प्रेस की आजादी कितनी?
-कमलेश भारतीय
सुशांत सिंह राजपूत के केस की जैसी जांच चल रही है , उससे यही लगता है कि मीडिया ट्रायल सबसे आगे है । मुम्बई व बिहार पुलिस जिन लोगों से पूछताछ करना चाहती थी , उससे पहले हमारे मीडिया के साथी पहुंच चुके होते थे । फिर यह मीडिया ट्रायल कहा जाये या नहीं ?
इससे पहले आपको याद होगा आयुषी तलवार हत्याकांड ? बिल्कुल वही जिसमें एक टीनएजर लड़की की मिस्ट्री सुलझाने में हमारा अति उत्साही मीडिया दिनरात एक किये रहा और यह गुत्थी आज तक सुलझ नहीं पाई । इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता की परिभाषा तय हो । ऐसी याचिका दायर हुई है कि विभिन्न टी वी चैनल धर्मगुरुओं, समुदायों, नेताओं और राजनीतिक संगठनों के सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए एकतरफा रिपोर्टिंग कर रहे हैं । मीडिया का एक ग्रुप ऐसी रिपोर्टिंग के लिए प्रेस की स्वतंत्रता की आड़ ले रहा है । इस पर न सिर्फ प्रतिबंध लगना चाहिए बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता की परिभाषा भी तय करनी चाहिए । इस पर चीफ जस्टिस ने केंद्र से जवाब मांगा है ।
एक बात तो तय है कि अब न्यायपालिका लोकतंत्र की रक्षा ज्यादा कर रही है । मीडिया अपनी सीमाएं लांघ रहा है और सचमुच अनेक मामलों में मीडिया ट्रायल कर रहा है । बेशक पहले खुद रिया चक्रवर्ती ने सीबीआई जांच की मांग की थी लेकिन जब सचमुच सीबीआई को जांच मिली तो सुप्रीम कोर्ट पहुंच गयी कि मुम्बई पुलिस ही ठीक है क्योंकि रिया के पुलिस अधिकारी के साथ हुई बातचीत का भांडा फूट गया है । आय कहां से आई और कितनी आय थी और खर्च इतना ज्यादा कैसे और किसके पैसे के दम पर ? हाथ पांव फूल रहे हैं रिया और उसके परिवारजनों के । साफ साफ नज़र आने लगी हैं सारी गुत्थियां । ब्लैकमेल किए जाने के संकेत भी मिलने लगे हैं । मुम्बई पुलिस ने बिहार पुलिस की जांच में अड़चनें पैदा क्यों कीं ? आखिर आठ जून के बाद घर तो छोड़ा ही , फोन काॅल न आए , सुशांत का नम्बर तक ब्लाॅक कर दिया ? क्यों ? कहते हैं कि महेश भट्ट के निर्देश पर?
सुप्रीम कोर्ट ने इसीलिए मीडिया की स्वतंत्रता की परिभाषा तय करने का मुद्दा उठाया है । आपको याद हो पालघर में साधुओं की निर्मम हत्या और उसे एक चैनल ने ले जाकर जोड़ा सोनिया गांधी से इतनी ऊंची उड़ान कल्पना की ? जब केस दर्ज हुआ तब समझ आई बात । इसलिए बहुत जरूरी है कि अब मीडिया की स्वतंत्रता पर विचार किया जाये ।