहां थी सरकार ? लापता ?
कई बार फोटो सब कुछ बयान कर जाती है बजाय बड़े बड़े लेख लिखने के ।
मुझे याद आ रहा है साप्ताहिक धर्मयुग का मुखपृष्ठ जब अढ़ाई साल के छोटे से कार्यकाल के बाद जनता सरकार टूट गयी थी और मध्यावधि चुनाव की नौबत आ गयी थी । जब जनता सरकार बनी थी तो सभी मंत्री राजघाट जाकर महात्मा गांधी की समाधि पर मस्तक नवाने गये थे । इसी फोटो को सरकार टूटने के बाद साप्ताहिक धर्मयुग ने अपने मुखपृष्ठ पर प्रकाशित किया था यह लिख कर -क्या हुआ तेरा वादा , वो कसम, वो इरादा? सच। एक फोटो हज़ार शब्दों पर भारी पड़ जाती है । यह सीखने और समझने की बात है ।
अब भाजपा को अपनी इमेज बचाने के लाले पड़े हैं और अनुपम खेर जैसे घोर समर्थक भी कहने लगे कि भारी चूक हुई है कहीं कोरोना से निपटने में ।
इसी तरह भारी चूक हुई है कांग्रेस से अनुभवी राजनेताओं को संभालने में । पांच राज्यों के चुनाव प्रचार पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ही निकले और वो भी बीच में प्रचार छोड़ आए । क्या कभी आधी अधूरी कोशिश से जीत मिल सकती है ? नहीं मिली न । पश्चिमी बंगाल में अपने गढ़ भी न बचा सकी कांग्रेस और दिल्ली की तरह सिफ़र पर आ गयी । केरल में भी आशा पूरी न हुई और सिर्फ तमिलनाडु में स्टालिन के साथ से जीत का स्वाद मिल पाया। पुडुचेरी भी खो दी और असम में कांग्रेस से निराश होकर गये हिमंत विस्वा भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री बन गये । सुना है कि वे राहुल गांधी के तौर तरीकों से दुखी थे । जैसे महाराष्ट्र में प्रियंका चतुर्वेदी दुखी हुईं अपनी उपेक्षा से । प्रियंका गांधी कोशिश करने जा रही हैं । आवाज़ आ रही है कि गुलाम नवी आजाद को राज्यसभा में फिर से भेजा जा सकता है और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जा सकता है । शुक्र है , दो राज्यों के चुनाव से पहले प्रियंका गांधी सक्रिय हो रही हैं । पंजाब में भी कैप्टन अमरेंद्र सिंह व नवजोत सिद्धू के बीच मनमुटाव दूर करने का समय है नहीं तो वहां भी नुकसान होने की आशंका है । हम तो यही कहेंगे :
देर न हो जाये कहीं देर न हो जाये...