कमलेश भारतीय की राजनीति का चेहरा उजागर करती लघुकथाएं
(1)
स्टिकर
एक पार्टी के लोग मुझसे चंदा मांगने आए । उनके भले चेहरों को देखकर मैं इंकार न कर सका । चलते चलते वे अपनी पार्टी का स्टिकर भी ड्राइंगरूम में लगा गये । मैं विचारों से सहमत न होते हुए भी लोकलज्जावश चुप रह गया ।
अब जो भी आता , पहले मुझको , फिर स्टिकर को घूरने लगता । घुमा फिरा कर पूछ ही लेता कि क्या मैं फलाने पार्टी का सदस्य हूं । मैं इंकार में सिर हिला देता । अगला सवाल फिर होता , यदि सदस्य नहीं तो क्या इस पार्टी के हमदर्द हो ? मैं मासूम सा इंकार फिर कर देता । फिर तो जैसे तोप का मुंह मेरी ओर हो जाता ।
मोटी सी बात कही जाती- जब सदस्य नहीं , हमदर्द नहीं , तो फिर चंदा किसलिए ?
अब मेरा माथा ठनका । यह मामूली सा स्टिकर मेरी जान का जंजाल बन गया । बात ठीक भी लगने लगी । यदि किसी पार्टी का स्टिकर मेरे ड्राइंगरूम में लगेगा तो मेरे ही विचारों का प्रतिरूप माना जायेगा । मैं मामूली से स्टिकर को अपना मुखौटा क्यों बनने दूं ? किसी की विचारधारा को मैं क्यों ढोता फिरूं?
एक फैसले के तहत मैने चाकू लेकर स्टिकर को काट दिया और मुक्ति की सांस ली
(2)
दौड़
सबने सुना कि देश के बड़े नेता गंभीर रूप से बीमार हो गये । आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया । अस्पताल के बाहर सभी चैनलों के संवाददाता जुट गये । स्वास्थ्य बुलेटिन की जानकारी देने लगे । भूखे प्यासे अस्पताल के बाहर खडे कैमरामैन । दूसरी ओर पार्टी के दिग्गज नेता अस्पताल नहीं बल्कि दिल्ली दरबार में हाईकमान के यहां सलाम करने दौड़े । पार्टी टिकट पाने की जुगाड़ मेंं, क्योंकि उपचुनाव की संभावना जो दीखने लगी थी ।
(3)
कारण
प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जिस भव्यता, महानता और उदारता के साथ किसी दूर दराज के पिछडे क्षेत्र में स्कूल का शिलान्यास किया व बालकों के उज्ज्वल भविष्य का आश्वासन दिलाया, उसके एकदम उलट वे राजधानी लौटकर सब कुछ भूल गये ।
पिछड़े क्षेत्र में ज्ञान का दीप प्रज्जवलित करने की बजाय खामोश हो गये और शिक्षा मंत्रालय को आदेश दे दिया कि आगे कोई कार्यवाही न की जाए । इस स्कूल को कागजों में ही चलने दिया जाए । असल में नहीं । इ पर शिक्षा मंत्री ने कारण पूछा तो उसे गुप्त मीटिंग पर बुलाया । समझाते हुए बोले -भलेमानस , अगर पिछड़े क्षेत्रों के लोग भी पढ़ लिख गये तो सब सूझवान हो जायेंगे । फिर खुद ही सोचो हमें वोट कौन देगा ?
इस अकाट्य तर्क पर शिक्षा मंत्री तो बेचारे मुख्यमंत्री की ओर मुंह खोले अवाक् ताकते ही रह गये ।
(4)
अपने आदमी
यह तीसरी बार हो रहा था ।
मैंने तीसरी बार किसी लड़के को नकल करते पकड़ा था औ, बदकिस्मती से वह भी किसी मास्टर, का अपना आदमी निकल आया था । मुझे फिर ठंडी चेतावनी ही मिली थी ।
पहली बार हैड का लड़का ही मेरी पकड़ में आ गया था । जब मैं उसे किसी विजयी भावना में लिए जा रहा था तो पीठ पीछे सभी साथी मुस्कुरा रहे थे । नया होने की वजह से मुझे किसी के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था । और वे जानते बूझते मुस्कुरा रहे थे । हैड ने उसे यह कह कर छोड़ दिया था कि अपना शरारती बेटा है , आपसे मज़ाक कर रहा होगा ।
दूसरी बार मैंने फिर ईमानदारी से ड्यूटी करते हुए एक लड़के को रंगे हाथों नकल करते लपका था । उसकी वजह से मुझे उस प्राइवेट स्कूल के मैनेजर का सामना करना पड़ा था । वह उनका सुपुत्र जो था और मुझे नौकरी करनी थी ।
तीसरी बार खेल प्रशिक्षक भागे चले आए थे और मेरे कंधे पर आत्मीयता का भाव लादते हुए बता गये थे कि वह स्कूल का श्रेष्ठ खिलाड़ी है ।
अब मैंने कातर दृष्टि से अपने आसपास देखना शुरू कर दिया है कि जिससे मुझे मालूम हो जाये कि अपने आदमी कहां नहीं हैं ,,,
तब से मैं एक भी आदमी पर उंगली नहीं रख पाया हूं ,,,
(5)
कारोबार
हम दोनों एक ही जगह पहुंचे थे । इसके बावजूद हमारे रास्ते अलग अलग थे । सभागार में हमें साथ साथ बिठाया गया । पर वह मेरे करीब होने पर भी मुझसे आंखें नहीं मिला पा रहा था । हम एक ही गांव के थे लेकिन एक जैसे नहीं थे । मुझे कलम के क्षेत्र में पहचान मिली और उसे कर्म के क्षेत्र में । दोनों को एकसाथ न्यौता मिला । मैं गांव की पगडंडी पर चल कर यहां तक पहुंचा था और वह एक प्रकार से हवा में अपनी चमचमाती गाड़ी में । राजपथ से ।
बताऊं कि उसका पिता हमारी हवेली में रोज़ दूध लेने आता था । वह गांव से दूध इकट्ठा कर शहर में बेचने जाता था । बेटे बड़े बड़े हुए तो हलके के नेता के साथ हो लिए । देखते देखते ईंट भट्ठों का कारोबार शुरू हुआ । गांव का कच्चा मकान आलीशान कोठी में बदल गया । कोठी के आगे चमचमाती कार खड़ी हो गयी । नौकर चाकर घूमने लगे ।
पिता ने दूध का कारोबार नहीं छोड़ा । बेटों को गांव में ताने उलाहने मिलने लगे । बेटों को बाप के दूध बेचने के कारोबार से शर्म आने लगी । समझाने की कोशिश की । बाप यही कहता कि मैं तुम्हारा बाप हूं । मैंने तुम लोगों को इसी कारोबार से पाल पोस कर बड़ा किया । अब शर्म कैसी ?
आखिर बाप बेटों में जमकर जहां सुनी हुई । बाप ने बेटों को सबके सामने कह दिया -मेरा सफेद और शुद्ध कारोबार है । तुम्हारे काले कारोबार से मेरी ईमानदारी की रोटी भली । तुम लोग जो चाहो वो करो । मैं तुम्हें रोकता नहीं । फिर तुम मुझे कैसे रोक सकते हो ? मेरा अपना रास्ता है जीने का ।
बेटे चुपचाप कोठी में लौट गये थे ।
आज वह इसीलिए सभागार में साथ बैठा होने के बावजूद मेरे से आंखें चुरा रहा है ,,,
-कमलेश भारतीय