लघुकथा/कसैला स्वाद/कमलेश भारतीय

लघुकथा/कसैला स्वाद/कमलेश भारतीय
कमलेश भारतीय।

मैं दूध के पैकेट्स लेने दुकान के सामने खड़ा था । वह मिठाई भी बेचता था । शो केस में ललचाती -लुभाती मिठाइयां सजी हुई थीं । 
इतने में एक सब्जी की रेहड़ी लगाने वाला आया । उसने रेहड़ी दुकान के सामने खड़ी की । दुकानदार से कहा कि पांच रुपये के रसगुल्ले दे दे । नोट उसने दस का बढ़ाया ।दुकानदार मेरे दूध केस पैकेट्स देते ऊंचे सुर में सबको सुनाते चिल्लाया -पांच रुपये के रसगुल्ले आते हैं क्या ? 
रेहड़ी वाले ने कहा कि यों ही दुकान के आगे से निकल रहा था । सोचा कि कई दिन से मुंह मीठा नहीं किया । मुंह का स्वाद नहीं बदला है । क्यों न मुंह मीठा कर लूं ।
- ठीक है । फिर पूरी तरह मुंह मीठा करो ।
इस पर आसपास के दुकानदारों ने ठहाके लगाए ।
-गरीब आदमी हूं । दे दो । दस के ही दे दो । उसने बेबसी से कहा ।
मैंने देखा कि रेहड़ी वाले ने रसगुल्लों से भरा लिफाफा तो ले लिया और रसगुल्ले खा भी लिए पर मुंह का स्वाद सरेआम अपनी गरीबी उजागर होने से कसैला ही बना रहा ।